हमारे सामने बार-बार एक प्रश्न सामवने आता है कि आखिर हम जी क्यों रहे हैं? एक प्रश्नवाचक मार्क हमारे सामने लग जाता है । आप क्यों जी रहे हैं ? इस जिन्दगी को आप खीच क्यों रहे हैं ? कल इससे कुछ नहीं मिला,!आज भी नहीं मिला! फिर कल क्या मिल जायेगा ?हम चाहते क्या हैं ?हम चाहते हैं आनंद ! तो मिला ? कभी भी नहीं मिलता ! हम चाहते हैं शॉति !,कभी मिला ? नहीं ! बल्कि जितनी शॉति चाहते हैं उतनी ही अशॉति सघन होती जाती है। और जितना आनंद खोजते हैं जिन्दगी में उतना ही तनाव,उतनी ही चिन्ता बढती चली जाती है।पूरी जिन्दगी दुख का एक ढेर हो जाता है।और हम उस दुख के ढेर पर ढेर बढाते चले जाते हैं । खोजते हैं आनन्द ! मिलता है दुःख । इसका अर्थ हुआ हमारी खोज में कोई बुनियादी भूल हो रही है। असाधारण भूल कह सकते हैं हम। जाते हैं आकाश की तरफ और पहुंच जाते हैं पाताल ।हम जाते हैं स्वर्ग की ओर, लेकिन पहुंच जाते हैं नरक । जलाते हैं दीये लेकिन जलता है अन्धेरा। यह हमारी पूरी जिन्दगी है । आदमी जो खोजता है वह नहीं मिलता है । सिकन्दर बहुत दुखी रहा होगा क्योंकि उस जमाने में वह पूरी दुनियॉ को जीतने को निकला था ,क्योंकि जो दुखी नहीं है वह किसी को जीतने ही नहीं निकलेगा । जो आनन्दित है वह जीत गया,उसने अपने को जीत लिया । अब किसी और को उसे जीतने की जरूरत नहीं रही। और जो अपने ही को नहीं जीत सका वह इस कमी को पूरा करने के लिए दूसरों को जीतने के लिए निकल पडता है । वे दूसरों को दबाकर अपनी हीनता को पूरा करने निकल पडते हैं । और बडे मजे की बात तो यह है कि यह देखा गया है कि-जो बहुत दीन होते हैं वे धन खोजने निकलते हैं।जो लोग हारे हुये होते हैं वे जीतने निकलते हैं । जिनके पास कुछ भी नहीं होता है वे सब मॉगने निकल पडते हैं । इसी लिए स्वभाव से सिकन्दर भी दुखी आदमी रहा होगा जो सारी दुनियॉ को जीतने निकला था । ।

2-मौत को झुठला नहीं सकते-
जी हॉ हर आदमी की मौत निश्चित है, इसका मतलव यह नहीं कि कोई तिथि निश्चित है, बल्कि यह कि इसे कोई टाल नहीं सकता है । लेकिन हम देखते हैं कि हर आदमी उसको आशीर्वाद देते जा रहा है कि तुम जुग-जुग जीओ ।मॉ का आशीर्वाद बाप आशीर्वाद कि तुम जुगह-जुग जियो गुरु भी यही आशीर्वाद देता है। जबकि कोई जुग-जुग जी नहीं सकता है। ये सब झूठी बातें बोली जाती है। और लगता भी ऐसा ही है कि जुग-जुग जी लेंगे। मृत्यु तो निश्चित है ,मृत्यु की अनिवार्यता को कोई झुठला नहीं सकता है । कोई भी आजतक जुग-जुग नहीं जिया । किसी का आशीर्वाद भी पूरा नहीं हुआ,और होगा भी नहीं। मौत को हम जितना झुठलाते हैं अमृत की खोज उतनी अधिक मुश्किल होती जायेगी। हमारी जिन्दगी तो बिल्कुल असुरक्षित है हम यहॉ हैं,घर तक पहुंचेंगे,यह पक्का नहीं है । मैं यहॉ हूं ,दूसरा शव्द भी बोल सकूंगा आगे यह भी पक्का नहीं है । अनिश्चित है । लेकिन मन कहता है कि सब निश्चित है। बैंक बैलेंस निश्चित है,बीमा कम्पनी कहती है सब निश्चित है। सब तरफ निश्चय का धोखा खडा किया जा रहा है। जबकि सब अनिश्चित है,कुछ भी तो निश्चित नहीं है । और यदि इस अनिश्चितता का पता चल जाय तो उसे महशूस होगा कि जो वह खोज रहा है वह गलती कर रहा है ।
3-असली घर की तलाश -
हम जिसे अपना घर समझते हैं,क्या सचमुच वह हमारा घर है?नहीं !वह तो एक सराय है,धर्मशाला है, यही तो हमारी भूल है। एक बार एक बादशाह इब्राहिम की छत पर सोया था,आधी रात्रि को उसकी नींद खुली तो देखा कि कोई छत पर चल रहा है, बादशाह ने चिल्लाकर पूछा कि तुम कौन हो !तो उसने हंसकर कहा कि सोये रहो ,परेशान मत होओ । मेरा ऊंट खो गया है, उसे खोज रहा हूं । इब्राहिम ने कहा पागल,कहीं मकानों की छतों पर कभी ऊंट खोये सुना है क्या ? वह जोर से हंसा और कहा कि तुमने मुझे पागल कहा,लेकिन जहॉ तू जिन्दगी खोज रहा है, वहॉ कभी किसी को जिन्दगी खोजते हुये पाया है ?जहॉ मृत्यु है वहॉ आदमी अमृत को खोजता है और जहॉ अनिश्चय है वहॉ निश्चय को खोजता है। जहॉ असत्य है वहॉ सत्य को खोजता है । इस तरह के लोग पागल नहीं तो मुझे पागल कहने का क्या कारण है? शीघ्र इब्राहिम ने उठकर सिपाहियों से उस आदमी को पकडकर लाने के लिए कहा कि लगता है यह आदमी मतलव की बात कर रहा है । लेकिन वह आदमी पकडा नहीं जा सका ।
जी हॉ हर आदमी की मौत निश्चित है, इसका मतलव यह नहीं कि कोई तिथि निश्चित है, बल्कि यह कि इसे कोई टाल नहीं सकता है । लेकिन हम देखते हैं कि हर आदमी उसको आशीर्वाद देते जा रहा है कि तुम जुग-जुग जीओ ।मॉ का आशीर्वाद बाप आशीर्वाद कि तुम जुगह-जुग जियो गुरु भी यही आशीर्वाद देता है। जबकि कोई जुग-जुग जी नहीं सकता है। ये सब झूठी बातें बोली जाती है। और लगता भी ऐसा ही है कि जुग-जुग जी लेंगे। मृत्यु तो निश्चित है ,मृत्यु की अनिवार्यता को कोई झुठला नहीं सकता है । कोई भी आजतक जुग-जुग नहीं जिया । किसी का आशीर्वाद भी पूरा नहीं हुआ,और होगा भी नहीं। मौत को हम जितना झुठलाते हैं अमृत की खोज उतनी अधिक मुश्किल होती जायेगी। हमारी जिन्दगी तो बिल्कुल असुरक्षित है हम यहॉ हैं,घर तक पहुंचेंगे,यह पक्का नहीं है । मैं यहॉ हूं ,दूसरा शव्द भी बोल सकूंगा आगे यह भी पक्का नहीं है । अनिश्चित है । लेकिन मन कहता है कि सब निश्चित है। बैंक बैलेंस निश्चित है,बीमा कम्पनी कहती है सब निश्चित है। सब तरफ निश्चय का धोखा खडा किया जा रहा है। जबकि सब अनिश्चित है,कुछ भी तो निश्चित नहीं है । और यदि इस अनिश्चितता का पता चल जाय तो उसे महशूस होगा कि जो वह खोज रहा है वह गलती कर रहा है ।
3-असली घर की तलाश -
हम जिसे अपना घर समझते हैं,क्या सचमुच वह हमारा घर है?नहीं !वह तो एक सराय है,धर्मशाला है, यही तो हमारी भूल है। एक बार एक बादशाह इब्राहिम की छत पर सोया था,आधी रात्रि को उसकी नींद खुली तो देखा कि कोई छत पर चल रहा है, बादशाह ने चिल्लाकर पूछा कि तुम कौन हो !तो उसने हंसकर कहा कि सोये रहो ,परेशान मत होओ । मेरा ऊंट खो गया है, उसे खोज रहा हूं । इब्राहिम ने कहा पागल,कहीं मकानों की छतों पर कभी ऊंट खोये सुना है क्या ? वह जोर से हंसा और कहा कि तुमने मुझे पागल कहा,लेकिन जहॉ तू जिन्दगी खोज रहा है, वहॉ कभी किसी को जिन्दगी खोजते हुये पाया है ?जहॉ मृत्यु है वहॉ आदमी अमृत को खोजता है और जहॉ अनिश्चय है वहॉ निश्चय को खोजता है। जहॉ असत्य है वहॉ सत्य को खोजता है । इस तरह के लोग पागल नहीं तो मुझे पागल कहने का क्या कारण है? शीघ्र इब्राहिम ने उठकर सिपाहियों से उस आदमी को पकडकर लाने के लिए कहा कि लगता है यह आदमी मतलव की बात कर रहा है । लेकिन वह आदमी पकडा नहीं जा सका ।
सारे दिन इब्राहिम चिन्तित दरवार में बैठा है। आदमियों ने सारी राजधानी खोज डाली मगर पता नहीं चला कि वह आदमी कौन था । जो रातभर छत पर ऊंट को खोज रहा था । सबने कहा कि वह पागल था, लेकिन बादशाह ने कहा आप क्यों पागल हो रहे हो यह तो मैने भी उसे कहा था लेकिन जो जबाव उसने मुझे दिया है उससे मैं पागल हो गया हूं । और वह पागल नहीं रहा । बस उसकी खोज करो । बहुत खोज के बाद भी पता नहीं चला। लेकिन कुछ देर बाद दरवाजे पर झगडा होने लगा । कोई आदमी दरवान से कह रहा था कि मुझे इस सराय में ठहर जाने दो । और वह दरवान कह रहा था कि यह सराय नहीं है महॉशय यह राजा का महल है। वह आदमी कह रहा था कि झूठ मत बोलो,मैं जानता हूं कि यह सराय है धर्मशाला है, मुझे ठहर जाने दो। बात इतनी बढी कि उस दरवान ने कहा कि आप पागल तो नहीं हैं ?
राजा भागकर बाहर आया और उस आदमी को अन्दर लाकर पूछा कि क्या बात है ? उस आदमी ने फिर कहा कि मैं इस सराय में ठहरना चाहता हू,आपको कोई एतराज है ? राजा ने कहा कि पागल तो नहीं हो ?यह सराय नहीं है मेरा महल है ?उस आदमी ने कहा कि मैं इससे पहले भी आया था,तब कोई दूसरा आदमी इस सिंहासन पर बैठा था । वह भी कहता था कि यह मेरा निवास है । राने कहा वे मेरे पिता थे । और उससे पहले जब तुम आये तो वे उनके भी पिता थे । थो उस फकीर आदमी ने कहा कि जब मैं दुबारा आऊंगा,तुम ही मिलोगे, क्या यह पक्का है ? इब्राहिम ने कहा कि यह तो मुश्किल है, कि फिर मैं रहूं या न रहूं । उस आदमी ने कहा कि तो फिर यह सराय है । तुम भी ठहरे हो,मुझे भी ठहर जाने दो । इसमें तो बहुत लोग ठहर चुके हैं,मैं भी ठहर जाता हूं । इब्राहिम खडा होकर कहने लगा मिल गया वह आदमी जो रात में छत पर ऊंट को खोज रहा था । लगता है तुम वही आदमी हो । अब तुम ठहरो और मैं जाता हूं । उस फकीर आदमी ने कहा कहॉ जाते हो? राजा ने कहा ,अब घर खोजने जाता हूं । क्योंकि अबतक इस सराय को घर समझ बैठा था । अर्थात जिसे हम जिन्दगी समझ रहे हैं, और जिसे हम सुरक्षित समझ रहे थे मौत नहीं, समझ रहे थे यह सिर्फ धोखा है । और इस धोखे को टूटने में देर नहीं लगती है। यह धोखा किसी दिन टूट जाता है। करने का समय बचा है कुछ किया जदा सकता है । जहॉ जहॉ आपको दिखाई देता है जरा गौर से देखना,,जैसा दिखाई दे रहा है ठीक उसका उल्टा दिखाई पडेगा। और जहॉ दिखाई पडता है,पैरों के नीचे चट्टानें व गढ्ढे के सिवाय कुछ भी नहीं है । वहॉ जिन्दगी सुरक्षित दिखती है,मगर वहॉ तो मौत सुरक्षित है,और कुछ भी सुरक्षित नहीं है ।
काश यदि हमें जिन्दगी की असली तस्वीर दिखाई देती तो फिर हम सराय को छोडकर घर की खोज में नहीं निकलते ? लेकिन निकलना ही पडेगा । कोई उपाय भी तो नहीं है । और वही खोज परमात्मा की खोज बन जाती है । क्योंकि परमात्मा के अतिरिक्त और कोई घर नहीं है । वाकी सब सराय हैं । घर तो वह है जिसमें पहुंचकर वापस लौटना न हो । जिसमें पहुंचकर कहीं और पहुंचने की कोई जगह शोष न बचे वही घर है ।
4- परमात्मा की खोज में पागल होना सीखें-
अच्छा है परमात्मा के लिए पागल हो जाओ । रवीन्द्रनाथ ने लिखा है कि जब मैं परमात्मा को खोजता था तो कभी दूर तारे पर उसकी झलक दिखाई पडती,लेकिन जब मैं उस तारे के पास पहुंचता तो वह और आगे निकल चुका था । किसी दूर किसी ग्रह पर उसकी चमक का अनुभव हुआ, लेकिन जबतक मैने वहॉ की यात्रा की,उसके कदम कहीं और जा चुके थे । इस तरह मैं जन्म जन्मों तक खोजता रहा,लेकिन वह नहीं मिला। एक दिन अनायास ही मैं उस जगह पर पहुंच गया जहॉ उसका भवन था । द्वार पर ही लिखा था कि परमात्मा यहीं रहते हैं ।खुशी से भर आया । मन,जिसे जन्म जन्मों से खोज रहा था वह मिल गया अब । लेकिन जैसे ही उसकी सीढी पर पैर रखा कि खयाल आया -सुना है कि अगर उससे मिलना है तो मिटना पडता है । और उसी समय मनमें एक भय समा गया कि कि सीढी चढूं या न चढूं ?क्योंकि यदि सामने गया तो मिट जाऊंगा । अब क्या करें? अपने को बचाएं या उसको पा लूं ? पिर हिम्मत बॉधकर सीढियॉ चढकर द्वार तक पहुंच गया, उसके द्वार की सॉगल हाथ में ले ली । फिर मन डरने लगा कि अगर द्वार खोल दिया तो फिर क्या होगा ?मैं तो मिट जाऊंगा । मिटने के खयाल से प्रॉण इतने घबडा गये संगल धीरे-धीरे छोड दी कि कहीं भूल से आवाज न हो जाय, कहीं वह द्वार न खोल दे,पैर की जूतियॉ हाथ में ले ली कि कहीं सीढियों पर आवाज न हो जॉय। वहॉ से वापस भाग कर आ गया उसके बाद लौटकर नहीं देखा ।
अब भली भॉति पता है मुझे कि उसका मकान कहॉ है। फिर भी उसे खोजता फिरता हूं। और भली भॉति पता है मुझे कि उसका मकान कहॉ है। लेकिन फिर भी खोजता हूं। लेकिन उसके मकान के पास जाकर ढरता हूं इसलिए कि मिटने की हिम्मत अभी तक नहीं जुटा पाया । भगवान को तो पाना चाहता हूं,लेकिन खुद मिटना नहीं चाहता हूं ।
जब ध्यान में प्रवेश करता हूं ,फिर हमें उसका द्वार दिखाई देगा,उसके द्वार पर जैसे ही हम खडे होंगे,फिर वही सवाल खडा हो जायेगा -लगेगा जैसे अपने मिटने का वक्त आ गया। दिल कहता है कि भय से पीछे मत लौटना ,अन्यथा जन्म-जन्मों तक खोजते रहेंगे । फिर मिलन न हो सकेगा ।
इस सम्बन्ध में सेकडों प्रयोग हुये हैं, गहराई से प्रयोग किये गये हैं। हमारे एक मित्र ने इस सम्बन्ध में कहा कि मुझे लगा कि जैसे मैं पागल न हो जाऊं। उसे भी वही डर कि कहीं मैं मिट न जाऊं। इस डर से उन्होंने अपने को सम्भाल लिया, दरवाजे की तरफ आये ,स्वासें छोड दी,जूते पैर से उठा लिए कि कहीं आवाज न आ जाय। कहीं पागल तो न हो जाऊं ! क्योंकि अगर प्रेम में पागल होने का ख्याल आये तो प्रेम मर जाता है । लेकिन परमात्मा के द्वार पर यह डर ! फिर खयाल आया कि परमात्मा के लिए अगर पागल नहीं हो सकते हैं तो फिर और किस चीज के लिए पागल होंगे ? अगर धन के पीछे पागल होने से,यश के परीछे पागल होने से,पद के पीछे पागल होने से या उन सब चीजों के पीछे पागल होंगे तो कुछ भी नहीं मिलेगा, खाली हाथ रह जायेंगे । उस परमात्मा के लिए पागल होना बेहत्तर है । क्योंकि उसके लिए पागल होते ही वह सब मिल जाता है जो फिर कभी छीना नहीं जा सकता है । और मजे की बात तो यह है कि जो बिद्धिमान बन बैठे हैं,वे तो इन पागलों के मुकाबले कम नहीं हैं,जो कि उनके द्वार पर नाचते हुये प्रवेश करते हैं ।
5-ईश्वर के मरने की स्थिति-
गॉड इज डेड,ईस्वर मर गया है । नीत्से ने कहा था ,लेकिन जिसकी जिन्दगी में ईश्वर मर गया हो,उसकी जिन्दगी में पागलपन के सिवाय और कुछ भी बच नहीं सकता है । इसीलिए नीत्से पागल होकर मरा था । लेकिन डर है कि कहीं पूरी मनुष्यता पागल होकर न मरे । क्योंकि जो नीत्से ने कहा था आज उसे करोणों लोग कहते हैं । रूस में बीस करोण लोग कहते हैं कि गॉड इस डेड,ईश्वर मर चुका है । चीन में अस्सी करोण लोग, यूरोप और अमेरिका और भारत की नईं पीढियॉ स्वीकार करते हैं कि ईश्वर मर गया है । उस समय नीत्से पागल होकर मरा था कहीं ऐसा न हो कि पूरी मनुष्यता को पागल होकर न मरना पडे । क्योंकि ईश्वर के बिना न तो नीत्से जिन्दा रह सकता है और न कोई जिन्दा रह सकता है । सच तो यह है कि ईश्वर के मरने का मतलव कि हमारे भीतर जो भी श्रेष्ठ है,जो भी सुन्दर है,जो भी शुभ है,जो भी सत्य है,उसकी खोज मर चुकी है।ईश्वर के मरने का मतलव यही होता है कि जिन्दगी में रोशनी और प्रकाश की खोज मर गई है । ईश्वर के मरने का मतलव होता है हमने अपनी आत्मा की खोज बन्द कर दी है । हमने प्रॉणों की खोज बंद कर दी है ।वे मन्दिर खडे हैं,वहॉ घण्टियॉ बज रही हैं चर्च में परमात्मा को पुकारा जा रहा है। लेकिन आदमियों के प्रॉणों का मन्दिर गिरा हुआ दिखाई पड रहा है,आत्मा का चर्च कहीं दिखाई नहीं दे रहा है। केवल पत्थर की दीवार रह गईं हैं , और उनमें किराये के पुजारी परमात्मा का नाम भी ले रहे हैं,लेकिन आदमी के प्राणों की प्यास और प्रेम परमात्मा की तरफ अर्पित होना बन्द हो चुका है । और यदि इस सत्य को अगर ठीक ढंग से न समझा जा सके, तो शायद फिर हम उस प्रेम को दुबारा जगा भी नहीं सकेंगे ।
काश यदि हमें जिन्दगी की असली तस्वीर दिखाई देती तो फिर हम सराय को छोडकर घर की खोज में नहीं निकलते ? लेकिन निकलना ही पडेगा । कोई उपाय भी तो नहीं है । और वही खोज परमात्मा की खोज बन जाती है । क्योंकि परमात्मा के अतिरिक्त और कोई घर नहीं है । वाकी सब सराय हैं । घर तो वह है जिसमें पहुंचकर वापस लौटना न हो । जिसमें पहुंचकर कहीं और पहुंचने की कोई जगह शोष न बचे वही घर है ।
4- परमात्मा की खोज में पागल होना सीखें-
अच्छा है परमात्मा के लिए पागल हो जाओ । रवीन्द्रनाथ ने लिखा है कि जब मैं परमात्मा को खोजता था तो कभी दूर तारे पर उसकी झलक दिखाई पडती,लेकिन जब मैं उस तारे के पास पहुंचता तो वह और आगे निकल चुका था । किसी दूर किसी ग्रह पर उसकी चमक का अनुभव हुआ, लेकिन जबतक मैने वहॉ की यात्रा की,उसके कदम कहीं और जा चुके थे । इस तरह मैं जन्म जन्मों तक खोजता रहा,लेकिन वह नहीं मिला। एक दिन अनायास ही मैं उस जगह पर पहुंच गया जहॉ उसका भवन था । द्वार पर ही लिखा था कि परमात्मा यहीं रहते हैं ।खुशी से भर आया । मन,जिसे जन्म जन्मों से खोज रहा था वह मिल गया अब । लेकिन जैसे ही उसकी सीढी पर पैर रखा कि खयाल आया -सुना है कि अगर उससे मिलना है तो मिटना पडता है । और उसी समय मनमें एक भय समा गया कि कि सीढी चढूं या न चढूं ?क्योंकि यदि सामने गया तो मिट जाऊंगा । अब क्या करें? अपने को बचाएं या उसको पा लूं ? पिर हिम्मत बॉधकर सीढियॉ चढकर द्वार तक पहुंच गया, उसके द्वार की सॉगल हाथ में ले ली । फिर मन डरने लगा कि अगर द्वार खोल दिया तो फिर क्या होगा ?मैं तो मिट जाऊंगा । मिटने के खयाल से प्रॉण इतने घबडा गये संगल धीरे-धीरे छोड दी कि कहीं भूल से आवाज न हो जाय, कहीं वह द्वार न खोल दे,पैर की जूतियॉ हाथ में ले ली कि कहीं सीढियों पर आवाज न हो जॉय। वहॉ से वापस भाग कर आ गया उसके बाद लौटकर नहीं देखा ।
अब भली भॉति पता है मुझे कि उसका मकान कहॉ है। फिर भी उसे खोजता फिरता हूं। और भली भॉति पता है मुझे कि उसका मकान कहॉ है। लेकिन फिर भी खोजता हूं। लेकिन उसके मकान के पास जाकर ढरता हूं इसलिए कि मिटने की हिम्मत अभी तक नहीं जुटा पाया । भगवान को तो पाना चाहता हूं,लेकिन खुद मिटना नहीं चाहता हूं ।
जब ध्यान में प्रवेश करता हूं ,फिर हमें उसका द्वार दिखाई देगा,उसके द्वार पर जैसे ही हम खडे होंगे,फिर वही सवाल खडा हो जायेगा -लगेगा जैसे अपने मिटने का वक्त आ गया। दिल कहता है कि भय से पीछे मत लौटना ,अन्यथा जन्म-जन्मों तक खोजते रहेंगे । फिर मिलन न हो सकेगा ।
इस सम्बन्ध में सेकडों प्रयोग हुये हैं, गहराई से प्रयोग किये गये हैं। हमारे एक मित्र ने इस सम्बन्ध में कहा कि मुझे लगा कि जैसे मैं पागल न हो जाऊं। उसे भी वही डर कि कहीं मैं मिट न जाऊं। इस डर से उन्होंने अपने को सम्भाल लिया, दरवाजे की तरफ आये ,स्वासें छोड दी,जूते पैर से उठा लिए कि कहीं आवाज न आ जाय। कहीं पागल तो न हो जाऊं ! क्योंकि अगर प्रेम में पागल होने का ख्याल आये तो प्रेम मर जाता है । लेकिन परमात्मा के द्वार पर यह डर ! फिर खयाल आया कि परमात्मा के लिए अगर पागल नहीं हो सकते हैं तो फिर और किस चीज के लिए पागल होंगे ? अगर धन के पीछे पागल होने से,यश के परीछे पागल होने से,पद के पीछे पागल होने से या उन सब चीजों के पीछे पागल होंगे तो कुछ भी नहीं मिलेगा, खाली हाथ रह जायेंगे । उस परमात्मा के लिए पागल होना बेहत्तर है । क्योंकि उसके लिए पागल होते ही वह सब मिल जाता है जो फिर कभी छीना नहीं जा सकता है । और मजे की बात तो यह है कि जो बिद्धिमान बन बैठे हैं,वे तो इन पागलों के मुकाबले कम नहीं हैं,जो कि उनके द्वार पर नाचते हुये प्रवेश करते हैं ।
5-ईश्वर के मरने की स्थिति-
गॉड इज डेड,ईस्वर मर गया है । नीत्से ने कहा था ,लेकिन जिसकी जिन्दगी में ईश्वर मर गया हो,उसकी जिन्दगी में पागलपन के सिवाय और कुछ भी बच नहीं सकता है । इसीलिए नीत्से पागल होकर मरा था । लेकिन डर है कि कहीं पूरी मनुष्यता पागल होकर न मरे । क्योंकि जो नीत्से ने कहा था आज उसे करोणों लोग कहते हैं । रूस में बीस करोण लोग कहते हैं कि गॉड इस डेड,ईश्वर मर चुका है । चीन में अस्सी करोण लोग, यूरोप और अमेरिका और भारत की नईं पीढियॉ स्वीकार करते हैं कि ईश्वर मर गया है । उस समय नीत्से पागल होकर मरा था कहीं ऐसा न हो कि पूरी मनुष्यता को पागल होकर न मरना पडे । क्योंकि ईश्वर के बिना न तो नीत्से जिन्दा रह सकता है और न कोई जिन्दा रह सकता है । सच तो यह है कि ईश्वर के मरने का मतलव कि हमारे भीतर जो भी श्रेष्ठ है,जो भी सुन्दर है,जो भी शुभ है,जो भी सत्य है,उसकी खोज मर चुकी है।ईश्वर के मरने का मतलव यही होता है कि जिन्दगी में रोशनी और प्रकाश की खोज मर गई है । ईश्वर के मरने का मतलव होता है हमने अपनी आत्मा की खोज बन्द कर दी है । हमने प्रॉणों की खोज बंद कर दी है ।वे मन्दिर खडे हैं,वहॉ घण्टियॉ बज रही हैं चर्च में परमात्मा को पुकारा जा रहा है। लेकिन आदमियों के प्रॉणों का मन्दिर गिरा हुआ दिखाई पड रहा है,आत्मा का चर्च कहीं दिखाई नहीं दे रहा है। केवल पत्थर की दीवार रह गईं हैं , और उनमें किराये के पुजारी परमात्मा का नाम भी ले रहे हैं,लेकिन आदमी के प्राणों की प्यास और प्रेम परमात्मा की तरफ अर्पित होना बन्द हो चुका है । और यदि इस सत्य को अगर ठीक ढंग से न समझा जा सके, तो शायद फिर हम उस प्रेम को दुबारा जगा भी नहीं सकेंगे ।
6-खाली हाथ आना और जाना-
आदमी खाली हाथ जन्म लेकर आता है,औरअन्त में खाली हाथ चला जाता है । कहा जाता है कि सिकन्दर ने मरते वक्त कहा था कि,अर्थी में मेरे दोनों हाथ बाहर लटकाये रखना ,यही उसकी वसीयत थी। गॉव के लोग उस समय हैरान थे जब सिकन्दर के दोनों हाथ बाहर लटके थे । यह पागलपन भी क्या ?आजतक किसी भी अर्थी के हाथ बाहर लटके नहीं देखे । भिखारी मरता है तो हाथ अन्दर होते हैं । अगर सम्राट मरे तो हाथ बाहर रहे । सिकन्दर को यह पागलपन क्यों सूझा ? सेनापतियों ने कहा , हमने भी यही कहा था, लेकिन उन्होंने माना ही नहीं .यही कि मेरे हाथ बाहर लटकाये रखना ।ताकि लोग ठीक से देख सकें कि मैं खाली हाथ जा रहा हूं। जिन्दगीभर पागलपन रहा और और हाथ फिर भी खाली के खाली हैं । कुछ नहीं मिला । बहुत दौडा,बहुत लडा,बहुत परेशान हुआ,लेकिन जाते वक्त खाली हाथ गया । एक-एक आदमी देख ले कि सिकन्दर खाली हाथ जा रहा है । इस धरती पर दो तरह के पागल दिखाई देते हैं। एक तो परमात्मा की ओर जाता है,जहॉ हम अपने को खोकर सबकुछ पा लेते हैं ।और एक जो अपने को अहंकार की दिशा में ले जाता है, जहॉ हमें कुछ भी मिल जाय तो कुछ मिलता नहीं। अन्ततः हम खाली हाथ रह जाते हैं । यदि अहंकार के लिए ही पागल होना है तो हम सब पागल हैं । अहंकार के लिए पागल हैं । लेकिन यह पागलपन हमें दिखाई नहीं देता है । क्योंकि हम सभी उसमें सहमत और साथी हैं । एगर एक गॉव में सभी पागल हो जॉय तो फिर उस गॉव में पता ही नहीं चलेगा कि कोई पागल हो गया। बल्कि उस गॉव में खतरा है कि किसी आदमी का अगर दिमाग ठीक हो जाय तो सारा गॉव विचार करने लगेगा ।
आदमी खाली हाथ जन्म लेकर आता है,औरअन्त में खाली हाथ चला जाता है । कहा जाता है कि सिकन्दर ने मरते वक्त कहा था कि,अर्थी में मेरे दोनों हाथ बाहर लटकाये रखना ,यही उसकी वसीयत थी। गॉव के लोग उस समय हैरान थे जब सिकन्दर के दोनों हाथ बाहर लटके थे । यह पागलपन भी क्या ?आजतक किसी भी अर्थी के हाथ बाहर लटके नहीं देखे । भिखारी मरता है तो हाथ अन्दर होते हैं । अगर सम्राट मरे तो हाथ बाहर रहे । सिकन्दर को यह पागलपन क्यों सूझा ? सेनापतियों ने कहा , हमने भी यही कहा था, लेकिन उन्होंने माना ही नहीं .यही कि मेरे हाथ बाहर लटकाये रखना ।ताकि लोग ठीक से देख सकें कि मैं खाली हाथ जा रहा हूं। जिन्दगीभर पागलपन रहा और और हाथ फिर भी खाली के खाली हैं । कुछ नहीं मिला । बहुत दौडा,बहुत लडा,बहुत परेशान हुआ,लेकिन जाते वक्त खाली हाथ गया । एक-एक आदमी देख ले कि सिकन्दर खाली हाथ जा रहा है । इस धरती पर दो तरह के पागल दिखाई देते हैं। एक तो परमात्मा की ओर जाता है,जहॉ हम अपने को खोकर सबकुछ पा लेते हैं ।और एक जो अपने को अहंकार की दिशा में ले जाता है, जहॉ हमें कुछ भी मिल जाय तो कुछ मिलता नहीं। अन्ततः हम खाली हाथ रह जाते हैं । यदि अहंकार के लिए ही पागल होना है तो हम सब पागल हैं । अहंकार के लिए पागल हैं । लेकिन यह पागलपन हमें दिखाई नहीं देता है । क्योंकि हम सभी उसमें सहमत और साथी हैं । एगर एक गॉव में सभी पागल हो जॉय तो फिर उस गॉव में पता ही नहीं चलेगा कि कोई पागल हो गया। बल्कि उस गॉव में खतरा है कि किसी आदमी का अगर दिमाग ठीक हो जाय तो सारा गॉव विचार करने लगेगा ।
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