Thursday, September 20, 2012

शॉति की खोज


1-     तुम्हें इस सृष्टि में हर तरफ प्रेम ही प्रेम दिखेगा यदि उसे देखने वाली दृष्टि हो ।
 
2-     मुझे पता है कि जीवन एक खेल है । तुम्हें पता है कि जीवन एक खेल है । चलो खेलें!
 
3-     जीवन अत्यंत सरल भी है और अत्यंत जटिल भी । रंग जीवन की जटिलता हैं और श्वेत जीवन की सरलता है । यदि तुम्हारा दिल साफ़ है तो जीवन रंगीन हो जाता है ।
 
4-     क्या तुम थक गए हो? अगर नहीं तो थक जाओ । थके बिना तुम घर नहीं पंहुच पाओगे । इस दुनिया की हर वस्तु तुम्हें थकाएगी सिवाए एक के - प्रेम । वही अंत है; वही तुम्हारा घर है । थकान भोग की छाया है । सुख भोगने की लालसा तुम्हें रास्ते पर चलाती है । प्रेम की चाह तुम्हें वापस घर लाती है ।
 
5-     ऐसा कहा जाता है कि जब तुम उनके लिए गाते हो तो इश्वर का तुममें उदय होता है । जब तुम गाते हो तो तुम्हें दैवी प्रेम का अनुभव होता है । यह बात निश्चित है! इश्वर केवल तुम्हारे अपने भीतर और गहराई में जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं, ताकि वे तुम्हें और भी अमृत से भर दें । वे तुम्हें और भी देने की प्रतीक्षा कर रहे हैं । अपने दिल से उन्हें पुकारो, आत्मा से आवाज़ दो ।
 
6-     वस्तुओं का महत्त्व तुम्हारे कारण होना चाहिए| सोफा इस कारण मूल्यवान हो कि तुमने उसका उपयोग किया न कि तुम्हारा मान अच्छा सोफा होने से बढ़े| यह सफल जीवन का चिन्ह है ।
 
7-     स्पष्टीकरण मांगने से भावनाओं का बवंडर उमड़ पड़ता है । वे कुछ उत्तर देते हैं, तुम कुछ कहते हो, या तो वे ग्लानी में चले जाते हैं या और स्पष्टीकरण देते हैं । दोनों स्थितियों से तुम्हारा कोई लाभ नहीं है । काफी बार "मुझसे गलती हुई" कह देना ही उचित है । पर वह भी बहुत बार दोहराने की आवश्यकता नहीं । प्रेम और स्वीकृति की भावना - "मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता या सकती हूँ?" ही पर्याप्त है ।
 
8-     प्रेम के गुंण--स्वयं के साथ और दूसरों के साथ भी । जब तुम भीतर से खुल जाते हो, तो सबको प्रेम के अतिरिक्त कुछ दे ही नहीं सकते और वे भी तुमसे प्रेम किये बिना रह नहीं सकते । न तुम्हारे पास कोई विकल्प है न उनके पास । तुमने यह शिशु रहते हुए किया है । तब तुम सभी के साथ भोले भले, सहज और मासूम थे । और सभी तुमसे प्रेम करते थे!
 
9-     मानव शारीर बना है पृथ्वी पर स्वर्ग लाने के लिए, दुनिया में मिठास फैलाने के लिए, विष घोलने के लिए नहीं । किसी को नीचे धकेलना आसान है, पर उन्हें ऊपर उठाने के लिए, उनमें दैवी गुण जगाने के लिए साहस और बुद्धि दोनों की आवश्यकता है । दूसरों में दैवी गुण जागृत करने से तुम्हें अपने भीतर की दिव्यता दिखने लगेगी ।
 
10-     ऐसा मत सोचो कि जो लोग तुम्हारी कष्ट की बात सुनकर सहमत हो जाते हैं कि तुम कष्ट में हो, वे तुम्हारे मित्र हैं ।जो लोग तुम्हारी नकारात्मक भावनाओं या निराशाओं को बढ़ावा देते हैं वे मित्र प्रतीत होते हैं पर वे बुरी संगत हैं । सुसंगति या अच्छे मित्र तुम्हें यह अनुभव कराते हैं कि समस्या कुछ भी नहीं है - "यह तो सरल सी बात है, चिंता मत करो ।" वे तुममें उत्साह भर देते हैं ।
 
11-     यदि उन्हें मुझमें इश्वर दीखते हैं तो यह उनपर निर्भर है । मुझे भी उनमें भगवान दीखते हैं । जहाँ से भी शुरुआत हो, रुको मत - सबकी पूजा करो, हर वस्तु को सम्मान दो। आज विश्व में हिंसा है तो इसलिए कि हमने लोगों को एक दूसरे का सम्मान करना नहीं सिखाया । जीवन का सम्मान करो, वह चाहे कहीं भी हो - गाय में, गधे में या श्वान में । समाज को प्रेम में संवरने की आवश्यकता है, और प्रेम में पूजा निश्चित है ।
 
12--     जो तुम बन्दूक से नहीं जीत सकते वह तुम प्रेम से जीत सकते हो । दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति प्रेम है । प्रेम से हम लोगों के दिल जीत सकते हैं । जो जीत अहम् की भावना से मिले उसका कोई मोल नहीं । अहंकार में जीत भी हार है । प्रेम में हार भी जीत है ।
 
13-     यदि बाहर वर्षा हो रही है तो वह नियति है; तुम्हारा मौसम पर कोई वश नहीं है । परन्तु भीग जाना या सूखे रहना तुम्हारे संकल्प पर निर्भर है ।

14-     भूत को नियति मानो, भविष्य के लिए संकल्प करो और वर्तमान में प्रसन्न रहो । मूढ़ व्यक्ति भूत को अपना संकल्प मानकर खेद करता है, भविष्य को नियति पर छोड़ देता है और वर्तमान में दुखी रहता है ।
 
15--     तुम्हें तभी तक चलना है जब तक तुम समुद्र तक न पंहुच जाओ। समुद्र में तुम्हें चलने की आवश्यकता नहीं है, अब केवल बहना और तैरना है । उसी तरह, एक बार गुरु के पास पंहुचने पर खोज का अंत होता है और खिलना आरम्भ होता है ।
 
16-     इस पृथ्वी पर हल्केपन के साथ चलो, पर ऐसे पदचिन्ह छोड़ो जो हज़ारों साल तक न मिटें ।
 
17-     गुरु एक द्वार है । जब तुम सड़क पर धूप में तप रहे हो या वर्षा में भीग रहे हो, तो तुम्हें किसी आश्रय की आवश्यकता महसूस होती है । द्वार में प्रवेश करने पर यह जगत बहुत सुन्दर दीखता है - प्रेम, आनंद, सहयोग, दया, सभी गुणों से भरा हुआ । द्वार से बाहर देखने पर कोई भय नहीं होता । अपने घर के भीतर से तुम बाहर तूफ़ान को देख सकते हो और विश्राम भी कर सकते हो । एक सुरक्षा की भावना, पूर्णता और आनंद का उदय होता है । गुरु के होने का यही उद्देश्य है ।
 
18-     यदि तुम सृष्टि के उपकरण बनकर उसे अपने द्वारा कार्य करने दो, तो जीवन एक अलौकिक स्तर को प्राप्त हो जाता है ।
 
19-     ज़रा अपनी ओर देखो ? कितने दोष हैं तुममें ! पर प्रकृति ने, इश्वर ने तुम्हें सभी दोषों के साथ भी स्वीकार कर लिया है । उसने तुम्हें अपनी बाहों में ले लिया है । वह कभी नहीं कहती, "तुमने आज बहुत बुरा बर्ताव किया, मुझे बुरा भला कहा, मैं तुममें श्वास नहीं जाने दूँगी । तुम्हारा दिल धड़काना बंद कर दूँगी ।" प्रकृति कभी तुम्हें आंककर तुम पर निर्णय नहीं लेती ।
 
20-     प्रेम ज्ञान से सुरक्षित रहता है, मांगने से नष्ट होता है, संदेह से परखा जाता है और आकांक्षा से विकसित होता है । यह श्रद्धा से खिलता है और कृतज्ञता से बढ़ता है । प्रेम संपूर्ण ब्रह्माण्ड का सार है । प्रेम से किया कर्म सेवा है । और तुम ही प्रेम हो ।
 
21-     हमेशा यह याद रखो: प्रकृति तुम्हें ऐसी कोई समस्या नहीं देगी जिसका तुम हल न खोज सको । उत्तर पहले ही तुम्हारे पास है, तभी प्रश्न तुम्हारे सामने लाया गया है ।
 
23-     दो प्रकार के लोग होते हैं: एक वे जिनका मूल्य उनकी वस्तुओं के होने से बढ़ता है और दुसरे वे जिनके कारण वस्तुएं मूल्यवान होती हैं । इनमें दूसरे प्रकार के लोग हैं जो अपना जीवन वास्तव में जीते हैं ।
 
24-     देखें तो जरा ये शव्द क्या कहते हैं -
ध्वनि में लय संगीत है ।
गति में लय नृत्य है ।
मन में लय ध्यान है ।
जीवन में लय उत्सव है ।
 
25-     यदि तुम प्रेममय हो, तो दुनिया में हर जगह तुम्हारा स्वागत होगा । यदि तुम कहीं भी लोगों के साथ एक हो सकते हो, घुल मिल सकते हो, तो लोग तुम्हारे लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं ।
 
26-     जब नींद न आती हो तो यह ऐसा पूछने जैसा है कि "सोना इतनी कठिन क्यों है?" एक पुराना दोहा है "प्रेम गली अति सांकरी, ता में दो न समाय । जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाहीं ।" या तो प्रेम है या तुम हो । प्रेम का अर्थ है भूल जाना कि "मेरा क्या होगा?" और पिघल जाना । ऊपर आकाश में देखो: इतने सारे तारे, चन्द्रमा, सूर्य, पर यदि रेत का एक कण आँख में पड़ जाए तो सब छुप जाता है । वैसे ही, छोटा "मैं, मैं" तुम्हारे असीमित रूप को छुपा देता है, वह विघ्नरहित प्रेम जो तुम हो ।
 
27-     अपनी मंशा पर ध्यान दो जिसके कारन तुम कर्म करते हो । प्रायः तुम वस्तुओं के पीछे इस वजह से नहीं भागते कि वे तुम्हें चाहियें । तुम वस्तुओं के पीछे इसलिए भागते हो क्योंकि वे दूसरों को चाहियें । और तुम्हें जो चाहिए उसके बारे में तुम स्पष्ट नहीं हो क्योंकि तुमने भीतर झांक कर कभी देखा नहीं ।
इसे अंतर्ग्रहण करो: स्वाधीनता का अर्थ है स्वयं के अधीन रहना । जब तुम्हें अपने आराम के लिए दूसरों से कुछ चाहिए तो तुम दुखी हो जाते हो । 'मैं आत्मनिर्भर हूँ' का अर्थ है 'मैं आत्म पर निर्भर हूँ' । मुझे किसीसे कुछ नहीं चाहिए ।
 
28-     कुछ काम करने के लिए तुम्हें कुछ योग्यता चाहिए । 100 किलो भार उठाने के लिए तुम्हें उतना बल चाहिए । तो यदि प्रेम बल या योग्यता का प्रश्न है तो हर व्यक्ति प्रेम नहीं कर सकता । पर प्रेम सभी योग्यताओं से परे है । चाहे मूर्ख हो या बुद्धिमान, निर्धन या धनी, रोगी या स्वस्थ, बलवान या निर्बल, कोई भी प्रेम कर सकता है ।
 
29--     जब तुम चन्द्रमा को देखते हो या कोई सुन्दर दृश्य देखते हो, तो कहते हो, "ओह, कितना सुन्दर!" उस सुन्दरता का अनुभव अलग है । पर जब तुम कुछ ऐसा देखते हो जिस पर अधिकार पाना चाहो या नियंत्रण रखना चाहो - बायफ्रेंड या गर्लफ्रेंड या कोई चित्र, तो मन कहता है, "यह मुझे चाहिए ।" उस सुन्दरता में ज्वरता है; तब वह अधिक देर नहीं टिकती । सुन्दरता की लहर उठती है पर एक छोटी तरंग रहकर ख़त्म हो जाती है । सुन्दरता की पवित्रता मासूमियत में है ।
 
30--     दुर्भाग्यशाली हैं वे जो इच्छाएं करते रहते हैं, पर जिनकी इच्छाएं पूरी नहीं होतीं । थोड़े भाग्यवान हैं वे जिनकी इच्छाएं बहुत समय बाद पूरी होती हैं । उनसे भी अधिक भाग्यशाली हैं वे जिनकी इच्छाएं उठते ही पूरी हो जाती हैं । सबसे सौभाग्यशाली हैं वे जिनकी इच्छाएं नहीं बचीं, क्योंकि वे उठने से पहले ही पूरी हो जाती हैं ।
 
31-'     यदि वह कर सकता है तो मैं क्यों नहीं कर सकता?' यह विचार तुम्हें लोगों से अलग कर देता है और व्याकुलता उत्पन्न करता है; उलझन हो जाती है; ईर्ष्या आ जाती है । तुम दिखावा करने लगते हो और अपनी सहजता खो बैठते हो । सारी उलझनें छोड़ दो, दिखावा मत करो । तृप्ति अति सुन्दर है । जो इच्छा उठने से पहले ही तृप्त हो और यह जान ले की उसकी सभी ज़रूरतें पूरी हो जाएँगी, शांति और आनंद उसे दिया जायेगा ।

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