हम बहुत वर्षों से जीकर देखते हैं लेकिन फिर पाते कुछ भी नहीं हैं ।लेकिन फिर भी जीने की आकॉक्षा करते जाते हैं ।कहीं यह जीने की आकॉक्षा का पागलपन तो नहीं है । क्योंकि जीने की तृष्णॉ से भरी लाइफ में तो परमात्मा के द्वार पर प्रवेश तो सम्भव नहीं है । एक फकीर को सम्राट ने फॉसी की सजा सुनाई । रिवाज के अनुसार उस देश में नदी के किनारे फॉसी का तख्ता खडा करके फॉसी दी जाती है ,लटकते हुये उस आदमी को वहीं छोडना होता है,फिर उसकी लॉश नदी में गिर जाती और बह जाती है। उस फकीर को भी उसी प्रकार फॉसी पर चढाने की व्यवस्था की जा रही थी नदी के किनारे सूली बॉधी जा रही थी, फॉसी पर लटकने ही वाला था तो फकीर के मुंह से निकला मित्रो जरा एक बात ध्यान रखना कि फंदा ठीक ढंग से लगाना ! पिछली बार मैं बडी मुश्किल में पड गया था । कुछ भूल ऐसी हो गई थी कि गले में जो फंदा लगा था वह मजबूत नहीं था ! जिससे मैं जिन्दा ही नदी में गिर गया था ।मुझे तैरना नहीं आता ! मगर किसी तरह किनारे लग गया । क्या मतलव ?हम समझे नहीं ? फॉसी पर चढाने वालों ने कहा ।
फिर पता चला कि फकीर को दस साल पहले भी यहीं पर फॉसी दी गई थी,और दुबारा फॉसी दी जा रही है। जो फॉसी दे रहे थे हैरान हुये कि यह आदमी कैसा है जिसे डर नहीं है और कहता है ठीक ढंग से फंदा लगाना ! उन्होंने उससे पूछा कि तुम जीना नहीं चाहते हो ? तुम्हें तो भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए थी कि भगवान फंदा पिछले समय की तरह ढीला हो जाय ! तो उस फकीर ने कहा कि मैने दस साल जीकर देख लिया ! कुछ पाया नहीं ! अब दुबारा किस मुंह से भगवान से प्रार्थना कर सकता हूं ।
इसलिए हमें याद रखना होगा कि अपनी जिन्दगी में कभी-कभी इस बात पर विचार जरूर करें कि इस जिन्दगी में हमने क्या पाया ! और यही प्रश्न हमें जिन्दगी को व्यर्थ दिखने का कारण बन सकेगा । क्योंकि जबतक यह जिन्दगी व्यर्थ न हो जाय तबतक दूसरी सार्थक जिन्दगी का द्वार नहीं खुल सकता है ।
इस जिन्दगी की व्यर्थता का अर्थ है कि हम अब इस जिन्दगी के पार होने के लिए तैयार हैं ।
जिस प्रकार बच्चा पहली कक्षा से दूसरी कक्षा में जाता है, इसका मतलव है कि अब पहली कक्षा व्यर्थ हो गई, और ऊपर की कक्षा में पहुंच गये । इसी प्रकार जब हमारी यह जिन्दगी व्यर्थ होगी तथी हम ऊपर की जिन्दगी में उठ सकते हैं । लेकिन होता क्या है कि हम इस जिन्दगी के व्यर्थ होने से पहले ही दूसरी जिन्दगी चाहते हैं ।एक इच्छा पूरी नहीं हो पाती कि दूसरी में संलग्न हो जाते हैं । दो इच्छाओं के बीच खडे होकर देखकर पुनर्विचार कर लें कि हमारी जो यह दौड है उससे हमें कुछ मिल रहा है कि नहीं मिल रहा है । ।
2-जिन्दगी एक बहाव है -
जो लोग इस जिन्दगी में मकान बनाते हैं,उन्हैं इस बहाव का पता नहीं हैा,इसीलिए तो नदी पर मकान बनाने की कोशिश में जुटे रहते हैं और नष्ट हो जाते हैं । हर चीज को जोर से पकड के रखते हैं,जल धारा के खिलाफ ,जीवन की धारा के खिलाफ, तो फिर परेशान तो होंगे ही ,अपने ही हाथों से । एक नदीं में बाढ का पानी बहते चले जा रहा था छोटे-छोटे तिनके भी बहते चले जा रहे थे । एक तिनका नदी में आडा पडा हुआ नदी से लड रहा था और कोशिश कर रहा था कि नदी को आगे न बढने दिया जाय । नदी को कहॉ पता कि तिनका नदी को रोकने का प्रयास कर रहा है। तिनका बडा बेचैन था क्योंकि वह पूरे वक्त लडता जा रहा था और हारते जा रहा था प्रयास करता और डूब जाता । नदी पर कोई फर्क नहीं पड रहा था । तिनका बहुत परेशान । उस तिनके ने देखा कि एक दूसरा तिनका आडे नहीं बल्कि नदी के बहाव के अनुकूल पडा हुवा था और आनन्दित होकर बहते चले जा रहा था और मन ही मन यह सोच रहा था कि वह नदी को बहने में मदद कर रहा है।लेकिन नदी को इसका भी पता नहीं था, वह तिनका परेशान नहीं था। नदी को इन दोनों तिनकों से कोई फर्क पडने वाला नहीं था, लेकिन उन दोनों तिनकों के दृष्टिकोंणों से उन दोनों तिनकों को फर्क पड रहा था ।
देखना होगा कि इस जिन्दगी की इस धारा में आप आडे तिनके की तरह पडे रहते हैं कि सीधे तिनके की तरह पडे रहते हैं , अगर जिन्दगी की धारा के अनुरूप आप बहने के लिए तैयार हैं तो यह जिन्दगी की धारा आपको परमात्मा तक पहुंचा देगी ।लेकिन यदि आप इस तरह बहने को राजी नहीं होंगे तो आप परेशान होंगे। और यह परेशानी धुँवॉ वन जायेगी और परमात्मा अगर सामने आ भी जॉय तो फिर आपको दिखाई नहीं पडेगा,सिर्फ अपनी ही हार आपको दिखाई देगी ।
3-यह समय भी बीत जायेगा-
जी हॉ जिन्दगी में कई घटनाएं सामने आती है,बीत जाती हैं ।दुख हो या सुख । जब सामने आते है, तो याद रखें यह वक्त भी बीत जायेगा । सुख आता है तो न भूलें कि यह समय भी बीत जायेगा इसलिए सुख को देखकर पागलपन न हो जाना । दुख आता है तो भी सम्रण कर लें कि यह भी बीत जायेगा । आपको धैर्य मिलेगा ।एक बार एक सम्राट का दूसरे सम्राट से युद्ध प्रारम्भ हो गया ।युद्ध में जाते समय उसने एक फकीर से ताबीज बनवाकर रख दिया और कहा कि जब अधिक संकट आये तो उस समय इसे खोलकर पढ लेना । युद्ध में राजा की हार हो गई । राजा जान बचाने के लिए जंगल में भाग रहा था,पीछे से पीछा करते दुश्मन के घोडों की टॉप सुनाई दे रही थी,आगे बढने पर रास्ता समाप्त हो गया था, नीचे खाई थी, ।राजा ने घोडे को रोक लिया और सोचा इस ताबीज में क्या लिखा है, खोलकर पढा तो लिखा था बीत जायेगा । इसका मतलव उस समय समझ में तो नहीं आया मगर महशूस किया किया कि घोडों के टॉप की आवाज कुछ देर बाद सुनाई देनी बन्द हो गई । दुश्मन जंगल में कहीं दूसरे रास्ते से चले गये । यही मन में गूंज रहा था कि- यह भी बीत जायेगा । राजा को लगा कि अगर मैं इस ताबीज को खोलकर नहीं पढता तो आत्म हत्या के लिए इस खाई में छलॉग लगा देता । एक छोटे कागज के टुकडे ने राजा की जान बचा ली । बस सब बीत जाता है । बीमारी में,स्वास्थ्य में,रात में,दिन में,जवानी में बुढापे में ,जन्म में मृत्यु में जरूर याद रखना कि यह भी बीत जायेगा । जिन्दगी में कोई तनाव नहीं रहेगा। तनाव मुक्त परमात्मा के मन्दिर की ओर चलना है,जबकि जिन्दगी में तनाव है तो पागलखाने की ओर कदम बढाना है ।
4- हमारी जिन्दगी एक तूफान है-
हमारी जिन्दगी तूफान है । इसमें बहुत आंधियॉ हैं ।चारों ओर चौबीसों घण्टे न जाने क्या-क्या हो रहा है। एक-एक तूफान का मुकाबला करना होता है ।जो आदमी एक ही तूफान में टूट जाता है,वह आदमी समझो टूट ही जायेगा जो आदमी प्रत्येक तूफान को जानेगा, गिरने के बाद उठेगा और सेकडों तूफानों के बाद खडा होता जाता जायेगा, तो फिर उसे ये तूफान तूफान नहीं,खेल मालूम पडने लगेंगे। ये तूफान फिर लीला हो जाती है ।
5-अशॉति का कारण इस जिन्दगी से चिपकना है-
कभी-कभी हम अशॉत होते हैं ,इसलिए कि हम इस जिन्दगी से अधिक चिपक जाते हैं। इस जिन्दगी को नदी की तरह बहने नहीं देते हैं ,उस तिनके की तरह सीधे नहीं बहते हैं बल्कि नदी के बहाव के विपरीत आडे लग जाते हैं । हम अशॉत होते हैं अपने जीने के ढंग के प्रति । हम शॉति की तलाश करते हैं कि हमें कोई मंत्र मिल जाए या किसी से आशीर्वाद मिल जाए या परमात्मा की कृपा मिल जाय । हमें यह मालूम नहीं है कि जिन्हैं हम शॉ्ति के उपाय समझ रहे हैं उनसे तो हमें और अधिक अशॉन्ति पैदा होगी । इसीलिए साधारण आदमी साधारण रूप में और धार्मिक आदमी असाधाररण रूप में अशॉन्त होता है । क्योंकि हमको धन भी चाहिए,यश भी चाहिए,पद भी चाहिए,परमात्मा भी चाहिए और शॉति भी चाहिए । ये चीजें एक साथ नहीं मिल सकती हैं । बल्कि और अधिक अशॉति बढ जायेगी । शॉति को तो चाही नहीं जा सकती, इसलिए कि उसमें अशॉति छिपी है क्योंकि सब इच्छाएं अशॉति पैदा करते हैं, शॉति इच्छा नहीं बन सकती है । जबकि अशॉति को महशूस किया जा सकता है,समझा जा सकता है कि यह अशॉति है । शॉति तो वहॉ होगी जहॉ अशॉति के कारण नहीं होंगे । इसके लिेए हमें अपने जीवन के ढंग को बदलना होगा ।
6-परमात्मा में शॉति की तलाश का भ्रम-
हम सोचते हैं कि परमात्मा के द्वारा हमें शॉति मिल जायेगी ,यह हमारी गलत फहमी है। क्योंकि हमारा परमात्मा से सम्बन्ध तभी होगा जब हम शॉत होंगे । इसलिए कि परमात्मा शॉति नहीं दे सकता है। वरन् परमात्मा की तरफ की गई प्रार्थना अंधेरे में फेंकी जाती है । शॉत आदमी ही प्रार्थना कर सकता है । लेकिन होता क्या है कि जब हम अशॉत होते हैं तभी प्रार्थना करते हैं । और हम सोचते हैं कि हमारी प्रार्थना सुनी जा रही है । ठीक उसी प्रकार कि जैसे टेलीफोन उठाये विना बात करते जाना । हम सोचते हैं कि दूसरी तरफ से कोई सुन रहा है । इसलिए परमात्मा से कभी शॉति मत मॉगना वल्कि आप शॉति को लेकर जाना । शॉति तो आपको स्वयं बनानी पडेगी । इसलिए भी कि शॉति तो हमारी पात्रता है, हमारी विशेषता है,जिसके बदले परमात्मा हमें आनन्द देता है । आप स्वयं आनन्दित नहीं हो सकते हो आप तो सिर्फ शॉत हो सकते हो । आनन्द तो ऊपर वाले से वरसता है । शॉति हमारा पात्र है और आनन्द नदी है ,लेकिन हम बिना पात्र के नदी के पास चले जाते हैं और चिल्लाते हैं, नदी से ही कह रहे हैं कि हमें पात्र दे दो । नदी तो पानी दे सकती है,पात्र आपके पास होना चाहिए । इसलिए शॉति जीवन का मूल बिन्दु है ।जो कि हमारे ही अन्दर छिपा है ।
7-जीवन को पकडो मत बहने दो-
जिन्दगी में हमें अपने जीवन को पकडकर नहीं रखना है,बहने दें, फिर आप अशॉत नहीं होंगे । क्योंकि पकड अशॉति लाती है ।उपनी जिन्दगी क्या दूसरे की जिन्दगी को भी पकडकर रखना चाहते हैं । चाहे हम प्रेम को पकड लें । जिस चीज को हम पकड लेते हैं वह अशॉति ले आती है । कल एक आदमी हमारा मित्र या दोस्त था, आज मित्र नहीं है तो हम अशॉत हो जाते हैं ,हमारे लिए यह भी कम नहीं है हमें फक्र होना चाहिए था कि वह कल हमारा मित्र था । लेकिन इस बात पर कि कल मित्र था तो आज भी होना ही चाहिए था, हम अशॉत हो जाते हैं । अपेक्षाओं को हम पकडे हुये हैं । हम कहते हैं कि ऐसा होना ही चाहिए ! क्यों ?
एक आदमी को नींद नहीं आती थी ,चिकित्सकों ने कहा इनको हो सकता है विजली के शॉक देने पड सकते हैं ।मैने उस आदमी से पूछा कि क्या बात है ? वह कहने लगा कि मुझे बडा नुकसान हो गया !कोई पॉच लाख रुपये का नुकसान हो गया। उनकी पत्नी सामने बैठी थी मैने उनकी पत्नी से कहा कि ये ठीक कह रहे हैं ?उसने कहा एक लिहाज से ठीक भी कह रहे हैं, लेकिन दूसरे लिहाज से ठीक नहीं कह रहे हैं ! इन्हीं से पूछ लीजिए कि लाभ कितना हुआ । उन्होंने कहा लाभ एक ही लाख रुपये का हुआ ,लेकिन हानि पॉच लाख की हो गयी । वे सज्जन छह लाख का लाभ की आशा बंधाये बैठे थे,लेकिन लाभ तो एक ही लाख का हुआ, जिससे उनकी नींद हराम हो गई । परेशान हुये जा रहे थे। तब पता चल पाया कि उनकी हानि अद्भुत है ,जिसने नींद हराम कर दी । हम सब की हानियॉ भी इसी प्रकार की होती हैं ,जिससे हमें नींद नहीं आती है ।
एक आदमी रास्ते में हर रोज मिलता है, मैं आशा करता हूं कि वह मुझे नमस्कार करे, अगर नहीं करता है तो दुख शुरू हो गया। लेकिन मुझे क्या हक है कि मैं अपेक्षा करूं कि वह नमस्कार करे । नमस्कार न करे तो दुख हो गया ।पत्थर मारे तो दुख हो गया । जिन्दगी में जितना हम जीवन को पकडकर रखेंगे उतना ही हमें दुख होगा ।कुछ भी पकडकर मत रखना ,अपेक्षा,तथ्य,आकॉक्षा, पकडकर मत रखना। इनसे दुख के सिवाय कभी कुछ नहीं मिला । और न ही मिल सकता है ।
लेकिन यह जानकर भी हम हर चीज को जोरसे पकडकर रखते हैं, और अपने चारों तरफ पकड का इतना जाल बुन लेते हैं कि दुख वअशॉति ही अशॉति जीवन को घेर लेती है । फिर हम एक राख की ढेर रह जाते हैं जिससे अशॉति के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं शेष बचता ।।
8-जीवन में आनंद की वर्षा-
अपने जीवन में अशॉति क कारण हम स्वयं हैं !अगर चाहें तो आन्नद की वर्षा हो सकती है ! महात्मा बुद्ध के एक शिष्य का नाम कश्यप था जब उसकी शिक्षा पूर्ण हुई तो बुद्ध ने कहा कि अब तुम जाओ और मेरे संदेश को लोगों तक पहुंचा दो। उस शिष्य ने आज्ञा के पालन में कहा कि मैं विहार के सूखा नामक स्थान में जाना चाहता हूं । बुद्ध ने की वहॉ मत जाना,वहॉ के लोग अच्छे नहीं हैं । शिष्य ने कहा वहीं जाने की आज्ञॉ दीजिए ।वहॉ मेरी जरूरत भी है । जिस प्रकार जिकित्सक की जरूरत वीमारों में जाने की होती है,इसी प्रकार शिक्षक की जरूरत होती है जहॉ अज्ञानी हैं । तो मेरी जरूरत वहीं है ।मुक्षे वहीं जाने दें ।
ठीक है तू वहॉ जाने से पहले मेरे तीन सवालों का जबाव देते जाओ ।पहला सवाल यदि वहॉ के लोग तुक्षे गालियॉ देते हैं,अपमान जनक शव्द बोलें तो तेरे मन को कैसा लगेगा ? उसने कहा मेरे मन को लगेगा कि लोग बहुत अच्छे हैं क्योंकि सिर्फ गालियॉ देते हैं,मार पीट नहीं करते हैं । बुद्ध ने कहा कि अगर वे मार-पीट करते हैं तो तेरे मन को कैसा लगेगा ? तो मेरे मन को लगेगा कि ये लोग अच्छे हैं, सिर्फ मारते हैं ,मार ही नहीं डालेंगे ! बुद्ध ने कहा आखिरी सवाल कि यदि वे लोग तुक्षे मार ही डालें तो, मरते क्षण में, आखिरी क्षण में तेरे मन को कैसा लगेगा ? तो मेरे मन को लगेगा कि वे लोग अच्छे हैं, इस जीवन से छुटकारा दिला दिया जिसमें कोई भूल-चूक हो सकती थी,भटकाव हो सकता था,कोई गलती हो सकती थी ।ऐसा आदमी कभी क्या अशॉत हो सकता है ? नहीं !ऐसा आदमी ही शॉति का पात्र बन सकता है । ऐसे आदमी की जिन्दगी में तो परमात्मा के आनंद की वर्षा होती है ।
9- परमात्मा को आपकी चिन्ता कब होती है-
यदि आप कुछ बातों को अपने खयाल में रखते हैं तो ,आप परमात्मा को भूल जाते हैं लेकिन परमात्मा आपको नहीं भूल सकता है । जो हमें दिखाई पडता है,जो हमें सुनाई पडता है,और जो हमारी समझ में आता है उतना ही सब कुछ नहीं है।जो हमें दिखाई नहीं पडता है वह भी बहुत कुछ है। बहुत कुछ है जो हमें सुनाई नहीं पडता है । और बहुत कुछ जो हमारी समझ में भी नहीं आता है । यह भी सही है कि हमारी समझ की एक सीमा है,आंख से देखनी की भी एक सीमा है,कान से सुनने की भी एक सीमा है । लेकिन कठिनाई तब शुरू होती है जब मनुष्य अपने अस्तित्व की एक सीमा मान लेता है । क्योंकि मनुष्य कहता है कि जो मुझे दिखाई पडता है वही सत्य है और जो उसे नहीं दिखाई पडता उसे वह असत्य कहने लगता है ।वह कहता है जो मुझे सुनाई पडता है वही है और जो नही सुनाई पडता है वह नहीं है ।
लेकिन बहुत कुछ है जीवन में जो सुनाई नहीं पडता है और बहुत कुछ है जीवन में जो हाथ की पकड में नहीं आता है, साधारणतः हम अपने जीवन की सीमा निर्धारित मान लेते हैं । इस प्रकार का आदमी को अधार्मिक आदमी कह सकते हैं ।या नास्तिक भी कह सकते हैं । या भौतिकवादी कह सकते हैं ।
जिसने भी अपने जीवन की सीमा को समझा, उसे अधार्मिक ही कहना चाहिए । हमें इस सीमा को जगत पर भी नहीं थोपना चाहिए । इसलिए हमें समझना चाहिए कि जो हमें दिखाई पडता है,आगे भी कुछ होगा ,जो मुझे नहीं दिखाई दे रहा है । जो मेरे हाथ की पकड में आता है वहॉ तक मेरी पकड है । वहॉ से आगे का निर्णय मैं नहीं ले सकता हूं ।
परमात्मा आपके दरवाजे पर रहस्य. के मार्ग से प्रवेश करता है।
लेकिन हमारी जिन्दगी में तो कोई रहस्य नहीं है । हमें सब चीजें मालूम हैं,जब कि कुछ भी मालूम नहीं है। हमें सब पता है, जबकु कुछ भी पता नहीं है । डाक्टर हजारों बीमारों को ठीक करता है,फिर भी उसे पता नहीं है कि वह क्या है ।लाखों मरीजों को मरने से बचाता है,लेकिन उसे कुछ भी पता नहीं है । कि वह क्या है । इसलिए हमें हर पल रहस्य को खोजते रहना है,अगर सुबह सूरज निकलता है तो भी खोजना है । बच्चे की आंखें चमकदार हैं तो भी खोजना है ।स्त्री का चेहरा अगर सुन्दर है तो भी खोजना है कि सौदर्य का रहस्य क्या है । फूल खिले तो भी खोजना है कि रहस्य क्या है, क्योंकि इन्हीं रहस्यों में परमात्मा दिखाई देगा । इसलिए हमें अपनी जिन्दगी में हरवक्त रहस्य के द्वार खुले रखने चाहिए ।
होता क्या है कि हम रहस्य के द्वार को बन्द कर लेते हैं ।जिससे हमें ऐसा लगता हगै कि हमें सब कुछ आ जाता है,और जिस आदमी को ऐसा लगता है कि हमें सब मालूम है, इसका मतलव समझो वह बन्द हो गया, असके दरवाजे,खिडकियॉ सब बन्द हो गये । अब परमात्मा किसी भा रास्ते उसमें प्रवेश नहीं कर सकेगा ।
एडीसन के बारे में कौन नहीं जानता । उन्होंने हजारों आविष्कार किये,और विजली के तो वे सबसे बडे ज्ञाता थे,लेकिन इन चीजों के ज्ञान बारे में वे स्वयं को अपूर्ण समझते थे । इसीलिए तो वे आगे बढते गये ।
एक बार एडीसन किसी स्कूल में गये और पंखे की और इशारा करते हुये बच्चों से कहा ये पंखा कैसे चल रहा है ?बच्चों ने उत्तर दिया कि इलेक्टिसिटी से ! ,फिर पूछा इलेक्टिसिटी क्या है ? बच्चों ने इसका उत्तर नहीं दिया, सामने उनके शिक्षक खडे थे वे भी वहॉ पर आ गये थे । एडीसन ने उनसे पूछा कि विजली क्या है ?तो शिक्षक ने उत्तर दिया कि विजली एक प्रकार की शक्ति है । फिर एडीसन ने पूछा वह शक्ति क्या है ? उत्तर मिला आपका तो यह कठिन सवाल है ! इसका मैं नहीं दे पाऊंगा । उसी स्कूल में प्रिंसिपल साहब बडे विद्वान थे डाक्टर आप साइंस की उपाधि लिये थे । उन्हैं बुलाकर उनसे पूछा गया कि- प्रश्न यह नहीं है किविजली कैसे पैदा होती है बल्कि प्रश्न यह है कि- विजली क्या है ? उन्हैं इस बात का ज्ञान नहीं था कि जो प्रश्न पूछ रहा है वह एडीसन है । प्रिंसिपल साहब से उत्तर मिला कि आप बडा कठिन सवाल पूछ रहे हैं ! बडा मुश्किल है।इसपर एडीसन हंसने लगा उसने कहा घबडाओ मत मैं एडीसन हूं ।और मैं भी नहीं जानता कि विजली क्या है ! मैं भी इतना ही बता सकता हूं कि विजली कैसे काम करती है ,कैसे पैदा होती है ।
कहने का तात्पर्य कि किसी भी ज्ञान के बारे में कोई भी पूर्ण नहीं होता । हमारी जिन्दगी में चारों तरफ रहस्यों से भरा पडा है ।सूरज की किरण या फूल का खिलना एक रहस्य है,लेकिन हम बिल्कुल बन्द हैं ।और जो आदमी इस तरह बन्द है उस आदमी की जिन्दगी में परमात्मा कैसे प्रवेश करें ?हममें जिन्दगी के रहस्यों को खोजने की क्षमता होनी चाहिए । अगर आप हर जगह रहस्य देखने लगें तो समझना चाहिए कि परमात्मा से आपका सम्बन्ध होना शुरू हो गया । परमात्मा का पहला अनुभव रहस्य की भॉति ही प्रवेश करता है । उसका पहला स्पर्श रहस्य का स्पर्श है ।
10- सभ्यता के विकास में रहस्य -
यह देखने में आता है कि जैसे-जैसे हमारी सभ्यता विकास की ओर आगे बढती है वैसे ही हम रहस्य से दूर होते जाते हैं । हमने अपने चारों ओर सभ्यता का जाल बना दिया है,यह हमने ही बनाया है, इसलिए इसमें कोई रहस्य नहीं है । सीमेंट की सडक हमने बनाई तो इसमें क्या रहस्य है ? सीमेंट के ही ऊंचे मकान हमने बनाये, उनमें क्या रहस्य है ? बडे कारखानों में लगी मशीनें, क्या रहस्य हो सकता है ?
अर्थात जो भी आदमी ने बनाया उनमें रहस्य नहीं हो सकता है । इसलिए जैसे-जैसे सभ्यता का विकास होता है वैसे ही प्रकृति और विश्व का जो रहस्य है,उसके और हमारे बीच एक दीवार जैसी खडी होती दिखाई दे रही है ।
हम जिन्दगी में हर रोज रहस्य की खोज में निकलें तो ,सेकडों रहस्यों का पता लग जायेगा । हम उठकर मंदिर में या मस्जिद में जाते हैं,ये तो आदमी के बनाये हैं, वे रहस्य नहीं हैं। मूर्ति भी तो आदमी ने ही बनाई है । रहस्या है -सुबह जब आखिरी तारे डूबते हैं तो हाथ जोडकर सामने बैठ जॉय , उन तारों को डूबते हुये को ध्यान से देखो ,आप देखेंगे कि आपके भीतर भी कुछ डूबते जा रहा है । या सुबह उगते हुये सूरज को देखते रहें तो आपके भीतर भी कुछ उगेगा । आधा घंटे आकाश के नीचे लेट जाओ,आकाश को देखते रहो,विस्तार का अनुभव होगा । फूल को खिलते हुये देखो ।वृक्ष को गले लगाकर उसके पास बैठ जाओ,रहस्य का पता लग जायेगा ।
लेकिन आदमी तो होशियार है ,वह अपने साथ परमात्मा के लिये भी घर बना लेता है ।वह परमात्मा से कहता है कि तुम इधर रहो और हम उधर ।जब जरूरत पडे तो हम आ जायेंगे । मिल लेंगे । दो बात कर लेंगे । वैसे परमात्मा सब जगह है मन्दिर हो या मस्जिद । लेकिन जब हमें सिर्फ मंदिर में होने का खयाल आया,उस स्थिति में हमें और कही भी परमात्मा नहीं दिखाई देगा,सिर्फ मंदिर में ही दिखाई देगा,लेकिन मंदिर में रहस्य तो है ही नहीं । हमें इस मंदिर में भी रहस्य की खोज करनी होगी,ताकि परमात्मा के साक्षात दर्शन हो सकें ।
एक फकीर मंदिर के एक किनारे रातभर भक्ति में लीन था ।सुबह जब पक्षियॉ धीमे-धीमे गीत गा रही थी,एक आदमी ने मंदिर के दरवाजे खोला और मूर्ति के सामने हाथ जोडकर बैठ गया और कहने लगा परमात्मा तू कहॉ है मुझे दर्शन दे दे । कोने पर बैठा फकीर भी चिल्ला रहा था कि भगवान तू कहॉ है मुझे भी दर्शन दे दे । कुऑ देर बाद फकीर बाहर निकला और उस आदमी को हिलाकर कहा अरे पागल बाहर पक्षियॉ चिल्लाकर कहरही हैं ईश्वर यहॉ है,बाहर खिलने वाले फूल कह रहे हैं ईश्वर यहॉ है,निकलने वाला सूरज कह रहा है यहॉ है । उस आदमी ने मेरी पूजा में बाधा मत डालो नास्तिक मालूम पडते हो । हटो यहॉ से मुझे पूजा करने दो ।फिर वह पूजा करने लगा हे भगवान तू कहॉ है मुझे दर्शन दे दे । इस आदमी को भगवान के दर्शन नहीं हो पायेंगे । इसलिए कि वह गलत पूछ रहा है कि भगवान तू कहॉ है ।क्योंकि धार्मिक व्यक्ति पूछता है कि हे भगवान तू कहॉ नहीं है, वह तो जहॉ खोजता है उसे वहॉ मिल जाता है,वह तो सब जगह है ।