Sunday, February 10, 2019

आँसुओ की इमोशन

              प्रत्येक व्यक्ति कभी न कभी रोता है । पुरषों की अपेक्षा महिलाए ज्यादा रोती है । आंसुओं का संबंध हमारी मनोदशा से होता है। सदमे में रहने वाले लोग ज्यादा रोते है । 
             जब हम अपने प्रियजनों से दूर होते हैं तो अक्सर रोने लगते हैं। प्रिय व्यक्ति से रिश्ता टूटने या प्रेम में पड़ने पर या उस के दूर जाने या उसके निधन पर हम रोते हैं। डरने, घायल होने और ज्यादा खुश होने पर भी हम रोते हैं। 
            कोई क्रोध करता है और लगतार गुस्सा दिखाता है तो हम रोने लगते है । टेस्टोस्टेरोन नामक हार्मोन हमारे शरीर में कम बने तो हम अधिक रोते हैं। 
            हम सालों से किसी ख्वाहिश को मन में लिए मेहनत करते रहते हैं, लेकिन अंत में जब वह ख्वाहिश पूरी नहीं होती है तो फिर हमारी आंखों में आंसू आ ही जाते हैं.। 
            लोग अपनी रोजमर्रा की जरूरतों से भी परेशान होकर रो पड़ते हैं विटामिनस की कमी, स्ट्रोक, थायरॉयड समस्या, लो बल्ड शुगर लेवल के कारण भी रोना आता है । 
            कभी कभी कुछ उत्तेजित करने वाली चीजें या घटनाएं होती है जो रुला देती हैं । 
            डिप्रेशन के कारण भी रोना आता है । अपने अंदर की भावनाओं को छुपा कर रखने से भी रोना आता है । रोने को मन करें तो तो किसी दोस्त या परिवार के सदस्य के गले मिलना बहुत आराम पहुंचाता है वास्तव में उस व्यक्ति से जिसके कारण आप उदास हुए है, शांत भाव से अपने उदास होने के कारण पर बात करें। अपने बचपन की कोई खुशनुमा और सुकून देने वाली बात याद करें । 
             ऐसे तरीकों के बारें में पढ़े या किसी से बात करें जिनसे आप अपनी भावनाओं को नियंत्रण कर सकें, और उन तरीकों को अपनाये। 
             अपनी पसंद के किसी शांत स्थान पर जाये और अपने विचार स्थिर करने की लिए कुछ समय अकेले बिताएं। संभव हो तो किसी नजदीकी मित्र को बुला लें जो आपकी मदद कर सके या आपको आराम पहुंचा सके। 
             जब रोने को मन करें उस समय थोड़ा सा कुछ खा लें । अपने सबसे अच्छे दोस्त या माता-पिता से बात करें, और उन्हें सब कुछ बता दें। वे निश्चित रूप से आपको खुश कर देंगे। 
             यदि आप खुद को या किसी और को चोट पहुँचाना चाह रहे हों तो ऐसा न करें, किसी और चीज में व्यस्त हो के अपना ध्यान हटायें । 
             यदि आपको लगे कि ऐसा कोई नहीं है जिससे बात की जा सके तो पेशेवर सलाह लें या चिकित्सक के पास जाएँ। कोई न कोई ऐसा जरूर होगा जो सुनना चाहेगा। 
             किसी ऐसे वयस्क से बात करना भी आपकी मदद कर सकता है जिस पर आप विश्वास करते हो, भले ही वो आपके परिवार का सदस्य न हो । 
          अपना पसंदीदा गाना बजाये और उस पर नाचें । अगर नच ना सके तब 24 घंटे उमंग उत्साह वाले गीत सुने । 
           नीद के समय आवाज इतनी कम हो की आप की नीद डिस्टर्ब न हो । भगवान के गुण गाते रहो आप प्यार के सागर है । 
            अगर याद न कर सके तो शिव बाबा या अपने इष्ट का चित्र देखतें रहें । कोई न कोई बुक पढ़ते रहो ।

प्रेम और सम्बन्ध

                जीवन की महानता उपलब्धियों मे नहीं बल्कि सम्बन्धों मे है । परंतु आज का संसार सम्बन्धो की प्रवाह नहीं करता । वह करोड़पति बनना चाहता है ।वह किसी भी सम्बन्ध को धोखा दे सकता है ।यही कारण है कि आज चारो तरफ़ अशांति छाई हुई है । घर घर मे कलह है । आप के साथी/साथियों मे जो प्रितिभा छिपी है उसे बाहर निकालने के लिये प्रेरित करो । 
              अगर आप में प्रितिभा है और उन मे नहीं तो गाड़ी एक पहिये से नहीं चलेगी । उन्हे भी अपने जैसा महान बनाओ । यह ना सोचो की वह हमे छोड़ जायेगे । मिस्त्री लोगो वाली मानसिकता त्याग दो । मिस्त्री लोग अपने कर्मचारियों को अपना हुन्नर नहीं सिखाते । इसलिये वे सारी उम्र मिस्त्री ही रहते है । मुखिया किसी को आगे नहीं आने देते है। वह बूढे और लाचार हो जाते है तब भी वह किसी दूसरे को चान्स नहीं देते। ये प्रेम नहीं है।
               ऐसी संस्थायें खूब बढ़ती है परंतु उनके देहांत के बाद टूट जाती है क्यों कि उनके सदस्य दूसरे लोगो की कमांड स्वीकार नहीं करते तथा ना ही उन्हे कोई संस्था चलाने का अनुभव होता है । 
              अपने जैसे अगली पीढी से सक्षम नेता वा साथी तैयार करो । हम सभी किसी ना किसी स्तर पर मुखिया है । इसलिये अपने साथियों की प्रितिभा को नीखारो । कैसे ? प्रेम से । पति-पत्नी मे अगर आप का साथी मोटा है, मोटी है, उसे आप बार बार कहते है पतला बनो, उसके लिये आप उन्हे कहते हो यह करो वह करो, परंतु करते नहीं । 
               याद रखो यह सिर्फ भाषण रह जायेगा । आप कहेगे मै उसे अपने जैसा बना रहा हूँ । नहीं यह चिढ़ बन जायेगा । वह जब खुद पतला होने की इच्छा करे तब उसे यह वा वोह करने की सलाह दे । नहीं तो आप के सुझाव प्रेम के रुप मे आलोचना और निंदा ही सिध्द होगे । 
               साथी के नजरिये से दुनिया देखो, उसके लिये क्या महत्वपूर्ण है। तब प्यार बढेगा और हर वह काम करेगा । जो चीज़ हमे अपने सपनो को हकीकत मे बदलने से रोकती है, वह है साहस की कमी । दूसरो का साहस बढ़ाओ तब आप जा साहस बढ़ जायेगा और सब का दिल का प्यार भी मिलेगा । उत्साह भरे शब्द बोलना आप के लिये मुश्किल हो सकता है । इसे सीखने मे मेहनत करनी पड़ती है । आलोचना और निंदा के बजाय उत्साह बढ़ाने मे मेहनत करते है तो आप को सार्थक परिणाम मिलेंगे ।

टेढ़े लोगो से व्यवहार

                 टेढा व्यक्ति जब गुस्से में हो तब शांतिपूर्वक जवाब दो या चुप रहो या वहां से चले जाओ तो वह खुद ही शांत हो जाएगा। यदि आप वहां से जा नहीं सकते तो मन में ईश्वर को याद करते रहो या किसी स्नेही आत्मा को तरंगे देते रहो । 
                 आप ने खुद को मानसिक तौर पर उसके प्रभाव से मुक्त रखना है । टेढ़े व्यक्ति से निपटने का सबसे अच्छा और आसान तरीका है उससे दूर रहना । यदि आप उससे बच नहीं सकते तो कम से कम भूल तो सकते ही हैं। नए दोस्त बनाइये, नई-नई चीज़ें सीखिये और करिए। इस तरह आप उसके बारे में सोच-सोच कर समय बर्बाद नहीं करेंगे । 
                 टेढ़े व्यक्ति के साथ बिताया गया वक़्त आपके लिए कीमती सीख है। ऐसे व्यक्ति को संभालने के बाद हर टेढ़े व्यक्ति से बात-चीत करना आसान रहेगा । टेढ़े व्यक्ति को शांत करने का सबसे आसान तरीका है उस पर ध्यान नहीं देना। जब उसे आपसे तवज्जो नहीं मिलेगी तो वो आपको छोड़ देगा। ऐसे लोगों को गुस्सा नहीं दिलाएँ। 
                 क्रोध में उनका व्यवहार और भी टेढ़ा हो जाएगा और आप परेशानी में पड़ेंगे। टेढ़ा व्यक्ति अगर बीमार है और इसे आपकी सहानुभूति की ज़रूरत है तो उसका सहयोग करें । टेढ़े व्यक्ति के साथ बहस में न पड़ें। वाद-विवाद से आपकी सोच भी धुंधली हो जाएगी।अपनी बात व्यक्त करने का सकारात्मक तरीका निकालें। किसी के दुर्व्यवहार को बर्दाश्त नहीं करते रहना है। सही समय पर उन्हें शांतिपूर्वक समझाने का प्रयास करें । ऐसे व्यक्ति के साथ दोस्ती और प्रेम से पेश आयें। यदि वे प्रताड़ित करने वाले लोगों में से हैं तो वे समझ जाएंगे कि आप पर उनका बस नहीं चलेगा और आपको फिर तंग नहीं करेंगे। 
                हर स्थिति में प्रेम-भाव बनाए रखना आवश्यक है, भले वो मुश्किल हो । अपने दृष्टिकोण को सही रखें क्योकि आपको अन्य लोगों के साथ रहना है, जिनके बुद्धि या विवेक का स्तर आपसे अलग हो सकता है। टेढ़े व्यक्ति के साथ रहना शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से थकाऊ है। इसलिए मन से उनसे अलग होना शुरू कर दें अर्थात अपना मन भगवान या मन पसंद व्यक्तियों या कार्यो में लगाए रखें । आप ऐसे लोगों को बदल नहीं सकते। आप उनके व्यवहार या बात पर सिर्फ अपनी प्रतिक्रिया बदल सकते हैं। इसलिए ऐसे लोगों से शांतिपूर्वक निपटने पर ध्यान दीजिये।

कथनी और करनी एक कैसे हो

               मन में जो भीअच्छे विचार या योजना आये उसे तुरंत कर देना चाहिए । अगर ऐसा नहीं करेंगे तो श्रेष्ट विचार जिस तेजी से मन में आता है, वैसे ही गायब भी हो जाएगा और आप उस के लाभ से वंचित हो जायेगे । ऐसे विचार अचानक से आते हैँ इसलिए उसे तुरंत लिख लो । रात को कागज और पेंसिल साथ रखना चाहिए क्योकि कई बार सपनो में बड़े अच्छे विचार आते हैँ जो सुबह तक भूल जाते हैँ । उन्हे तुरंत लिख लेना चाहिए । 
              आप ऐसे विचार को मोबाइल में भी रेकॉर्ड कर सकते हैँ । अच्छे विचार कभी भी और अचानक आते हैँ इस लिये उन्हे तुरंत लिख लेना चाहिए । समस्या यह नहीं कि हमारे पास विचार या सुंदर योजनाएं नहीं हैं।                         योजनाएं तो हम बहुत बनाते हैं। अपने बनाए उत्तम से उत्तम विचारों से प्रसन्न भी हम बहुत होते हैं, किंतु उन पर हम कार्य नहीं करते हैं। यही हमारी दुर्बलता है। हमें किन बातों से बचना चाहिए? हमें क्या कार्य करना चाहिए? क्या उचित है, क्या अनुचित है? हम सब इस संबंध में बहुत कुछ जानते हैं। 
                समस्या यह है कि सब जानते-बुझते हुए अंतत: हम कार्य करते कितना हैं? व्यवहार में, दैनिक जीवन में, उन्नति की योजनाओं को कहां तक उतारते हैं? नवीन विचारों पर व्यवहार कितना करते हैं? जो हम सोचते हैं, क्या वह करते भी हैं? हमें विचार के पश्चात सतत कार्य करना चाहिए। कार्य करना ही सफलता का मूल-मंत्र है। सोचो चाहे जो कुछ, पर कहो वही, जो तुम्हें करना चाहिए। 
                जो व्यक्ति मन से, वचन से, कर्म से एक जैसा हो, वही पवित्र और सच्चा महात्मा माना जाता है। कथनी और करनी समान होना अमृत समान उत्तम माना जाता है। जो काम नहीं करते, कार्य के महत्व को नहीं जानते, कोरा चिंतन ही करते हैं, वे निराशावादी हो जाते हैं। 
               कार्य करने से हम कार्य को एक स्वरूप प्रदान करते हैं। काल करे सो आज कर में भी क्रियाशीलता का संदेश छिपा है। जब कोई अच्छी योजना मन में आए, तो उसे कार्यान्वित करने में देरी नहीं करनी चाहिए। अपनी अच्छी योजनाओं में लगे रहिए, जिससे आपकी प्रवृत्तियां शुभ कार्यों में लगी रहें। कथनी और करनी में सामंजस्य ही आत्म-सुधार का श्रेष्ठ उपाय है।

मानसिक शांति -संकल्प

                संकल्प जो मन में रिपीट करते है उसके कम्पन अंतरिक्ष में बिखरते हुये परिस्थितियो को अनुकूल बनाते है । वह संकल्प शब्द भेदी बाण की तरह सूक्ष्म जगत के उन संस्थानों से टकराता है जिन्हे प्रभावित करना साधना का लक्ष्य है । 
                 उच्चारित होने के बाद संकल्प अंतःकरण के मर्म स्थलों की गहरायी में उतरता है और वहाँ से उस शक्ति स्त्रोत की उर्जा से सम्पन्न होकर ऊपर आता है । मर्म स्थल अर्थात संकल्प के पीछे प्यार, विरोध, दुख, उलाहना, दया, नफरत आदि की जो भावना होती है, उस भावना के एनर्जी केन्द्र से शक्ति लेता है और जब बोलते है तो वैसा ही सुनने वाला अनुभव करता है । 
                 मशीने टूटती फूटती है, उनकी सम्भाल के लिये कुशल कारीगर रखने पड़ते है । ज़रूरी ईंधन भी देना पड़ता है । हमारा शरीर एक मशीन है, जिस में अथाह शक्तियां है, परंतु इस की देखभाल का पता नहीं, इसलिये यह भी हमे ज्ञान होना चाहिये कि शरीर को कौन सा ईंधन देना है । 
                 शरीर में प्रचंड शक्तियां है । इसका भौतिक उपयोग सभी जानते है, आहार वा पालन पोषण, काम धँधा, परिवार की उत्पति आदि में कहां शक्ति खर्च करनी है सब जानते है । आत्मा में सूक्ष्म शक्तियों है जो संकल्प से प्राप्त की जा सकती है, परंतु ये कोई बिरला ही जानता है । इसी की खोज करनी है ।

श्रेय लेने की होड़

              दुनिया का हर व्यक्ति सब से ज्यादा सिर्फ और सिर्फ अपने बारे सोचता है । मानवीय गुण यह है कि मनुष्य के हर कार्य का नियंत्रण उसके अपने हितो से होता है अर्थात मनुष्य हर काम में श्रेय लेना चाहता है । लोग आप की बात सुने और आप को सम्मान दें । 
             आप किसी सभा या समारोह में जाए तो लोग खुले दिल से आप का स्वागत करें अथवा राह चलते लोग आपका स्वागत करें । राह चलते लोग सम्मान के साथ साथ आप को नमस्कार करें । दुनिया का हर व्यक्ति यही चाहता है । 
               बड़े बड़े संत महात्मा जो विश्व को वैराग्य का उपदेश देते हैँ वह भी स्वंय को श्रेय देने के प्रलोभन से वंचित नहीं हैँ । मनुष्य की यह भावना क्यो है । पृथ्वी के दो ध्रुव हैँ । उतरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव । उतरी ध्रुव से धरती सूर्य से ऊर्जा लेती है । 
              सूर्य की शक्तियां धरती के उतरी ध्रुव से प्रवेश करती हैँ और दक्षिणी ध्रुव से बाहर निकलती हैँ । दक्षिणी ध्रुव से जब तरंगे बाहर निकलती हैँ ती यह प्रेम में परिवर्तित हो चुकी होती है । दक्षिणी ध्रुव पार 50-60 किलोमीटर का क्षेत्र ऐसा है जहां सभी मनुष्य व जीव जन्तु अपना बैर भाव भुला कर एक दो से गले मिलते हैँ । उस जगह बहुत प्यार की तरंगे हैँ । ऐसे ही प्रत्येक व्यक्ति में भी दो ध्रुव हैँ । 
              सिर को उतरी ध्रुव माना गया है और प्रजनन इन्द्रिय को दक्षिणी ध्रुव माना गया हैँ । सिर अर्थात सहस्त्रार चक्र और प्रजनन इन्द्रिय अर्थात मूल आधार चक्र । मनुष्य सूर्य से, भगवान से, प्राण से अर्थात श्वांस से या लोगो से विचार के रूप में जो ऊर्जा ग्रहण करते हैँ , वह एनेर्जी शरीर के विभिन चक्रों से होती हुई प्रजनन इन्द्रिय अर्थात मूल आधार से बाहर निकलती है तो यह एनेर्जी प्यार का रूप धारण कर लेती हैँ । जिसे हम काम विकार कहते हैँ । इस विकार से स्नेह महसूस होता है जैसे पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुव पर होता है । यह स्नेह विकृत काम विकार का रूप ले चुका है इसलिए आज प्रत्येक व्यक्ति इस अपवित्रता के विकार से पीड़ित है । सारी दुनिया पागल हो रही है । 
              वास्तव में मनुष्य स्नेह चाहता है । इस विकार से उत्पन्न संतान के लालन पालन में सारी जिंदगी लगा देता है । यह मूल अधार चक्र धरती तत्व से भी जुड़ा हुआ है । असल में आत्मा शांत स्वरूप और प्रेम स्वरूप है, जो कि भगवान को याद करने से मिलती है । परमात्मा उतरी ध्रुव से जुड़ा हैँ । परन्तु उतरी ध्रुव अर्थात सिर अर्थात दिमाग का हम कभी प्रयोग नहीं करते । अगर करते हैँ तो बहुत कम । 
               दक्षिणी ध्रुव ( प्रजनन केन्द्र ) से उत्पन होने के कारण हम प्रजनन केन्द्र के इर्द गिर्द ही घूमते रहते हैँ । इसी केन्द्र से उत्पन होने के कारण हम अपने तथा अपनी संतान को कामयाब करने के लिये धरती के पदार्थो से जुड़े रहते हैँ । उन्ही से सब कुछ पाना चाहते हैँ । यही कारण हैँ कि प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक काम का श्रेय लेना चाहता है, ताकि सभी उस से प्यार करें ।