1-मूलाधार (पहला चक्र)
यह हमारे शरीर के सात चक्रों में पहला चक्र है।चार पंखुडियों वाला।रीड के अंत में स्थित त्रिकोंणाकार पावन अस्थि के नीचे स्थित है।इस चक्र को रीड की हड्डी से बाहर बनाया गया है।यह हमारी मल विसर्जन की क्रियाओं, जिसमें योन गतिविधियॉ भी सम्मिलित हैं, को चलाता है।यद्यपि कुण्डलिनी को छः केन्द्रों को पार करना होता है, फिर भी मूलाधार चक्र कुण्डलिनी जागृति के समय उसकी पावनता एवं सतीत्व की रक्षा करता है।मूलाधार हमारी अबोधिता के लिए है, और हमें समझना चाहिए कि अबोधिता को नष्ट नहीं किया जा सकता है ।कामुक विचार इस चक्र को दुर्वल करते हैं।प्राकृतिक नियम के निरंकुश त्याग के बावजूद भी मूलाधार की शक्ति सुप्त या रुग्ण अवस्था में बनी रहती है और इसे कुण्डलिनी जागृति द्वारा रोग मुक्त करके इसकी वास्तविक अवस्था में लाया जा सकता है ।
यह हमारे शरीर के सात चक्रों में पहला चक्र है।चार पंखुडियों वाला।रीड के अंत में स्थित त्रिकोंणाकार पावन अस्थि के नीचे स्थित है।इस चक्र को रीड की हड्डी से बाहर बनाया गया है।यह हमारी मल विसर्जन की क्रियाओं, जिसमें योन गतिविधियॉ भी सम्मिलित हैं, को चलाता है।यद्यपि कुण्डलिनी को छः केन्द्रों को पार करना होता है, फिर भी मूलाधार चक्र कुण्डलिनी जागृति के समय उसकी पावनता एवं सतीत्व की रक्षा करता है।मूलाधार हमारी अबोधिता के लिए है, और हमें समझना चाहिए कि अबोधिता को नष्ट नहीं किया जा सकता है ।कामुक विचार इस चक्र को दुर्वल करते हैं।प्राकृतिक नियम के निरंकुश त्याग के बावजूद भी मूलाधार की शक्ति सुप्त या रुग्ण अवस्था में बनी रहती है और इसे कुण्डलिनी जागृति द्वारा रोग मुक्त करके इसकी वास्तविक अवस्था में लाया जा सकता है ।
2-स्वादिष्ठान (दूसरा चक्र)-
छः पंखुडियों वाला ये केन्द्र स्वादिष्ठान कहलाता है।यह पेट में स्थित है।यह चक्र हमें सृजनात्मक तथा भावमय विचारों के लिए शक्ति प्रदान करता है ।चर्बी के अणुओं को मस्तिष्क कोषाणुओं में परिवर्तित करके मस्तिष्क को ऊर्जा प्रदान करता है।बहुत अधिक सोच-विचार और भविष्य के लिए योजनायें बनाना इस चक्र को दुर्वल करता है और व्यक्ति का चित्त बहुत दुर्वल हो जाता है।चित्त की पीठ का यही चक्र संचालन करता है। अग्याशय,गर्भाशय तथा बडी आन्त्र के कुछ हिस्सों को भी यही चक्र नियंत्रित करता है ।कुण्डलिनी जागृत होकर जब व्यक्ति के इस चक्र को खोलती है तो व्यक्ति अपनी गतिविधियों में अत्यन्त सृजनात्मक,गतिशीलएवं स्वाभाविक हो दाता है।
3- नाभि(तीसरा चक्र)
दस पंखुडियों वाला यह चक्र नाभि चक्र कहलाता है।यह चक्र हमारे अन्दर चीजों को संभालने की शक्ति प्रदान करता है।यह चक्र पचाने स्वीकार करने और पेट,आंत्र,एवं जिगर के कुछ भागों की देख-भाल करने के कार्य के लिए जिम्मेदार है।प्लीहा द्वारा नियमित की जाने वाली जैविंकलय को भी नाभिचक्र नियंत्रित करता है। यह चक्र मानव की सुख समृद्धि और उन्नति को देखता है।जब साधक की कुण्डलिनी जागृत होती है तो इस चक्र का भेदन करती है,जिससे उसके अन्दर संतोष आ जाता है और वह अत्यनत उदार हो जाता है।
भव सागर
नाभिचक्र के चारों ओर भव सागर है।जीवन के सभी पक्ष जैसे व्यक्तित्व,ग्रहों एवं गुरुत्वाकर्षण शक्ति का हमारी व्यवहार प्रणाली एवं शारीरिक भरण-पोषण पर प्रभाव आदि के लिए यह जिम्मेदार है ।यह बाह्य प्रभाओं का क्षेत्र है ।जब हम अंधकारमय अवस्था में होते हैं (आत्म साक्षात्कार से पूर्व) तब यह उस शून्यता का प्रतीक है जो हमारी चेतना के स्तर को सत्य से पृथक करती है।इस रिक्ति को जब कुण्डलिनी भर देती है तब हमारा चित्त भ्रम-सागर से निकलकर चेतना की वास्तविकता में प्रवेश करता है।यह दस आदि गुरुओं का चक्र है जो मानवता को वास्तविकता एवं सत्य के साम्राज्य में ले जाने के लिए अवतरित हुये।कुण्डलिनी जब इस रिक्ति को भर देती है तो व्यक्ति स्वयं का गुरु बन जाता हैऔर उसके अन्तर्गत प्राकृतिक मर्यादायें जागृत हो जाती हैं ।ऐसा व्यक्ति अत्यन्त ईमानदार एवं योग्य अगुआ बन जाता हैऔर उसकी सभी अभिव्यक्तियों में गम्भीरता होती है।
4- अनाहत(चौथा चक्र)
बारह पंखुडियों वाला ये चक्र अनाहत कहलाता है।ये चक्र ह्दय चक्र के अनुरूप है जो बारह वर्ष की आयु तक रोग प्रतिकारक शक्ति पैदा करता है।उसके बाद रोग प्रतिकारक हमारे शरीर तंत्र में फैल जाते है और शरीर या मस्तिष्क पर होने वाले किसी भी आक्रमण का मुकाबला करते हैं।व्यक्ति पर भावनात्मक या शारीरिक आक्रमण की स्थिति में रोग प्रतिकारकों को सूचना दी जाती है क्योंकि । ह्दय तथा फेफडों की कार्य प्रणाली का नियमन करते हुये ये केन्द्र श्वास प्रक्रिया को नियंत्रित करता है।कुण्डलिनी जब इस चक्र का भेदन करती है तो व्यक्ति अत्यन्त आत्म विश्वस्त,सुरक्षित,चारित्रिक रूप सेजिम्मेदार एवं भावनात्मक रूप से संतुलित व्यक्तित्व का बन जाता है।ऐसा व्यक्ति अत्यन्त हितैषी एवं बिना किसी स्वार्थ के मानवता एवं सर्वप्रिय बन जाते हैं ।
5-विशुद्धि(पॉचवॉ चक्र)
मेरुरज्जु के ग्रीवा में स्थापित सोलह पंखुडियों वाला ये चक्र विशुद्धि चक्र कहलाता है ।यह कान,गला,गर्दन,दॉत,जिह्वा,हाथ,एवं भाव भंगिमाओं आदि के कार्यों को नियमित करता है।ये चक्र अन्य लोगों से सम्पर्क के लिए जिम्मेदार हैं क्योंकि इन्हींअंगों के माध्यम से हम अन्य लोगों से सम्पर्क स्थापित करते हैं।शारीरिक रूप में यह गल-ग्रंथि के कार्य को नियंत्रित करता है। कटु वॉणी,धूम्रपान,बनावटी व्यवहार,एवं अपराध –भाव इस केन्द्र को अवरोधित करते हैं।कुण्डलिनी जब इस चक्र का भेदन करती है तो व्यक्ति अपने व्यवहार में अत्यन्त सत्यनिष्ठ,कुशल एवं मधुर अहं को बढावा दिये परिस्थितियों पर नियंत्रण करने में वह अत्यन्त –कुशल हो जाता है।
6- आज्ञा(छटा चक्र)
दो पंखुडियों के इस चक्र का नाम आज्ञा चक्र है। मस्तिष्क में जहॉ एक दूसरे को पार करती है वह आज्ञा चक्र का स्थान है।ये चक्र पीयुष,तथा शंकुरूप ग्रंथियों की देख-ऊल करता है।शरीर तंत्र में अहं तथा प्रतिअहं नाम की संस्थाओं की अभिव्यक्ति करती है।यह चक्र आंखों की देख-ऊल करता है इसलिए सिनेमा, कम्प्यूटर,टेलिविजन,पुस्तकों आदि पर हर समय दृष्टि गढाये रखना इस चक्र को दुर्वल करता है।बहुत अधिक मानसिक व्यायाम एवं बौद्धिक कलाबाजियॉ इस चक्र को अवरोधित करती है और व्यक्ति के अन्दर अहं- भाव विकसित हो जाता है।जब कुण्डलिनी इस चक्र का भेदन करती है तो व्यक्ति एकदम से निर्विचारऔर क्षमाशील हो जाता है निर्विचारिता एवं क्षमाशील इस चक्र का सार है।अर्थात यह चक्र क्षमाशक्ति प्रदान करता है ।
7-सहस्रार (सातवॉ चक्र)
मस्तिष्क या तालू क्षेत्र स्थित हजार पंखुडियों वाला ये महत्वपूर्ण चक्र सहस्रार कहलाता है।वास्तव में इसमें एक हजार नाणियॉ हैं यदि मस्तिष्क को आडा काटे तो सुंदर पंखुडियों की शक्ल में सहस्रदल कमल बनाती हुई इन नाडियों को आप देख सकते हैं।आत्म साक्षात्कार से पूर्व वन्द कमल की तरहयह चचक्र मस्तिष्क के तालू क्षेत्र को आच्छादित करता है। जागृत होकर कुण्डलिनी जब इस चक्र का भेदन करती है तो सारी नाडियॉ भी जागृत हो जाती हैं ऐर सभी नाडी केन्द्रों को ज्योंतिर्मय करती है हम कहते हैं कि व्यक्ति आत्म साक्षात्कारी (ज्योतिर्मय है)तालू क्षेत्र का भेदन करके कुण्डलिनी ब्रह्मॉण्ड में एक मार्ग खोलती है और इसे हम सिर पर शीतल चैतन्य –लहरियों के रूप में अनुभव करते हैं।यह योग का वास्तवीकरण है ,परमात्मा की सर्वव्यापी शक्ति से एकाकारिता (आत्म साक्षात्कार)हो जाता है ।
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