Wednesday, October 10, 2012

ध्यान खरीदा नहीं जा सकता

                                                               
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

ध्यान
     

           ध्यान एक ऐसा मेहमान है जो एक बार अन्दर धुस जाय तो फिर बाहर नहीं कर पायेंगे,क्योंकि वह अपने साथ इतना आनन्द और शॉति लाता है कि इन्हैं कौन बाहर कर सकता है ? एक बार प्रयोग के लिए इसे भीतर आने तो दें ,फिर देखना यह फिर कभी बाहर न जा सकेगा । और अगर कोई कहेगा भी कि इसे बाहर कर दो एक करोँण रुपये में इसे हम लेते हैं,लेकिन आप राजी न होंगे । इससे हमारे अन्दर की स्थिति बदलती है,जिससे बाहर का आचरण स्वयं बदल जाता है । अगर कुछ देर के लिए यह अन्दर ठहर जाय तो पूरी जिन्दगी को पकड लेगा । इतिहास में कई घटनाओं के उदाहरण हैं ।
 
          एक बार एक सम्राट महॉवीर के पास मिलने आया और महॉवीर से कहा कि मैने सब कुछ पा लिया है । मैं ध्यान की चर्चा सुनता हूं ,यह क्या है ? यह कितने में मिल सकता है ? मैं इसे खरीदना चाहता हूं ? यह सम्राट चीजें खरीदने का आदी था ।महॉवीर ने कहा,यह खरीदने से नहीं मिलेगा,इसे तो गरीब से गरीब आदमी भी बेचने को राजी नहीं होगा ।
 
          उस सम्राट ने कहा, फौजें लगा देंगे,जीत लेंगे । यह है क्या बला ध्यान ? फिर भी कोई रास्ता बताओं, सम्राट ने महॉवीर से कहा । मैने सब कुछ पा लिया बस यह ध्यान भर रह गया है, यही खटकता है कि अपने पास ध्यान नहीं है । महॉवीर ने कहा ?तुम धन पाने के आदी हो,जमीन पाने के आदी हो,उसी तरह ध्यान पाने चले हो ? तुम नहीं पा सकोगे । अगर इतनी ही जिद्द करते हो तो तुम्हारे गॉव में एक गरीब आदमी है,उसकेपास चले जाओ,उसे ध्यान मिल गया है, उसे तुम खरीद लो ।
 
          सम्राट उस गरीब के दरवाजे पर गया,रथ से उतरकर उस गरीब को देखा, बहुत गरीब, एक झोपडे में । महॉवीर ने कहॉ,खरीद लेंगे,पूरे आदमी को खरीद लेंगे !उसने बडे हीरे-जवाहरात उसके दरवाजे पर डाल दिया और कह कि और चाहिए तो बताओ और दे देंगे,जो भी तेरी मॉग है दे देंगे लेकिन उस ध्यान को दे दे !
 
          उस आदमी ने कहा आपने तो मुझे बडी मुश्किल में डाल दिया, चाहे आप अपना साम्राज्य दे दे ,तो भी में ध्यान को न दे सकूंगा । इसलिए कि यह कोई बडी सम्पत्ति नहीं है ,और इसलिए भी न दे सकूंगा कि वह मेरी आत्मा की आत्मा है ,मैं उसे निकालकर कैसे दे सकता हूं ? अगर कोई लेना भी चाहेगा लेकिन उसे दे भी नहीं सकता हूं ।
 

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