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1-घटना एक सपने की
एक रात को मैंने एक सपना देखा । वह सपना बडा अद्भुत था । जैसे कि उस ईश्वर ने प्रार्थना सुन ली है । एक बहुत बडा महल है गॉव भर में एक आवाज जैसे आकाशवॉणी हो रही है कि सभी दुखी लोग अपनी-अपनी दुख की पोटली को लेकर उस महल में चले जॉय । मैने अपने दुख की पोटली को कंधे में रखकर सबसे पहले भागा-भागा उस महल की ओर दौडा ।सोचा कि और कोई दुखी नहीं है ।गॉव में सब सुखी हैं । लेकिन मैने देखा कि लोग मुझसे भी तेज भागे चले जा रहे हैं । जिनसे मैने सुबह पूछा था कि कहो कैसे हो ?और उन्होंने कहा था कि अच्छे हैं ! वे भी बडे-बडे गठ्ठे लेकर भागे जा रहे हैं । मुझे हैरानी हुई कि गॉव में एक भी आदमी नहीं है । सब भागे जा रहे हैं अपनी-अपनी पोटलियों को लेकर । उस महल में सब लोग पहुंच गये हैं । फिर देखा तो हैरान हो गया, उस गॉव का प्रधान भी वहॉ पहुंचा है,पुजारी भी,सन्यासी,महात्मा सभी वहॉ पहुंचे हैं । सबके पास बडी-बडी पोटलियॉ हैं ।
तभी आवाज गूंजती है कि सभी लोग अपनी-अपनी पोटलियों को खूटी पर टॉग दें । सबने दौडकर अपनी-अपनी गठरियों को खूटियों पर टॉग दी । फिर कुछ देर बाद आवाज आई कि जिसको जो पोटली पसन्द हो चुन लें । मैं घबडा गया और भागा गठरी की ओर, दूसरे की नहीं, अपनी गठरी की ओर । कोई और न उठा ले । कमसे कम अपने दुख पहचाने तो हैं । अनजान अपरचित लोगों की गठरियॉ मुझसे बडी दिख रही है । मैने दौडकर अपनी पोटली उठा ली कि कोई और न उटा ले जाय । लेकिन देखकर चकित हो गया कि सबने अपनी-अपनी पोटली उठाई है । सभी को यह डर था कि कोई दूसरा न उठा ले । क्योंकि कल तक केवल अपना ही दुख देखा था,दूसरे की हंसी देखी थी । आज सब झूठ हो गया था ।
लगा जैसा सपने में भी सपना है । आदमी इतने दुख में है ! हम एक दूसरे को दुख देने के नये-नये रास्ते खोजते रहते हैं । धर्म के नाम पर,राजनीति के नाम पर खोज लेते हैं । हम किसी भी बहाने से किसी को सताने का रास्ता खेोज लेते हैं । हिन्दू-मुसलमान बनकर रास्ते खोज लेते हैं । गुजराती या मराठी के नाम पर,उत्तरी भारत और दक्षिणी भार,के नाम पर लडने का बहाना तलाशते हैं ।दूसरे को सताने का,टार्चर करने का बहाना चाहिए । ऐसा नहीं है कि बुरे लोग ही सताते हैं दूसरों को,जिन्हैं कि हम अच्छे लोग कहते हैं,वे भी सताने में पीछे नहीं होते हैं । न सही घर में पति-पत्नी ही लड बैठते हैं । बाप-बेटे ही लड जाते हैं । बस लडाई चाहिए ।दुखी की यही तो पहचान है ।
हमारे गॉव में एक महात्मा रहते हैं,वे लोगों को समझाते हैं कि उपवास करो?क्योंकि भूखे मरे बिना परमात्मा नहीं मिलता । अच्छा तरीका अपना रखा है महात्मा जी ने,बडी टेक्नीक से वह लोगों को सताने जा रहा है । महात्मा जी लोगों से कहता है कि सिर के बल खडा होने से सिद्धि मिलती है ।
परमात्मा ने हमें पैर के बल खडा किया लेकिन महात्मा समझा रहे हैं कि सिर के बल खडा होने से ही मिलेगा । कुछ नासमझ सिर के बल खडे हो जाते हैं, तो महात्मा सुखी होना शुरू हो जाता है । उसने दूसरों को दुख देना शुरू कर दिया । टार्चर करने के रास्ते खोज लिए । जिन्हैं हम अच्छे लोग कहते थे वे भी सताने लग गये ।
हिटलर ने भी लोगों को बहुत सताया, लेकिन उससे बचना आसान है । गॉधी से बचना बहुत कठिन है । इसलिए कि हिटलर तो सीधा दुश्मन की तरह सताता है,लेकिन गॉधी तो हमारे हित में सताते हैं । हिटलर हमारी छाती पर छुरा रखता है ,जबकि गॉधी अपनी छाती पर छुरा रखता है ।गॉधी कहते हैं कि अगर मेरी न मानी तो मैं मर जाऊंगा । इसी को अहिसा कहते हैं ।यह बात भी अजीव है कि दूसरे को मारना हिंसा है,लेकिन अपने को मारना अहिंसा कैसे हो जायेगा ? अगर मैं आपकी छाती पर छुरी रख कर कह दूं कि मेरी बात मान ले,तो यह हिंसा हो गई, क्रिमिनल एक्ट है । और मैं अपनी छाती पर छुरा रखकर कह दूं कि मैं मर जाऊंगा,आग लगा कर जल जाऊंगा,तो मैं महात्मा हो जाऊंगा ,यही तो मान्यता है ! जबकि यह भी हिंसा है । क्रिमिनल एक्ट के अन्तर्गत है । लेकिन यह एक अच्छे ढंग की हिंसा है । अगर मैं आपके दरवाजे पर बैठकर कह दूं कि अगर मेरी बात न मानी तो मैं भूखा मर जाऊंगा, तो यह अच्छे ढंग की हिंसा हो गई,यह आपको मजबूर कर देगी, आपको सता डालेगी ।
आज देखा जा रहा है कि बुरे आदमी सता रहे हैं,अच्छे आदमी सता रहे हैं । हम सब एक दूसरे को सताने में लगे हैं । और हमने ऐसी तरकीव खोज ली है कि पता लगाना मुश्किल है कि हम कैसे-कैसे सता रहे हैं । अगर आप किसी स्त्री से प्रेम करते हैं तो, आप उसको सताना शुरू कर देते हैं । और यदि एक स्त्री आपसे प्रेम करती है तो बहुत जल्दी पता नहीं चलता कि कब उसने आपको सताना शुरू कर दिया ।हम तो प्रेम की बात करके एक दूसरे की गर्दन को दबा लेते हैं ।
छोटी अवस्था में बेटे को बाप सताता है,लेकिन बहुत जल्दी नाव उलट जाती है । बेटे ताकतवर और बाप बूढा हो जायेगा,फिर बच्चे सताना शुरू कर देंगे । सताने के नये-नये रास्ते खोजते रहते हैं ।
औरंगजेव ने तो अपने बाप को लाल किले में बन्द कर दिया था,तो बाप ने पॉच-दस दिन में खबर भेजी कि यहॉ मेरा मन नहीं लगता,अगर तुम तीस लडके मुझे दे दो तो मैं उन्हैं पढाने का कार्य शुरू करूं तो मेरा मन लग जायेगा । औरंगजेव ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि मेरे बाप को दूसरों को सताने में मजा आता था । जब उन्हैं तीस लडके दिये गये तो वे उनके बीच डंडा रखकर बादशाह बन जाते और शिक्षा देने के नाम पर उनको सताना शुरू कर देते थे ।
अब प्रश्न यह उठता है कि मनुष्य दुख से इतना भरा हुआ है कि इसमें फूल कैसे खिल सकते हैं ?इनकी जिन्दगी में आनन्द की झलक कैसे आ सकेगी ?
और यह भी जरूरी है कि यदि आनन्द की झलक न आये तो आदमी कैसे जी सकेगा,जीना न जीना बराबर हो जायेगा । जीवन से हमें जो मिल सकता था,वह हम ले नहीं पायेंगे । पौधा लगा जरूर मगर फूल न खिले । दिया तो ले आये घर में, लेकिन उसमें कभी ज्योति न जली ।
2- चौथा विश्व युद्ध नहीं हो सकेगा -
जी हॉ आज पूरे विश्व में यही तैयारी है,इतने बम बनाये जा चुके हैं कि अगर हिसाब लगॉयें तो अस्सी गुना बम तैयार है ,चार अरब आदमियों को मारने के लिए अस्सी गुना अधिक बन चुके हैं । अर्थात एक आदमी को हमने अस्सी बार मारने का इन्तजाम कर लिया है,कि भूल चूक कोई बच न जॉय । वैसे एक आदमी एक ही बार मरता है,लेकिन शायद बच जाये तो दुबारा हम मार सकें । फिर भी बच जाये तो हमने आस्सी बार मारने का इन्तजाम कर रखा है । इतने अधिक बम हैं कि यह पृथ्वी बहुत छोटी है इन बमों से मिटाने के लिए । नागासाकी और हिरोशिमा में गिराये गये बमों को उस समय लोगों की सोच में इससे अधिक खतरनाक और कोई बम नहीं होगा लेकिन आज से तुलना करें तो वे सिर्फ एक खिलौने के समान रह गये हैं । एक लाख आदमी एक बम से मरे थे, इन बच्चों के खिलौने से। आज के बमों की क्षमता बहुत अधिक है । पूरे इतिहास में आदमी ने यही तो अर्जित किया है । विनाश और मृत्यु की इतनी तीव्र आकॉक्षा बन चुकी है कि लगता है आदमी का मन कही बीमार तो नहीं है ? क्योंकि स्वस्थ मनुष्य जीने की सोचता है और अस्वस्थ मनुष्य मरने की । हमें कही मनोरोग ने तो नहीं पकडा है ? हम उस जगह पर खडे हैं जहॉ किसी न किसी दिन हम अपने को समाप्त कर सकते हैं ।
आइस्टीन को मरने से पहले किसी ने पूछा था कि तीसरे विश्वयुद्ध के सम्बन्ध में आपका क्या खयाल है ? तो आइस्टीन ने कहा था कि तीसरे के सम्बन्ध में कुछ भी नहीं कह सकूंगा! लेकिन चौथे के सम्बन्ध में जरूर कहूंगा । उस आदमी ने कहा कि क्या बात कर रहे हैं आप तीसरे के सम्बन्ध में नहीं तो चौथे के सम्बन्ध में कैसे कहेंगे ? तो आइस्टीन ने कहा था कि चौथे के सम्बन्ध में यह बात निश्चित कह सकता हूं कि चौथा महॉयुद्ध कभी नहीं होगा । क्योंकि तीसरे के बाद आदमी के बचने की कोई उम्मीद नहीं है । लेकिन तीसरे के बारे में कुछ भी कहना मुश्किल है ।
3-सबसे अधिक विकास मारने की शक्ति में हुआ-
यह धरती एक बडा बगीचे के समान है, लेकिन फूल एक भी नहीं खिला है, ऐसा ही आज मनुष्य का समाज हो चुका है । मनुष्य तो बहुत हैं,लेकिन सौन्दर्य के,सत्य के,प्रार्थना के कोई फूल नहीं खिलते हैं ।यह पृथ्वी आदमियों से भरती चली जा रही है -दुर्गन्ध से,घृणॉ से,क्रोध से,हिंसा से लेकिन प्रेम और प्रार्थना से नहीं । इतिहास साक्षी है कि कोई तीन हजार वर्षों में आदमियों ने पन्द्रह हजार युद्ध लडे । ऐसा लगता है कि जैसे हमने सिवाय युद्ध लडने के और कोई काम ही नहीं किया ।तीन हजार वर्षों में पन्द्रह हजार युद्ध बहुत होते हैं । प्रति वर्ष पॉच युद्ध । अगर विकास की बात को करें तो यही कहना होगा कि हमने आदमियों को मारने की कला में सबसे अधिक विकास किया है ।
4-अति प्रेम पागलपन है -
अति प्रेम और पागलपन एक दूसरे के पूरक है । जमीन पर इस तरह के पागलपन दो तरह के दिखते हैं -एक जो परमात्मा की दिशा में जाता है,जहॉ हम अपने को खोकर सब पा लेते हैं, मीरा की यही दशा थी । और एक वह जिसमें हम सिर्फ पाने की कोशिश करते हैं,लेकिन मिलता कुछ भी नहीं है, सदा मिलने की आशा में भ्रमित रहते रहते हैं, अन्ततः खाली हाथ रह जाते हैं । अगर पागल ही होना है तो उस परमात्मा के के लिए पागल होना बेहत्तर है,इससे वह चीज मिलती है जो फिर छीनी नहीं जा सकती है ।बुद्धिमान लोग तो उन पागलों से कम नहीं होते, जो परमात्मा के द्वार पर नाचते हुये प्रवेश करते हैं । अच्छा है किसी के प्रेम में पागल न हों, अगर पागल ही होना है तो उस परम सत्ता के प्रेम में पागल होना सीखें जहॉ से आपको वह चीज मिलती है जिसे कोई छीन नहीं सकता है ।
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