Monday, March 23, 2015

स्मृति के पंख

1-जल की भी याददास्त होती है
 
          पंचतत्वों के गुणों को बदलना या यह तय करना कि ये तत्व हमारे भीतर कैसे काम करेंगे, काफी हद तक मानव-मन और चेतना के अधीन है। इसके विज्ञान और तकनीक को इस संस्कृति में पूरी गहराई से परखा गया था और उसे एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी को सौंपा जाता रहा। सही तरह के नजरिए, एकाग्रता और ध्यान देने से क्या आप शरीर रूपी इस बरतन के जल को मिठास से नहीं भर सकते?
 
         अगर आप ऐसा कर पाएं, तो आप बहत्तर फीसदी मीठे हैं, क्योंकि आपके शरीर में लगभग इतनी ही पानी की मात्रा है। लेकिन पिछले सौ सालों में, जीवन के प्रति अपने बहुत अहंकारी रवैये के कारण हमने बहुत सी चीजें छोड़ दीं। इस देश में हमारे पास ज्ञान का जो भंडार है, अगर हम उसे फिर से अपना लें, तो वह न सिर्फ इस देश के कल्याण के लिए बल्कि पूरी दुनिया के कल्याण के लिए एक महान साधन हो सकता है।
 
          पश्चिम से आने वाले सभी तरीके आम तौर पर बस थोड़े समय के लिए उपयोगी होते हैं। उनके यहां सब कुछ बस इस्तेमाल करके फेंक देने के लिए होता है। यहां तक कि इंसान भी। दिक्कत यह है कि राजनैतिक तथा कुछ दूसरी किस्म के प्रभाव के कारण कोई चीज अगर पश्चिम से आए तो विज्ञान बन जाती है, और अगर पूर्व से आए तो अंधविश्वास। बहुत सी बातें जो आपको कभी आपकी दादी-नानी ने बताई होंगी, आज बड़े-बड़े वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में 'महान-आविष्कारों के रूप में खोजी जा रही हैं।
 
          जो बातें वे अरबों डॉलर के रिसर्च और अध्ययनों के बाद बता रहे हैं, हम अपनी संस्कृति में पहले से कहते आ रहे हैं। इसका कारण यह है कि हमारी संस्कृति जीवन की विवशताओं से विकसित नहीं हुई है। यह वह संस्कृति है, जिसे ऋषि-मुनियों ने विकसित किया है, इसका ध्यान रखते हुए कि आपको कैसे बैठना चाहिए, कैसे खड़े होना चाहिए और कैसे खाना चाहिए। मानव कल्याण के लिए जो सबसे श्रेष्ठ है, उसे ध्यान में रखते हुए इसे तैयार किया गया था और इसका बहुत वैज्ञानिक महत्व है। खास तौर पर पिछले कुछ वर्षों में, पानी और पानी की क्षमता पर काफी शोध किया गया है। वैज्ञानिक एक बात कह रहे हैं कि पानी में याददाश्त होती है। पानी जिसके भी संपर्क में आता है उसे याद रखता है।
 
          आज-कल घरों में जो पानी पहुंचाने की व्यवस्था है उसमें, पानी को बलपूर्वक पंप किया जाता है और उसे आपके नल में आने से पहले पचास घुमावों से गुजरना पड़ता है। जब तक वह पानी आपके घर पहुंचता है, कहा जाता है कि वह साठ फीसदी जहरीला हो चुका होता है, रासायनिक रूप से नहीं, बल्कि इसलिए क्योंकि उसका आणविक-ढांचा यानी 'मॉलिक्यूलर स्ट्रक्चर बदल जाता है। जब आपकी दादी-नानी ऐसा कहती थीं, तो वह अंधविश्वास था। जब आप यह चीज अमेरिका में वैज्ञानिकों से सुनते हैं, तो आप इसे गंभीरता से लेंगे। यह एक तरह की दासता है।
 
          बैक्टीरिया की वजह से कोई चीज जिस तरह दूषित होती है, हो सकता है कि वह उस तरह दूषित न हो, लेकिन तेजी से गुजरने की वजह से पानी के आणविक ढांचे में इस तरह का बदलाव आ जाता है कि वह लाभदायक नहीं रह जाता, बल्कि विषैला भी हो सकता है।
 
          अगर आप इस जल को तांबे के एक बरतन में दस से बारह घंटे तक रखें, तो उस नुकसान की भरपाई हो सकती है। लेकिन अगर आप उसे सीधे नल से पीएं, तो आप एक खास मात्रा में जहर पी रहे हैं। लोग इस तरह से जिंदगी जीते हैं और कहते हैं, 'मुझे कैंसर कैसे हो गया? मुझे यह बीमारी क्यों हो गई? अगर आप जीवन के प्रति बिना किसी संवेदना के जीते हैं, जो तत्व आपको बनाते हैं, उनका ख्याल नहीं रखते तो सब कुछ ठीक होने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? पाया गया है कि पानी की रासायनिक संरचना को बदले बिना, आप आणविक व्यवस्था को इस तरह व्यवस्थित कर सकते हैं कि पानी आपके शरीर में बिल्कुल अलग तरीके से काम करे।
 
          उदाहरण के लिए, अगर मैं अपने हाथ में एक गिलास पानी लूं, उसे एक खास तरीके से देखूं और आपको दूं, तो उसको पीने से आपका भला हो सकता है। वहीं अगर मैं उसे दूसरे तरीके से देखूं और आपको दूं, तो उसे पीकर आप आज रात को ही बीमार पड़ जाएंगे। आपकी दादी-नानी आपसे कहा करती थीं, 'तुम्हें हर किसी के हाथ से न तो पानी पीना चाहिए और न ही खाना खाना चाहिए। तुम्हें ये चीजें हमेशा उन्हीं लोगों के हाथ से लेनी चाहिएं जो तुमसे प्रेम करते हैं और तुम्हारी परवाह करते हैं। किसी से भी ले कर और कहीं भी बैठ कर कोई चीज नहीं खानी चाहिए।
 
          जब आपकी दादी-नानी ऐसा कहती थीं, तो वह अंधविश्वास था। जब आप यह चीज अमेरिका में वैज्ञानिकों से सुनते हैं, तो आप इसे गंभीरता से लेंगे। यह एक तरह की दासता है। इस संस्कृति में, हमें हमेशा से मालूम था कि जल की अपनी याददाश्त होती है। आप जिसे तीर्थ कहते हैं, वह बस यही है। आपने देखा होगा कि लोग मंदिर से तीर्थ की एक बूंद पाने के लिए कैसे बेचैन रहते हैं।
 
          अगर आप अरबपति भी हैं, तो भी आपमें उस एक बूँद के लिए लालसा होती है, क्योंकि आप उस जल को ग्रहण करना चाहते हैं जिसमें ईश्वर की स्मृति हो। अगर आप तमिलनाडु के किसी पारंपरिक घर में जाएं, तो आप देखेंगे कि जल एक खास तरीके से पीतल या तांबे के बरतनों में रखा गया है। यह रिवाज पहले देश में हर जगह था, लेकिन दूसरे स्थानों में यह काफी हद तक खत्म सा हो गया है। वे हर सुबह पानी वाले बरतन को इमली से मांजते हैं, थोड़ी विभूति और थोड़ा कुमकुम लगाते हैं और उसकी पूजा करते हैं। उसके बाद ही वे उसमें पानी रखते हैं और उसी से पानी पीते हैं क्योंकि उन्हें हमेशा से पता है कि जल की याददाश्त होती है। वे जानते हैं कि आप जल को जिस तरह के बरतन में रखते हैं और उसके साथ जैसा बरताव करते हैं, उससे यह तय होता है कि वह आपके भीतर कैसा व्यवहार करेगा। मैं आपको एक घटना के बारे में बताता हूं।
 
          कुछ साल पहले, मैं एक दक्षिण भारतीय घर में गया। यहां अतिथि सत्कार में सबसे पहले आपके लिए पीने का पानी लाते हैं। तो घर की गृहिणी मेरे लिए पीने का पानी लाईं। मैंने उनके चेहरे की ओर देखा, वो काली की तरह रौद्र दिख रहीं थीं। दरअसल उनके पति नब्बे दिन के एक कार्यक्रम के लिए मेरे साथ आना चाहते थे। वह एक अच्छी महिला हैं, लेकिन उस दिन वह काली की तरह थीं। इसलिए जब वह पानी लाईं, तो मैंने कहा, 'अम्मा, आज आप काली की तरह दिख रही हैं। मुझे इस जल की कोई जरूरत नहीं है। मैं ऐसी बुरी हालत में नहीं हूं कि पानी के बिना काम न चले। वो बोलीं- 'यह अच्छा पानी ही है। मैंने कहा 'यह पानी अच्छा है, लेकिन आप जिस रूप में हैं, मुझे यह पानी पीने की जरूरत नहीं है। अगर सद्गुरु आपके घर आएं और पानी पीने से इनकार कर दें, तो एक दक्षिण भारतीय परिवार में यह कोई छोटी बात नहीं है।
 
          नाटक शुरू होने लगा। इसलिए मैंने उससे कहा इस पानी की एक घूंट आप पीजिए। उनको लगा कि मैं पानी की जांच के लिए उनको चखने को कह रहा हूं, उसने पी लिया और बोली यह अच्छा है। मैंने उनसे वह पानी लेकर बस एक मिनट तक उसे अपने हाथ में पकड़े रखा। फिर उनको दिया। 'अब इसे पीजिए। उन्होंने उसे पीया, उनके आंसू निकलने लगे और वह रोने लगीं 'अरे यह कितना अच्छा है! यह मीठा है। मैंने कहा, 'जीवन ऐसा ही है। अगर आप एक खास रूप में हैं, तो सब कुछ मीठा हो जाता है।
 
          अगर आप किसी दूसरे तरह से हैं, तो आपके जीवन में सब कुछ कटु हो जाएगा। अगर सिर्फ एक विचार या निगाह से, आप किसी बरतन के पानी को मीठा कर सकते हैं, तो सही तरह के नजरिए, एकाग्रता और ध्यान देने से क्या आप शरीर रूपी इस बरतन के जल को मिठास से नहीं भर सकते? अगर आप ऐसा कर पाएं, तो आप बहत्तर फीसदी मीठे हैं, क्योंकि आपके शरीर में लगभग इतनी ही पानी की मात्रा है।
 
 
2--कुंडलिनी जागरण योग खतरनाक भी हो सकता है
 
          सही विधि को अपनाएं योग के बारे में अगर आप थोड़ी-बहुत भी दिलचस्पी रखते होंगे तो कुंडलिनी योग के बारे में जरूर सुना होगा, संभव है कहीं से कुछ पढ़ा या सीखा भी हो, लेकिन सावधान, यह जितना लाभदायक है उतना ही खतरनाक भी। क्यों? आइये जानते हैं अगर आप कुंडलिनी को जाग्रत करना चाहते हैं तो आपको अपने शरीर, मन और भावना के स्तर पर जरूरी तैयारी करनी होगी, क्योंकि अगर आप बहुत ज्यादा वोल्ट की सप्लाई एक ऐसे सिस्टम में कर दें जो उसके लिए तैयार नहीं है तो सब कुछ जल जाएगा। सद्गुरु- आजकल बहुत सारी किताबें और योग-स्टूडियो या योग केंद्र कुंडलिनी योग और उसके लाभों के बारे में बात करते हैं। यह बात और है कि वे इसके बारे में जानते कुछ भी नहीं। यहां तक कि जब हम कुंडलिनी शब्द का उच्चारण भी करते हैं तो पहले अपने मन में एक तरह की श्रद्धा लाते हैं और तब उस शब्द का उच्चारण करते हैं, क्योंकि यह शब्द है ही इतना विशाल, इतना विस्तृत।
 
          अगर आप कुंडलिनी को जाग्रत करना चाहते हैं तो आपको अपने शरीर, मन और भावना के स्तर पर जरूरी तैयारी करनी होगी, क्योंकि अगर आप बहुत ज्यादा वोल्ट की सप्लाई एक ऐसे सिस्टम में कर दें जो उसके लिए तैयार नहीं है तो सब कुछ जल जाएगा। मेरे पास तमाम ऐसे लोग आए हैं जो अपनी शारीरिक क्षमताएं और दिमागी संतुलन खो बैठे हैं। इन लोगों ने बिना जरूरी तैयारी और मार्गदर्शन के ही कुंडलिनी योग करने की कोशिश की। अगर कुंडलिनी योग के लिए उपयुक्त माहौल नहीं है, तो कुंडलिनी जाग्रत करने की कोशिश बेहद खतरनाक और गैरजिम्मेदाराना हो सकती है।
 
          अगर आप इस ऊर्जा को हासिल करना चाहते हैं, जो कि एक जबर्दस्त शक्ति है, तो आपको स्थिर होना होगा। यह नाभिकीय ऊर्जा (न्यूक्लियर एनर्जी) के इस्तेमाल की तकनीक सीखने जैसा है। जापान की स्थिति को देखते हुए आजकल हर कोई परमाणु विज्ञान पर बहुत ध्यान दे रहा है, और उस के बारे में बहुत ज्यादा सीख रहा है। अगर आप रूसी अनुभव को भूल चुके हैं, तो जापानी आपको याद दिला रहे हैं। अगर आप इस ऊर्जा को हासिल करना चाहते हैं तो यह काम आपको बड़ी ही सावधानी से करना होगा।
 
          अगर आप सुनामी और भूकंप जैसी संभावनाओं से घिरे हैं, फिर भी आप न्यूक्लियर एनर्जी से खेल रहे हैं तो आप एक तरह से अपने लिए मुसीबत को ही निमंत्रण दे रहे हैं। कुंडलिनी के साथ भी ऐसा ही है। आज ज्यादातर लोग जिस तरह की जिंदगी जी रहे हैं, उसमें बहुत सारी चीजें, जैसे- भोजन, रिश्ते और तरह-तरह की गतिविधियां पूरी तरह से उनके नियंत्रण में नहीं हैं। उन्होंने कहीं किसी किताब में पढ़ लिया और कुंडलिनी जाग्रत करने की कोशिश करने लगे।
 
          इस तरह कुंडलिनी जाग्रत करना ठीक ऐसा है जैसे आप इंटरनेट पर पढकऱ अपने घर में न्यूक्लियर रिएक्टर बना रहे हों। न्यूक्लियर बम कैसे बनाया जाता है, वर्ष 2006 तक इसकी पूरी जानकारी इंटरनेट पर मौजूद थी। हमें नहीं पता कितने लोगों ने उसे डाउनलोड किया। बस सौभाग्य की बात यह रही कि इस बम को बनाने के लिए जिस पदार्थ की जरूरत होती है, वह लोगों की पहुंच से बाहर था। कुंडलिनी के साथ भी ऐसा ही है।
 
          बहुत सारे लोगों ने पढ़ लिया है कि कैसे कुंडलिनी जाग्रत करके आप चमत्कारिक काम कर सकते हैं। हो सकता है कि बुद्धि के स्तर पर उन्हें पता हो कि क्या करना है, लेकिन अनुभव के स्तर पर उन्हें कुछ नहीं पता। यह अच्छी बात है, क्योंकि अगर वे इस ऊर्जा को हासिल कर लेते हैं, तो वे इसे संभाल नहीं पाएंगे। यह उनके पूरे सिस्टम को पल भर में नष्ट कर देगी। न केवल उनका, बल्कि आसपास के लोगों का भी इससे जबर्दस्त नुकसान होगा। कहीं किसी किताब में पढ़ कर कुंडलिनी जाग्रत करना ठीक ऐसा है जैसे आप इंटरनेट पर पढकऱ अपने घर में न्यूक्लियर रिएक्टर बना रहे हों। इसका मतलब यह नहीं है कि कुंडलिनी योग के साथ कुछ गड़बड़ है।
 
          यह एक शानदार प्रक्रिया है लेकिन इसे सही ढंग से किया जाना चाहिए, क्योंकि ऊर्जा में अपना कोई विवेक नहीं होता। आप इससे अपना जीवन बना भी सकते हैं और मिटा भी सकते हैं। बिजली हमारे जीवन के लिए फायदेमंद हैं, लेकिन अगर आप उसे छूने की कोशिश करेंगे, तो आपको पता है कि क्या होगा। इसीलिए मैं आपको बता रहा हूं कि ऊर्जा में अपनी कोई सूझबूझ नहीं होती। आप जैसे इसका इस्तेमाल करेंगे, यह वैसी ही है। कुंडलिनी भी ऐसे ही है। आप इसका उपयोग अभी भी कर रहे हैं, लेकिन बहुत ही कम।
 
          अगर आप इसे बढ़ा दें तो आप अस्तित्व की सीमाओं से भी परे जा सकते हैं। सभी योग एक तरह से उसी ओर ले जाते हैं, लेकिन कुंडलिनी योग खासतौर से उधर ही ले जाता है। दरअसल पूरा जीवन ही उसी दिशा में जा रहा है। लोग जीवन को जिस तरह से अनुभव कर रहे हैं, उससे कहीं ज्यादा तीव्रता और गहराई से अनुभव करना चाहते हैं। कोई गाना चाहता है, कोई नाचना चाहता है, कोई शराब पीना चाहता है, कोई प्रार्थना करना चाहता है।
 
          वे लोग ये सब क्यों कर रहे हैं? वे जीवन को ज्यादा तीव्रता के साथ महसूस करना चाहते हैं। हर कोई असल में अपनी कुंडलिनी को जाग्रत करना चाहता है, लेकिन सभी इस काम को उटपटांग तरीके से कर रहे हैं। जब आप इसे सही ढंग से, सही मागदर्शन में, वैज्ञानिक तरीके से करते हैं तो हम इसे योग कहते हैं।
 
 
3--विचारों के जंजाल से कैसे मुक्त हों
 
             कैसे मुक्त हो अपने विचारों की आपाधापी से। हमारा जीवित होना या फिर अस्तित्व में होना, और हमारी सोचने की क्षमता ये दो अलग-अलग चीज़ें हैं। आइये अरस्तू और हेराक्लीटस की कहानी के द्वारा यह जानते हैं कि किस तरह हम अपनी विचारों में खो जाते हैं, और यह भूल जाते हैं कि हमारी मौजूदगी ही हमारे विचारों की बुनियाद है। किसी दार्शनिक का यह कथन है 'मैं सोच सकता हूं, इसीलिए मैं हूं। क्या यह वाकई सच है? आपका अस्तित्व है, सिर्फ इसलिए आप कोई विचार उत्पन्न कर पाते हैं।
 
          आप अपने विचार-प्रक्रिया के इतने गुलाम हो गए हैं कि आपका ध्यान अपने अस्तित्व से हटकर पूरी तरह सोच की ओर चला गया है। वह भी इस हद तक कि अब आप यह मानने लगे हैं कि आपका अस्तित्व ही आपकी सोच की वजह से है। मैं आपको बता दूं कि आपके मूर्खतापूर्ण विचारों के बिना भी आपका अस्तित्व हो सकता है। देखा जाए तो आप सोच ही क्या सकते हैं? बस वही बकवास जिसे आपने अपने दिमाग में इकठा कर रखा है और उसे ही बार-बार सोचते रहते हैं। आपके दिमाग में जो भी पहले से भरा हुआ है, उसके अलावा क्या आप कुछ और सोच सकते हैं? आप बस पुराने आंकड़ों को रिसाइकिल कर रहे हैं।
 
          अब यह रिसाइकलिंग ही इतनी अहम हो गई है कि लोग यह तक कहने की हिम्मत कर लेते हैं, 'मैं सोचता हूं, इसलिए मैं हूं। और यही दुनिया की जीवनशैली हो गई है। दरअसल आप हैं, आपका अस्तित्व है इसलिए आप सोच सकते हैं। अगर आप चाहें, तो आप पूरी तरह अपने अस्तित्व को बनाए रख सकते हैं और वह भी बिना सोचे। आपके जीवन के सबसे खूबसूरत पल आनंद के पल, खुशी के पल, परमानंद के पल, नितांत शांति के पल ऐसे पल थे, जब आप किसी चीज के बारे में सोच नहीं रहे थे। आप बस जी रहे थे।
 
          आप एक जीवित प्राणी होना चाहते हैं या विचारों में डूबा प्राणी? फिलहाल नब्बे फीसदी समय आप जीवन के बारे में सोचते हुए बिताते हैं, जीवन को जीते हुए नहीं। आप इस धरती पर जीवन का अनुभव करने आए हैं या जीवन के बारे में सोचने के लिए? आपकी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया जीवन की प्रक्रिया के मुकाबले एक तुच्छ चीज है, मगर फिलहाल वह कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है।
 
          हमें एक बार फिर से जीवन की प्रक्रिया को महत्व देने की जरूरत है। अरस्तु और हेराक्लीटस- अरस्तू को आधुनिक तर्क का जनक माना जाता है, उनका तर्क बहुत स्पष्ट और अजेय होता था। उनकी बौद्धिक प्रतिभा पर कोई सवाल नहीं है, मगर उन्होंने तर्क को जीवन के सभी पहलुओं तक ले जाने की कोशिश की। कई रूपों में वह अपाहिज या असमर्थ थे। उनके बारे में एक कहानी है। मुझे पता नहीं कि उसमें कितनी सच्चाई है, मगर वह सच सी लगती है। एक दिन, अरस्तू समुद्र तट पर टहल रहे थे।
 
          बहुत खूबसूरत सूर्यास्त हो रहा था, मगर उनके पास रोजाना होने वाली ऐसी छोटी-मोटी चीजों के लिए कोई समय नहीं था। वो गंभीरता से अस्तित्व की किसी बड़ी समस्या के बारे में सोच रहे थे। अरस्तू के लिए अस्तित्व एक समस्या थी, और उन्हें लगता था कि वह उस समस्या को सुलझा देंगे। गंभीरता से सोचते हुए, वह समुद्र तट पर आगे-पीछे टहल रहे थे। उसी तट पर एक और आदमी था जो बहुत गहनता से और लगन से कोई काम कर रहा था इतनी लगन से कि अरस्तू भी उसे अनदेखा नहीं कर पाए। आपको पता है, जो लोग अपनी बेकार की चीजों के बारे में बहुत ज्यादा सोचते हैं, वे अपने आस-पास के जीवन को अनदेखा कर देते हैं।
 
          ये ऐसे लोग होते हैं, जो दुनिया में किसी को देखकर मुस्कुराते नहीं, या किसी की ओर देखते तक नहीं। उनके पास किसी फूल, सूर्यास्त, किसी बच्चे या मुस्कुराते चेहरे की ओर देखने की निगाह नहीं होती या उन्हें किसी उदास चेहरे पर मुस्कुराहट लाने की इच्छा नहीं होती, उनके पास दुनिया में ऐसे कोई छोटे काम या छोटी जिम्मेदारियां नहीं होतीं। वे अपने आस-पास के सारे जीवन को अनदेखा कर देते हैं क्योंकि वे अस्तित्व की समस्याओं को सुलझाने में व्यस्त होते हैं। मगर अरस्तू इस आदमी को अनदेखा नहीं कर पाए।
 
          उन्होंने ध्यान से देखा कि वह क्या कर रहा था, वह आदमी बार-बार समुद्र के पास जा रहा था और वापस आ रहा था। अरस्तू रुके और उससे पूछा, 'अरे, तुम क्या कर रहे हो? वह आदमी बोला, 'मुझे परेशान न करो, मैं बहुत जरूरी काम कर रहा हूं, और वह फिर से वही करने लगा। अरस्तू और भी उत्सुक हो गए और उससे पूछा, 'तुम कर क्या रहे हो? वह आदमी बोला, 'मुझे परेशान मत करो, यह बहुत जरूरी चीज है। अरस्तू बोले, 'यह जरूरी चीज क्या है? उस आदमी ने एक छोटा सा छेद दिखाया, जो उसने रेत में बनाया था, और बोला, 'मैं इस छेद में समुद्र भर रहा हूं। उसके हाथ में एक चम्मच था। अरस्तू यह देखकर हंसने लगे।
 
          अरस्तू उस तरह के इंसान हैं, जो एक बार भी हंसे बिना पूरा साल बिता सकते हैं क्योंकि वह बुद्धिमान हैं। हंसने के लिए दिल चाहिए होता है। बुद्धि हंस नहीं सकती, वह सिर्फ चीड़-फाड़ कर सकती है। मगर इस बात पर अरस्तू भी हंसने लगे और कहा, 'क्या बेतुकी बात कर रहे हो! तुम निश्चित रूप से पागल हो। क्या तुम जानते हो कि यह समुद्र कितना विशाल है? तुम इस समुद्र को इस छोटे से छेद में कैसे भर सकते हो? और वह भी एक चम्मच से? कम से कम तुम्हारे पास एक बाल्टी होती, तो फिर भी कोई संभावना होती। कृपया यह कोशिश छोड़ दो, यह पागलपन है, मैं तुम्हें बता रहा हूं। उस आदमी ने अरस्तू की ओर देखा, चम्मच नीचे फेंक दिया और बोला, 'मेरा काम हो गया।
 
           अरस्तू बोले, 'तुम क्या कहना चाहते हो? समुद्र का खाली होना तो भूल जाओ, यह छेद तक नहीं भरा है। तुम कैसे कह सकते हो कि तुम्हारा काम हो गया? वह दूसरा आदमी था, हेराक्लीटस। हेराक्लीटस खड़े होकर बोले, 'मैं एक चम्मच से इस छेद में समुद्र को भरने की कोशिश कर रहा हूं। आप मुझे बता रहे हैं कि यह मूर्खता है, यह पागलपन है, इसलिए मैं यह काम छोड़ दूं। आप क्या करने की कोशिश कर रहे हैं? क्या आप जानते हैं कि यह अस्तित्व कितना विशाल है? इसमें ऐसे एक अरबों-खरबों समुद्र समा सकते हैं और आप उसे छोटे से छिद्र में, अपने सिर में भरने की कोशिश कर रहे हैं, और वह भी किससे? विचारों के चम्मच से। कृपया यह काम छोड़ दीजिए। यह नितांत मूर्खता है।
 
             अगर आप जीवन के विभिन्न आयामों का अनुभव करना चाहते हैं, तो आप अपने तुच्छ विचारों से उन्हें कभी नहीं जान पाएंगे। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितना अच्छा सोच सकते हैं, मानव विचार फिर भी तुच्छ होते हैं। चाहे आपके अंदर आइंस्टीन का दिमाग काम कर रहा हो, वह फिर भी तुच्छ है क्योंकि विचार कभी जीवन से बड़े नहीं हो सकते। विचार सिर्फ तार्किक हो सकते हैं, जो दो पक्षों के बीच काम करते हैं। अगर आप जीवन को उसकी विशालता में जानना चाहते हैं, तो आपको अपने विचारों से कुछ ज्यादा, अपने तर्क से कुछ ज्यादा, अपनी बुद्धि से कुछ ज्यादा की जरूरत होगी।
 
          आपके पास विकल्प है कि या तो आप सृष्टि के साथ रहना सीख जाइए या अपने दिमाग में अपनी बेकार की कल्पनाएं रचते रहिए। आप कौन सा विकल्प आजमाना चाहते हैं? अभी ज्यादातर लोग विचारों में रहते हैं, विचार ऐसी चीज है जो अस्तित्व में नहीं, आपके मन में घटित होते हैं। इसलिए वे असुरक्षित होते हैं क्योंकि वह किसी भी पल ढह सकते हैं। पृथ्वी समय से घूम रही है। कोई छोटी सी भी गड़बड़ नहीं होती। सारे तारामंडल बहुत बढिय़ा तरीके से काम कर रहे हैं, पूरा ब्रह्मांड अच्छी तरह काम कर रहा है। मगर आपके दिमाग में एक छोटे से बुरे विचार का कीड़ा रेंगता है, और आपका दिन खराब हो जाता है।
 
          आपको अपनी मर्जी से कुछ भी सोचने की आजादी है। आप सिर्फ सुखद चीजों के बारे में ही क्यों नहीं सोचते? समस्या बस यही है यह कुछ ऐसा है जैसे आपके पास एक कंप्यूटर तो है, लेकिन उसका की-पैड ढूंढने की आपने कभी परवाह नहीं की। अगर आपके पास कीपैड होता, तो आप उस पर सही शब्द टाइप कर सकते थे। लेकिन आपके पास की-पैड नहीं है और आप अपने कंप्यूटर को किसी असभ्य मनुष्य की तरह धुन रहे हैं, इसलिए उससे सारे गलत शब्द टाइप हो रहे हैं।
 
          अपने कंप्यूटर के साथ यह चीज आजमाएं, नतीजे में आपको बेहूदगी नजर आएगी। आप जीवन का अपना नजरिया, जीवन की दृष्टि खो बैठे हैं क्योंकि आप जो हैं, उससे ज्यादा खुद को समझते हैं। अगर ब्रह्मांड के मुकाबले खुद को देखें, तो आप धूल के एक कण से भी छोटे हैं, मगर आपके ख्याल से आपके विचारों जो आपके अंदर एक कण से भी छोटे हैं को अस्तित्व की प्रकृति तय करनी चाहिए।
 
          मैं जो सोचता हूं और आप जो सोचते हैं, वह कोई अहमियत नहीं रखता। अस्तित्व की भव्यता सबसे महत्वपूर्ण है, वही एकमात्र हकीकत है। आपने 'बुद्ध शब्द के बारे में सुना होगा। जो अपनी बुद्धि से ऊपर उठ गया है, या जो अपने जीवन के पक्षपाती और तार्किक आयाम से ऊपर उठ गया है, वह बुद्ध है। इंसानों ने कष्ट सहने के लाखों तरीके बना लिए हैं। इन सब कष्टों का कारखाना आपके दिमाग में ही है।
 
          जब आप अपने मन से ऊपर उठ जाते हैं, तो यह कष्ट का अंत होता है। जब कष्ट का कोई भय नहीं होता, तो पूर्ण आजादी होती है। जब ऐसा होता है, तभी इंसान अपने जीवन का अनुभव अपनी सीमाओं से ऊपर उठ कर कर सकता है। इसलिए बुद्ध बनने का मतलब है कि आप अपनी ही बुद्धि के एक साक्षी बन गए हैं। योग और ध्यान का मूल तत्व सिर्फ यही है एक बार जब आपके और आपके मन के बीच एक स्पष्ट अंतर आ जाता है, तो आप अस्तित्व के एक बिल्कुल अलग आयाम का अनुभव करते हैं।
 
          आप यह सरल अभ्यास आजमा सकते हैं। अपने नल या किसी भी ऐसी मशीन को इस तरीके से लगाएं कि प्रति मिनट केवल पांच से दस बूंदें गिरे। हर बूंद को ध्यान से देखें वह कैसे बनती है, कैसे गिरती है, कैसे जमीन पर बिखर जाती है। इसे हर दिन पंद्रह से बीस मिनट तक करें। आप अचानक अपने आस-पास और अपने अंदर बहुत सी चीजों के प्रति चेतन हो जाएंगे जिन पर फिलहाल आपका ध्यान बिल्कुल भी नहीं है।
 
 
4-सिर पर चन्द्र और गले में सांप क्यों हैं शिव के
 
            सद्गुरु हर तस्वीर में, हर मूर्ति में, हर जगह शिव के सिर पर चंद्रमा और गले में सांप दिखाया जाता है। क्या है आखिर शिव का इनसे संबंध ? आइए जानते हैं - चंद्रमा शिव के कई नाम हैं। उनमें एक काफी प्रचलित नाम है सोम या सोमसुंदर। वैसे तो सोम का मतलब चंद्रमा होता है मगर सोम का असली अर्थ नशा होता है।
 
          नशा सिर्फ बाहरी पदार्थों से ही नहीं होता, बल्कि केवल अपने भीतर चल रही जीवन की प्रक्रिया में भी आप मदमस्त रह सकते हैं। अगर आपका विशुद्धि चक्र शक्तिशाली हो जाता है, तो आपके अंदर शरीर में प्रवेश करने वाली हर चीज को छानने या शुद्ध करने की काबिलियत आ जाती है। शिव का केंद्र विशुद्धि चक्र में है। उन्हें विषकंठ या नीलकंठ भी कहा जाता है क्योंकि वह सारे जहर को छान लेते हैं।
 
          अगर आप जीवन के नशे में नहीं डूबे हैं, तो सिर्फ सुबह का उठना, अपने शरीर की जरूरतों को पूरा करना, खाना-पीना, रोजी-रोटी कमाना, आस-पास फैले दुश्मनों से खुद को बचाना और फिर हर रात सोने जाना, जैसी दैनिक क्रियाएं आपकी जिंदगी कष्टदायक बना सकती हैं। अभी ज्यादातर लोगों के साथ यही हो रहा है। जीवन की सरल प्रक्रिया उनके लिए नर्क बन गई है।
 
          ऐसा सिर्फ इसलिए है क्योंकि वे जीवन का नशा किए बिना उसे बस जीने की कोशिश कर रहे हैं। चंद्रमा को सोम कहा गया है, यानि नशे का स्रोत। अगर आप किसी चांदनी रात में किसी ऐसी जगह गए हों जहां बिजली की रोशनी नही हो, या आपने बस चंद्रमा की रोशनी की ओर ध्यान से देखा हो, तो धीरे-धीरे आपको सुरूर चढऩे लगता है।
 
          क्या आपने इस बात पर ध्यान दिया है? हम चंद्रमा की रोशनी के बिना भी ऐसा कर सकते हैं मगर चांदनी से ऐसा बहुत आसानी से हो जाता है। अपने इसी गुण के कारण चंद्रमा को नशे का स्रोत माना गया है। शिव चंद्रमा को एक आभूषण की तरह पहनते हैं क्योंकि वह एक महान योगी हैं जो हर समय नशे में चूर रहते हैं। फिर भी वह बहुत ही सजग होकर बैठते हैं। नशे का आनंद उठाने के लिए आपको सचेत होना ही चाहिए।
 
          जब आप शराब पीते हैं, तब भी आप सजग रहकर उस नशे का मजा लेने की कोशिश करते हैं। योगी ऐसे ही होते हैं पूरी तरह नशे में चूर मगर बिल्कुल सजग। योग का विज्ञान आपको हर समय अपने अंदर नशे में चूर रहने का आनंद देता है। योगी आनंद के खिलाफ नहीं होते। बस वे थोड़े से आनंद से या सिर्फ सुख से संतुष्ट नहीं होना चाहते। वे लालची होते हैं। सांप शिव के गले के चारों ओर लिपटा रहता है।
 
          यह सिर्फ एक प्रतीक नहीं है। इसके पीछे एक पूरा विज्ञान है। ऊर्जा शरीर में 114 चक्र होते हैं। आप उन्हें 114 संधि स्थलों या नाडिय़ों के संगम के रूप में देख सकते हैं।वे जानते हैं कि अगर आप एक गिलास शराब पीते हैं तो उससे आपको थोड़ा सा सुरूर होगा जो अगली सुबह सिरदर्द में बदल जाएगा। योगी ऐसा नहीं चाहते। योग के साथ, वे हर समय पूरी तरह नशे में चूर रहते हुए भी सौ फीसदी स्थिर और सचेत रह सकते हैं। कुछ पीकर या किसी भी नशे से ऐसा नहीं किया जा सकता। ऐसा तभी हो सकता है अगर आप खुद अपना नशा तैयार कर रहे हों और उसे पी रहे हों।
 
          प्रकृति ने आपको यह संभावना दी है। पिछले कुछ दशकों में खूब सारा शोध हुआ है और एक वैज्ञानिक ने यह पाया कि मानव मस्तिष्क में लाखों कैनाबिस रिसेप्टर हैं। अगर आप बस अपने शरीर को एक खास तरीके से रखें, तो शरीर अपना नशा खुद पैदा कर सकता है और मस्तिष्क उसे पाने का इंतजार करता है। मानव शरीर अपना नशा खुद पैदा करता है, इसीलिए बिना किसी बाहरी उत्तेजना के ही शांति, आनंद और खुशी की भावनाएं आपके अंदर पैदा हो सकती हैं।
 
          जब उस वैज्ञानिक ने इस रसायन को एक सटीक नाम देना चाहा, तो उसने दुनिया भर के बहुत से ग्रंथ पढ़े। मगर कोई शब्द उसे संतुष्ट नहीं कर पाया। फिर वह भारत आया, जहां उसे 'आनंद शब्द मिला। उसने उस रसायन को 'आनंदामाइड नाम दिया। अगर आप अपने शरीर में पर्याप्त मात्रा में आनंदामाइड पैदा करते हैं, तो आप हर समय नशे में डूबे रहकर भी पूरी तरह जागरूक, पूरी तरह सचेत रह सकते हैं। सर्प योग संस्कृति में, सर्प यानी सांप कुंडलिनी का प्रतीक है। यह आपके भीतर की वह उर्जा है जो फिलहाल इस्तेमाल नहीं हो रही है।
 
          कुंडलिनी का स्वभाव ऐसा होता है कि जब वह स्थिर होती है, तो आपको पता भी नहीं चलता कि उसका कोई अस्तित्व है। केवल जब उसमें हलचल होती है, तभी आपको महसूस होता है कि आपके अंदर इतनी शक्ति है। जब तक वह अपनी जगह से हिलती-डुलती नहीं, उसका अस्तित्व लगभग नहीं के बराबर होता है। अपने इसी गुण के कारण चंद्रमा को नशे का स्रोत माना गया है।
 
          शिव चंद्रमा को एक आभूषण की तरह पहनते हैं क्योंकि वह एक महान योगी हैं जो हर समय नशे में चूर रहते हैं। फिर भी वह बहुत ही सजग होकर बैठते हैं।इस कारण सांप को कुंडलिनी के प्रतीक के रूप में देखा जाता है, क्योंकि कुंडली मारे सांप को भी देखना बहुत मुश्किल होता है, जब तक कि वह आगे नहीं बढ़ता। इसी तरह, आप कुंडलिनी में कैद इस ऊर्जा को सिर्फ तब देख पाते हैं जब वह हिलती-डुलती है।
 
          अगर आपकी कुंडलिनी जाग्रत हो जाती है, तो आपके साथ अविश्वसनीय और चमत्कारी चीजें हो सकती हैं। एक बिल्कुल नई किस्म की ऊर्जा आपके अंदर भरने लगती है और आपके शरीर के साथ-साथ सब कुछ बिल्कुल अलग तरीके से काम करने लगता है। शिव के साथ सांप को दिखाने की यही वजह है। यह दर्शाता है कि उनकी ऊर्जा शिखर तक पहुंच चुकी है। आध्यात्मिकता या रहस्यवाद को सांपों से अलग नहीं किया जा सकता क्योंकि इस जीव में बोध का एक खास आयाम विकसित है। यह एक रेंगने वाला जीव है, जिसे जमीन पर रेंगना चाहिए मगर शिव ने उसे अपने सिर पर धारण किया है। इससे यह पता चलता है कि वह उनसे भी ऊपर है। यह दर्शाता है कि कुछ रूपों में सांप शिव से भी बेहतर हैं।
 
          सांप ऐसा जानवर है जो आपके सहज रहने पर आपके साथ बहुत आराम से रहता है। वह आपको कुछ नहीं करेगा। वह कुछ खास ऊर्जाओं के प्रति बहुत संवेदनशील भी होता है। सांप शिव के गले के चारों ओर लिपटा रहता है। यह सिर्फ एक प्रतीक नहीं है। इसके पीछे एक पूरा विज्ञान है। ऊर्जा शरीर में 114 चक्र होते हैं। आप उन्हें 114 संधि स्थलों या नाडिय़ों के संगम के रूप में देख सकते हैं।
 
          इन 114 में से आम तौर पर शरीर के सात मूल चक्रों के बारे में बात की जाती है। इन सात मूल चक्रों में से, विशुद्धि चक्र आपके गले के गड्ढे में मौजूद होता है। यह खास चक्र सांप के साथ बहुत मजबूती से जुड़ा होता है। विशुद्धि जहर को रोकता है, और सांप में जहर होता है। ये सभी चीजें आपस में जुड़ी हुई हैं। विशुद्धि शब्द का अर्थ है फिल्टर या छलनी। अगर आपका विशुद्धि चक्र शक्तिशाली हो जाता है, तो आपके अंदर शरीर में प्रवेश करने वाली हर चीज को छानने या शुद्ध करने की काबिलियत आ जाती है।
 
          शिव का केंद्र विशुद्धि चक्र में है। उन्हें विषकंठ या नीलकंठ भी कहा जाता है क्योंकि वह सारे जहर को छान लेते हैं। वह उसे अपने शरीर में प्रवेश नहीं करने देते। जहर आपके अंदर सिर्फ भोजन के द्वारा ही नहीं जाता। वह कई तरीकों से आपके अंदर घुस सकता है एक गलत विचार, एक गलत भावना, एक गलत कल्पना, एक गलत ऊर्जा या एक गलत आवेग आपके जीवन में जहर घोल सकता है।
 
          अगर आपका विशुद्धि चक्र सक्रिय है, तो वह सभी कुछ छान देता है। वह आपको इन सभी असरों से बचाता है। दूसरे शब्दों में, विशुद्धि के बहुत सक्रिय हो जाने पर इंसान अपने अंदर इतना शक्तिशाली हो जाता है कि उसके आस-पास जो भी होता है, वह उस पर असर नहीं डालता। वह अपने अंदर स्थिर हो जाता है। वह बहुत शक्तिशाली प्राणी बन जाता है।
 
 
5 का जरा भी अनुभव कर लेते हैं तो अचानक आप पाएंगे कि आपका शरीर, मन, हर चीज जबरदस्त उल्लास से उत्तेजित हो उठेगा। कुल मिलाकर जीवन बिल्कुल अलग तरह का ही होगा। अगर किसी व्यक्ति को स्थिर होना है तो उसे अपने मन को कम से कम अहमियत देनी होगी। यह संपूर्ण अस्तित्व अपने आप में एक जीवंत मन, एक जीवंत दीमाग है। जब इतना विशालकाय दिमाग सक्रिय होकर काम पर लगा है तो फिर अपने इस छुद्र दिमाग को एक किनारे रख दीजिए।
 
          अगर आप उस ब्रम्हांडीय दिमाग को नहीं देख सकते तो फिर यह देखने की कोशिश कीजिए कि किसी और का दिमाग जो आपसे परे है, आपके लिए काम कर रहा है। लेकिन आज के दौर में इसे लोग गुलामी कहेंगे। आज आध्यात्मिक प्रक्रिया पंगु हो गई है। आज हम बहुत कुछ नहीं कर सकते, लेकिन फिर भी हमसे उम्मीद की जाती है कि हम लोगों को ज्ञान की प्राप्ति करा दें, आत्म-बोध करा दें। यह कुछ ऐसा ही है कि हमसे कहा जाए कि कार के टायर निकाल दो, और फिर भी उम्मीद की जाए कि उसे हम बहुत दूर तक चला कर ले जाएं। आध्यात्मिक गुरु हमेशा ही चीजों को करने के आसान तरीके तलाशते रहते हैं।
 
          आज अगर लंच के समय आप यह तय करते हैं कि आप अपने कान से नूडल्स खाएंगे तो हो सकता है कि मैं आपसे कहूं कि आप अपनी नाक से इन्हें खाने की कोशिश कीजिए, उस स्थिति में खाना कम से कम आपके गले में तो जाएगा। आप चाहें तो सूप से कोशिश कर सकते हैं। यह अपेक्षाकृत आसान रहेगा, फिर भी नाक से पीने में आपको काफी दिक्कत आएगी।
 
            यह संपूर्ण अस्तित्व अपने आप में एक जीवंत मन, एक जीवंत दीमाग है। जब इतना विशालकाय दिमाग सक्रिय होकर काम पर लगा है तो फिर अपने इस छुद्र दिमाग को एक किनारे रख दीजिए। इसके बदले अगर आप मुंह खोल कर खाएं तो वही नूडल्स अपने आप में एक आनंद की चीज होगा।
 
          आध्यात्मिक प्रक्रिया भी ऐसी ही है। फिलहाल आपकी हालत भी कुछ ऐसी है- 'मैं यह नहीं कर सकता, मैं वह नहीं कर सकता, लेकिन मुझे आध्यात्मिक प्रक्रिया के बारे में बताइए। इसलिए हम आपके आंख, नाक, कान के जरिए आपको इसे देने की कोशिश कर रहे हैं, यह प्रक्रिया मुश्किल तो है, लेकिन क्या करें? हमें विश्वास है कि अगर हम आपकी नाक के जरिए जबरदस्ती आपको खाना खिलाते रहेंगे तो एक दिन आप अपना मुंह खोल देंगे। और ऐसा आप कुछ सिखाने की वजह से नहीं करेंगे, महज अपने बोध से आप ऐसा कर देंगे। हम उस दिन का इंतजार कर रहे हैं, जिस दिन आप अपना मुंह खोलेंगे।
 
          एक गुरु होना सचमुच कितना हास्यास्पद और बेतुका है! सम्यमा वह अवस्था है, जहां आप पूरी तरह से जागरूक हो जाते हैं कि आप न तो शरीर हैं, न विचार और न ही यह संसार हैं। अगर आप इन तीनों चीजों से मुक्त हो गए तो फिर आपके लिए कष्ट का कोई कारण ही नहीं होगा। सम्यमा का मकसद ही यही है कि व्यक्ति शरीर और मन के कोलाहल व उथलपुथल से दूर होकर अपने भीतर परम निश्चलता व स्थिरता को पा ले।
 
          दुनियाभर के 670 जिज्ञासु, जो इस अवस्था को पाने के लिए बेचैन हैं, ईशा योग केंद्र में इकठ्ठे हुए हैं। वे सब बहुत अ'छा कर रहे हैं। शुरु के कुछ दिनों में उन्हें अपनी शारीरिक सीमाओं के चलते संघर्ष करना पड़ा, लेकिन अब वे बड़ी खूबसूरती और सहजता के साथ स्थिरता की तरफ बढ़ गए हैं। मेरी कामना है कि आप भी सम्यमा की निश्चलता और स्थिरता को महसूस कर सकें।
 
 
6-कृष्ण का ब्रहमचर्य होना एक विरोधाभास
 
          कई लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि गोपियों के साथ रास लीला करने के बाद भी कृष्ण को एक ब्रह्मचारी के रूप में क्यों जाना जाता है। क्या यह दोनों बातें आपस में विरोधी हैं? ब्रह्मचर्य शब्द के क्या मायने हैं..?
 
        प्रश्न- सद्गुरु, अक्सर यह सवाल उठता है कि जब कृष्ण इतनी सारी गोपियों के साथ रासलीला करते थे, तो उनके ब्रह्मचर्य पालन करने का क्या मतलब है ?
 
           इस बारे में हमें समझाएं। सद्गुरु- कृष्ण हमेशा से ब्रह्मचारी थे। ब्रह्मचर्य का अर्थ होता है ब्रह्म या ईश्वर के रास्ते पर चलना। भले ही आप किसी भी संस्कृति या धर्म से ताल्लुक रखते हों, आपको हमेशा यही बताया गया, और आपका विवेक भी आपको यही बताता है, कि अगर ईश्वरीय-सत्ता जैसा कुछ है तो या तो यह सर्वव्यापी है या फिर वह है ही नहीं।
 
          ब्रह्मचर्य का अर्थ है सबको अपने भीतर समाहित करने का रास्ता। आप मैं और तुम में कोई फर्क नहीं करना चाहते। अगर आप किसी को दूसरा इंसान की तरह देखते हैं, तो यह अंतर साफ जाहिर होता है। शारीरिक संबंधों के मामले में मैं और तुम का फर्क बहुत गहराई से जाहिर होता है। इसी वजह से एक ब्रह्मचारी खुद को उससे दूर रखता है।आप अभी इस अवस्था तक नहीं पहुंचे हैं, और आप वहां पहुंचना चाहते हैं, तो सही मायने में आप ब्रह्मचर्य का पालन कर रहे हैं। यह भी मैं हूं, वह भी मैं। न कि यह मैं और वह तुम। आप मैं और तुम में कोई फर्क नहीं करना चाहते। अगर आप किसी को 'दूसरा इंसान की तरह देखते हैं, तो यह अंतर साफ जाहिर होता है। शारीरिक संबंधों के मामले में मैं और तुम का फर्क बहुत गहराई से जाहिर होता है। इसी वजह से एक ब्रह्मचारी खुद को उससे दूर रखता है, क्योंकि वह अपने अंदर ही सबको शामिल कर लेना चाहता है।
 
           कृष्ण में शुरू से ही सब कुछ अपने भीतर समाहित कर लेने का गुण था। बालपन में अपनी मां को जब यह दिखाने के लिए उन्होंने मुंह खोला था कि वह मिट्टी नहीं खा रहे हैं (उनकी मां ने उनके मुंह में सारा ब्रह्मांड देखा था) उस समय भी उन्होंने अपने अंदर सब कुछ समाया हुआ था। जब वे गोपियों के साथ नाचते थे, तब भी सब कुछ उनमें ही समाहित था। उनकी और उन गोपियों की यौवनावस्था के कारण कुछ चीजें हुईं, लेकिन उन्होंने इसे कभी अपने सुख के लिए इस्तेमाल नहीं किया। और न ही ऐसे ख्याल उनके मन में कभी आए। उन्होंने कहा भी है, मैं हमेशा से ही ब्रह्मचारी हूं और हमेशा सदमार्ग पर ही चला हूं। अब मैंने बस एक औपचारिक कदम उठाया है। अब कुछ भी मुझसे अलग नहीं है। बस परिस्थितियां बदली है।
 
          कृष्ण स्त्रियों के बड़े रसिक थे, इसे लेकर उनके बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन यह सब तब हुआ जब वे सोलह साल से छोटे थे। सोलह साल का होने के बाद वे पूर्ण अनुशासित जीवन जीने लगे। वह जहां भी जाते, स्त्रियां उनके लिए पागल हो उठती थीं, लेकिन उन्होंने कभी भी अपने सुख के लिए किसी स्त्री का फायदा नहीं उठाया, एक बार भी नहीं। इसी को ब्रह्मचारी कहते हैं।
 
 
7- रंगों की अपनी आवाज होती है जरा सुनें तो
 
          नीला रंग किसी इंसान में आने वाले आध्यात्मिक रूपांतरण के दौरान उसका आभामंडल, या उसके आस-पास मौजूद जीवन-ऊर्जा का घेरा, अलग-अलग रंग धारण कर सकता है। ऐसी बातों के प्रति संवेदनशील लोग जब करीब दो दशक पहले मुझे देखते थे तो हमेशा कहते थे कि मुझे देखने से उन्हें नारंगी या गहरे गुलाबी रंग का अहसास होता है। लेकिन इन दिनों लोग हमेशा मेरे नीले होने की बात करते हैं।
 
          आप देवी मंदिर में जाइए, वह आपको एक जबर्दस्त झटका देती हैं। आप इससे चूक नहीं सकते, क्योंकि वह बेहद जोशपूर्ण हैं। इसी वजह से वह लाल हैं। ये दो अलग-अलग पहलू हैं जिसे कोई इंसान अपनी इच्छा से धारण कर सकता है। अगर हम अपनी साधना में आज्ञा-चक्र को बहुत महत्वपूर्ण बना लेते हैं, तो नारंगी रंग प्रबल होगा। नारंगी रंग त्याग, संयम, तपस्या, साधुत्व और क्रिया का रंग है।
 
         और नीला रंग सबको समाहित करके चलने का रंग है। आप देखेंगे कि इस जगत में जो कोई भी चीज बेहद विशाल और आपकी समझ से परे है, उसका रंग आमतौर पर नीला है, चाहे वह आकाश हो या समुंदर। जो कुछ भी आपकी समझ से बड़ा है, वह नीला होगा, क्योंकि नीला रंग सब को शामिल करने का आधार है। आपको पता ही है कि कृष्ण के शरीर का रंग नीला माना जाता है। इस नीलेपन का मतलब जरूरी नहीं है कि उनकी त्वचा का रंग नीला था। हो सकता है, वे श्याम रंग के हों, लेकिन जो लोग जागरूक थे, उन्होंने उनकी ऊर्जा के नीलेपन को देखा और उनका वर्णन नीले वर्ण वाले के तौर पर किया। कृष्ण की प्रकृति के बारे में की गई सभी व्याख्याओं में नीला रंग आम है, क्योंकि सभी को साथ लेकर चलना उनका एक ऐसा गुण था, जिससे कोई भी इनकार नहीं कर सकता। वह कौन थे, वह क्या थे, इस बात को लेकर तमाम विवाद हैं, लेकिन इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि उनका स्वभाव सभी को साथ लेकर चलने वाला था।
 
          श्वेत रंग -- सफेद यानी श्वेत दरअसल कोई रंग ही नहीं है। कह सकते हैं कि अगर कोई रंग नहीं है तो वह श्वेत है। लेकिन साथ ही श्वेत रंग में सभी रंग होते हैं। सफेद प्रकाश को देखिए, उसमें सभी सात रंग होते हैं। आप सफेद रंग को अपवर्तन (रिफ्रैक्षन) द्वारा सात रंगों में अलग-अलग कर सकते हैं। कहने का अर्थ यह है कि श्वेत में सबकुछ समाहित है। जब आप आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ते हैं और कुछ खास तरह से जीवन के संपर्क में आते हैं, तो सफेद वस्त्र पहनना सबसे अच्छा होता है। अपने माता-पिता से, दादा- दादी से, अपने पूर्वजों से, यहां तक कि बंदरों से भी आपने भरपूर कर्म बटोर लिए हैं। तब से लेकर अब तक आपको एक पूरी कार्मिक विरासत मिली है। अगर आप आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ रहे हैं तो आप दुनिया में कम से कम बटोरना चाहते हैं। आप हर उस चीज को बस विसर्जित करने की सोचते हैं, जो अब तक आप ढोते आ रहे हैं। इस काम में श्वेत रंग आपकी मदद करता है। ऐसा नहीं है कि अगर आप सफेद कपड़े पहनना शुरू कर दें तो आपके सभी कर्म विसर्जित हो जाएंगे। लेकिन हां सफेद रंग आपकी मदद अवश्य करता है, क्योंकि इसमें परावर्तन की क्षमता यानी सब कुछ लौटा देने की खूबी होती है, न सिर्फ रंग के मामले में बल्कि गुणों के मामले में भी। आप श्वेत रंग इसलिए पहनते हैं, क्योंकि आप अपने आसपास से कुछ भी इकठा करना नहीं चाहते। आप इस दुनिया से निर्लिप्त होकर निकल जाना चाहते हैं। सफेद रंग सब कुछ बाहर की ओर बिखेरता है, कुछ भी पकडकऱ नहीं रखता है। ऐसे बन कर रहना अच्छी बात है। पहनावे के मामले में या आराम के मामले में, आप पाएंगे कि अगर एक बार आप सफेद कपड़े पहनने के आदी हो गए, तो दूसरे रंग के कपड़े पहनने पर आपकों कहीं न कहीं अंतर पता चल ही जाएगा। तो जो लोग आध्यात्मिक पथ पर हैं और जीवन के तमाम दूसरे पहलुओं में भी उलझे हैं, वे अपने आसपास से कुछ बटोरना नहीं चाहते। वे जीवन में हिस्सा लेना चाहते हैं, लेकिन कुछ भी इकठा करना नहीं चाहते। ऐसे लोग सफेद कपड़े पहनना पसंद करेंगे।
 
          लाल रंग- अगर आप किसी जंगल से गुजर रहे हैं, तो वहां सब कुछ हरे रंग का होता है, लेकिन वहां लाल रंग भी कहीं दिखाई दे जाता है। अगर कहीं कोई लाल रंग का फूल खिल रहा होगा, तो वह आपका ध्यान अपनी ओर खींचेगा, क्योंकि आपके अनुभव में लाल रंग सबसे चमकीला होता है। बाकी के रंग खूबसूरत हो सकते हैं, अच्छे हो सकते हैं, लेकिन सबसे ज्यादा चमकीला लाल रंग ही है। नीला रंग सबको समाहित करके चलने का रंग है। आप देखेंगे कि इस जगत में जो कोई भी चीज बेहद विशाल और आपकी समझ से परे है, उसका रंग आमतौर पर नीला है, चाहे वह आकाश हो या समुंदर। इसीलिए जब हम फूल का नाम लेते हैं तो ज्यादातर लोगों के दिमाग में जो सबसे पहले रंग आता है, वह है लाल रंग। दरअसल लाल फूल ही असली फूल होता है। बहुत सी चीजें जो आपके लिए महत्वपूर्ण होती हैं, वे लाल ही होती हैं। रक्त का रंग लाल होता है। उगते सूरज का रंग भी लाल होता है। मानवीय चेतना में सबसे अधिक कंपन लाल रंग ही पैदा करता है। जोश और उल्लास का रंग लाल ही है। आप कैसे भी व्यक्ति हों, लेकिन अगर आप लाल कपड़े पहनकर आते हैं तो लोगों को यही लगेगा कि आप जोश से भरपूर हैं, भले ही आप हकीकत में ऐसे न हों। इस तरह लाल रंग के कपड़े आपको अचानक जोशीला बना देते हैं। देवी (चैतन्य का नारी स्वरूप) इसी जोश और उल्लास की प्रतीक हैं। उनकी ऊर्जा में भरपूर कंपन और उल्लास होता है। आप देवी मंदिर में जाइए, वह आपको एक जबर्दस्त झटका देती हैं। आप इससे चूक नहीं सकते, क्योंकि वह बेहद जोशपूर्ण हैं। इसी वजह से वह लाल हैं। देवी से संबंधित कुछ खास किस्म की साधना करने के लिए लाल रंग की जरूरत होती है।
 
 
8-हमारा शरीर परमानन्द की सीढी और मन चमत्कार है
 
          जी हां, यह मानव शरीर एक ऐसा तोहफा है आपके लिए जिसे आप चाहें तो स्वर्ग की सीढ़ी बना लें या अपने लिए परेशानियों का द्वार। और हमारा मन एक कमाल का यंत्र है, बस यह समझिए कि सुप्रीम कंप्यूटर। लेकिन अफसोस कि हम इसको समझने और इसका इस्तेमाल सीखने के लिए उतना समय भी नहीं देते जितना एक मामूली कंप्यूटर को सीखने में देते हैं। यही वजह है कि हम इस बेमिसाल यंत्र के पूरे और सही इस्तेमाल से चूक जाते हैं।
 
          इस मानव-प्रणाली को साधारण न समझें, आप इससे ऐसी चीजें कर सकते हैं, जिनके संभव होने की आपने कभी कल्पना नहीं की होगी। एक खास तरह की जीवन-शैली अपना कर आप इस शरीर को एक ऐसा साधन बना सकते हैं, जो ब्रह्मांड की धुरी बन जाता है। दुर्भाग्य से हमारे समाज में ज्यादातर लोगों ने दिमाग को इस्तेमाल करने का तरीका ठीक ढंग से सीखने में भरपूर समय नहीं दिया, इसीलिए वे झंझटों में उलझे रहते हैं। योग में, हम मानव रीढ़ को 'मेरुदंड कहते हैं, जिसका अर्थ होता है- ब्रह्मांड की धुरी।
 
          शारीरिक विकास की प्रक्रिया में, पशुओं के बिना रीढ़ का होने से रीढ़वाले होने तक का विकास एक बड़ी उछाल थी। उसके बाद उसके पशुओं जैसी रीढ़ से लंबवत या सीधी रीढ़ तक का जो विकास हुआ वो मनुष्य के दिमाग के विकास से भी बड़ा कदम था। वैज्ञानिक रूप से यह सिद्ध हो चुका है कि रीढ़ के सीधे होने के बाद ही मस्तिष्क का विकास शुरू हुआ। इसीलिए योग में मेरुदंड को इतना महत्व दिया जाता है।
 
          योगी एक ऐसा व्यक्ति होता है जो अपने शरीर को रूपांतरित करके उसे स्वर्ग की सीढ़ी बना लेता है। इसके लिए रीढ़ पर थोड़ा अधिकार होना जरूरी हो जाता है। पारंपरिक रूप से कहा जाता है कि स्वर्ग की तैंतीस सीढिय़ां होती हैं। ऐसा शायद इसीलिए कहा जाता है क्योंकि आपकी रीढ़ में तैंतीस हड्डियां हैं। यह रीढ़ कष्टदायक भी हो सकती है या इसे उस सीढ़ी का रूप दिया जा सकता है, जिस पर चढकऱ आप अपने भीतर चेतना, आनंद और परमानंद के उच्चतम स्तर पर पहुंच सकें। मानव स्वभाव कोई संघर्ष नहीं है, लोग इसे संघर्ष बना रहे हैं।
 
          आपको एक शानदार तंत्र से नवाजा गया है जिसे दिमाग कहते हैं। इस दिमाग को विकसित होने में करोड़ों साल का समय लग गया। करोड़ों साल तक 'आर एंड डी (शोध और विकास) के चरणों से गुजरने के बाद कहीं जाकर इस शानदार यंत्र का निर्माण हुआ। लेकिन ज्यादातर लोग इस शानदार यंत्र का धड़ल्ले के साथ इस्तेमाल कर रहे हैं, बिना यह जाने कि इसका प्रयोग सही तरीके से कैसे किया जाता है।
 
          अगर मैं आपको एक सस्ता सा सेलफोन लाकर दूं तो आपको उस पर बस दस-बारह बटन मिलेंगे। इसके लिए रीढ़ पर थोड़ा अधिकार होना जरूरी हो जाता है। पारंपरिक रूप से कहा जाता है कि स्वर्ग की तैंतीस सीढिय़ां होती हैं। ऐसा शायद इसीलिए कहा जाता है क्योंकि आपकी रीढ़ में तैंतीस हड्डियां हैं। आपको बस ये सीखना है कि किस बटन को दबा कर कॉल करना है, किससे ऑफ करना है, बस हो गया आपका काम। अब जरा सोचिए मैंने आपको एक स्मार्टफोन दे दिया, जिसमें प्रयोग करने के लिए सैकड़ों फंक्शन हैं।
 
          जो लोग भी स्मार्टफोन का प्रयोग कर रहे हैं, उनमें से ज्यादातर लोग फोन के पांच फीसदी से भी कम फंक्शन का ही इस्तेमाल जानते हैं। आपका फोन, आपकी कार, आपका अंतरिक्षयान, आपका सुपर-कंप्यूटर या ऐसी ही दूसरी चीजें जिन्हें इंसान ने बनाया है, इसी दिमाग की उपज हैं। यह दिमाग एक बेहद जटिल यंत्र है। अगर आपके पास साधारण फोन है तो उसका इस्तेमाल सीखने के लिए आपको पांच से दस मिनट का वक्त चाहिए।
 
          अगर आपके पास स्मार्ट-फोन है तो हो सकता है कि उसके साथ मिली निर्देशिका को पढऩे में ही आपका आधा दिन निकल जाए और उसके बारे में सीखने में आपको दो-चार दिन ध्यान देना पड़े। अगर कंप्यूटर की बात करें तो आपको और भी ज्यादा समय लगाने की जरूरत हो सकती है। हो सकता है कि एक दो महीने लग जाएं। अगर आपको सुपर-कंप्यूटर दे दिया जाए तो उस पर काम करना सीखने के लिए हो सकता है कि आपको पांच साल लग जाएं।
 
          अगर आपको सुप्रीम-कंप्यूटर मिलता है, जो कि आपके पास ही है, तो आपको उसे सीखने में कुछ समय लगाना चाहिए। दुर्भाग्य से हमारे समाज में ज्यादातर लोगों ने दिमाग को इस्तेमाल करने का तरीका ठीक ढंग से सीखने में भरपूर समय नहीं दिया, इसीलिए वे झंझटों में उलझे रहते हैं। यह इत्तेफाक की बात है कि कुछ लोगों ने दिमाग का अच्छी तरह से प्रयोग करना सीख लिया है, बाकियों ने इसे लेकर सब गड़बड़ कर रखा है।
 
 
9-ध्यान के समय मन को सेवक बनाये रखें मालिक नहीं
 
          हम हर काम करने से पहले यह जरुर सोचते हैं कि इसे करने से हमें क्या मिलेगा। लेकिन जब यही सोच कर हम ध्यान करना चाहते हैं तो सद्गुरु बता रहे हैं कि यह सोचना छोडि़ए। क्यों, आइए जानते हैं- लोग अकसर हिसाब लगाते हैं ध्यान करने से मुझे क्या मिलेगा। यह हिसाब-किताब लगाना छोड़ दीजिए। आपको कुछ भी नहीं मिलने वाला है। आपको इससे कोई लाभ नहीं होगा। जरुरी नहीं है कि कुछ घटित हो।
 
          ध्यान का मकसद सेहतमंद होना, ज्ञान प्राप्त करना या स्वर्ग हासिल कर लेना नहीं है, यह तो बस आपके जीवन का पुष्पित होना है। ' आज के सत्संग से हम क्या ले जाएंगे- अगर आप इस तरह की बातें सोचेंगे कि आप लेकर क्या जाने वाले हैं तो आप देखेंगे कि आप बेहद तुच्छ चीजें लेकर जा रहे हैं। असली चीज आप अपने साथ कभी नहीं ले जा पाएंगे। अगर आप शरीर को स्थिर और शांत कर देंगे तो मन अपने आप शांत और स्थिर हो जाएगा। यही वजह है कि योग में आसनों पर इतना ज्यादा जोर दिया गया है।
 
          अगर आपको असली चीज चाहिए तो ले जाने का चक्कर छोडि़ए। बस वहां रहिए, कुछ भी करने या होने की जरूरत नहीं है। अगर आप अपने जीवन के हर क्षेत्र से इस गणना को खत्म कर दें कि मुझे बदले में क्या मिलेगा, तो आप असीमित और करुणामय हो जाएंगे। इसके अलावा कोई और रास्ता नहीं है। आपको बस इसी एक गणना को छोडऩा है, क्योंकि आपकी पूरी मानसिक प्रक्रिया की, दिमाग में जो कुछ भी हो रहा है उन सबकी चाबी यही है। चूंकि लोगों के पास इतनी जागरूकता नहीं है कि वे बिना कोई हिसाब-किताब लगाए बस यूं ही खुद को रख सकें, इसलिए एक विकल्प दिया गया है और वह विकल्प यह है कि बस प्रेम में रहो।
 
          प्रेम एक ऐसी हालत है, जिसमें रहते हुए काफी हद तक आप कुछ साथ ले जाने के भाव से अलग होते हैं। प्रेम और करुणा का गहन भाव विकसित करने के लिए जो कुछ भी कहा जाता है उन सबका आशय यही है कि आप अपेक्षाओं को खत्म कर रहे हैं। किसी के साथ गहराई में भावनात्मक रूप से जुडऩे पर 'मुझे क्या मिलेगा वाली बात खत्म हो जाती है।
 
           अगर आपने अपने जीवन से इस एक गणना को खत्म कर दिया तो समझिए कि नब्बे फीसदी काम पूरा हो गया। बाकी का दस फीसदी अपने आप पूरा हो जाएगा। यह सांप-सीढ़ी के खेल की तरह है। यहां भी बहुत सारी सीढिय़ां हैं और बहुत सारे सांप भी। प्रेम और करुणा का गहन भाव विकसित करने के लिए जो कुछ भी कहा जाता है उन सबका आशय यही है कि आप अपेक्षाओं को खत्म कर रहे हैं।
 
         किसी के साथ गहराई में भावनात्मक रूप से जुडऩे पर 'मुझे क्या मिलेगा वाली बात खत्म हो जाती है। आप कभी ऊपर जाएंगे, तो कभी अचानक नीचे आ जाएंगे, यह सब चलता रहेगा, लेकिन अगर एक बार आपने अंतिम सीढ़ी को छू लिया तो फिर आपको किसी सांप का सामना नहीं करना है। आप बस एक, एक और एक लाते रहिए। आप मंजिल पर पहुंच ही जाएंगे।
 
          अब आपको डसने के लिए कोई सांप नहीं है। फिर तो मंजिल तक पहुंचना बस कुछ समय की बात है। अगर आप शरीर को स्थिर और शांत कर देंगे तो मन अपने आप शांत और स्थिर हो जाएगा। यही वजह है कि योग में आसनों पर इतना ज्यादा जोर दिया गया है। अगर आप यह सीख लें कि शरीर को शांत और स्थिर कैसे रखा जाता है तो आपका मन अपने आप शांत और स्थिर हो जाएगा। अगर आप अपने शरीर पर गौर करें तो आप पाएंगे कि जब आप चलते हैं, बैठते हैं या बोलते हैं, तो आपका शरीर ऐसी बहुत सी हरकतें करता है, जो गैर जरूरी हैं।
 
          इसी तरह अगर आप अपने जीवन को गौर से देखें तो पाएंगे कि जीवन का आधे से ज्यादा समय ऐसी बातों में बर्बाद हो जाता है, जिनकी आप खुद भी परवाह नहीं करते। अगर आप शरीर को स्थिर रखेंगे तो मन धीरे धीरे अपने आप शिथिल पडऩे लगेगा। मन जानता है कि अगर उसने ऐसा होने दिया तो वह दास बन जाएगा। अभी आपका मन आपका बॉस है और आप उसके सेवक।
 
          जैसे-जैसे आप ध्यान करते हैं, आप बॉस हो जाते हैं और आपका मन आपका सेवक बन जाता है और यह वह स्थिति है, जो हमेशा होनी चाहिए। एक सेवक के रूप में मन बहुत शानदार काम करता है। यह एक ऐसा सेवक है जो चमत्कार कर सकता है, लेकिन अगर आपने इस मन को शासन करने दिया तो यह भयानक शासक होगा। अगर आपको नहीं पता है कि मन को दास के रूप में कैसे रखा जाए तो मन आपको एक के बाद एक कभी न खत्म होने वाली परेशानियों में डालता रहेगा।
 
 
10-हम जो चीज बांटते हैं वहीं हमारा गुण बन जाता है
 
          हम समझते हैं कि हम जो चीज हमारे भीतर है वो हमारा गुण होगा, जबकि जो आप अपने आस पास बिखेरते हैं, जो बांटते हैं, वो आपका गुण होता है। ये ठीक वैसा ही है जैसा रंगों और रौशनी के साथ होता है। आइए जानते हैं विस्तार से - इस जगत में किसी भी चीज में रंग नहीं है। पानी, हवा, अंतरिक्ष और पूरा जगत ही रंगहीन है। यहां तक कि जिन चीजों को आप देखते हैं, वे भी रंगहीन हैं।
 
          रंग केवल प्रकाश में होता है। आप जो भी रंग चाहते हैं, वे सभी सिर्फ प्रकाश में है। अगर प्रकाश किसी वस्तु पर पड़ता है और वह वस्तु कुछ भी परावर्तित नहीं करती, यानी सारा प्रकाश वह सोख लेती है, तो वह काले रंग की नजर आती है। अगर कोई वस्तु सारा प्रकाश परावर्तित कर देती है, या लौटा देती है तो वह सफेद नजर आती है। तो रंग की वजह प्रकाश है।
 
          अगर कोई चीज आपको लाल नजर आ रही है तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह चीज लाल रंग की है। इसका मतलब यह है कि वह लाल रंग को छोडकऱ शेष सभी रंगों को अपने भीतर रख लेती है। सिर्फ लाल रंग को वह परावर्तित कर देती है और इसी वजह से आपको वह लाल रंग की दिखाई देती है। रंगों के बारे में इंसान की समझ इसी तरह से काम करती है।
 
          कोई चीज आपको काली नजर आती है, क्योंकि वह कुछ भी परावर्तित नहीं करती। इस जगत में किसी भी चीज में रंग नहीं है। पानी, हवा, अंतरिक्ष और पूरा जगत ही रंगहीन है। यहां तक कि जिन चीजों को आप देखते हैं, वे भी रंगहीन हैं। रंग केवल प्रकाश में होता है। कुछ चीजें सफेद नजर आती हैं, क्योंकि वे सब कुछ परावर्तित कर देती हैं। कुछ चीजें नीली नजर आती हैं, क्योंकि वे नीले को छोडकऱ बाकी सभी रंगों को रोककर रखती हैं। आप रंग के बारे में जो सोचते हैं, रंग उससे बिल्कुल उल्टा है।
 
          जब आप कोई हरे रंग की चीज देखते है तो वास्तव में उसका रंग हरा नहीं होता। हरे रंग को वह बाहर निकालती है, उसे बिखेरती है, इसीलिए वह आपको हरी नजर आती है, उसका रंग हरा नहीं होता। यानी किसी वस्तु का रंग वह नहीं है जैसा वह दिखता है, जो वह त्यागता है वही उसका रंग हो जाता है । आप जो भी चीज परावर्तित करेंगे, वही आपका रंग हो जाएगा।
 
          आप जो अपने पास रख लेंगे, वह आपका रंग नहीं होगा। ठीक इसी तरह से जीवन में जो कुछ भी आप देते हैं, वही आपका गुण हो जाता है। अगर आप आनंद देंगे तो लोग कहेंगे कि आप आनंद से भरे इंसान हैं। अगर आप प्रेम देंगे तो लोग कहेंगे कि आप प्रेममय हैं। अगर आप निराशा देंगे तो कहा जाएगा कि आप निराश व्यक्ति हैं। अगर आप धन देंगे तो लोग कहेंगे कि आप अमीर हैं।
 
          अगर आप कुछ भी नहीं देंगे तो कहा जाएगा कि आपके पास कुछ भी नहीं है। तो आप जो भी देते हैं, हमेशा वही आपका गुण बन जाता है। लेकिन हमारा तार्किक दिमाग सोचता है कि हम जिस चीज को अपने पास रखते हैं, वही हमारा गुण होता है। नहीं, जिस चीज को आप थामकर रखते हैं, वह कभी आपका गुण हो ही नहीं सकता। जो आप देते हैं, वह आपका गुण होता है।
 
 
11-काले रंग का असर?
 
          कभी-कभी हमें परिवार के लोग शुभ दिनों पर या सामान्य तौर पर भी काले कपड़े पहनने से मना करते हैं। क्या सच में काले रंग का बुरा असर हो सकता है? प्रमुख रंग रंगों की जो आपकी समझ और अनुभव है, उसमें तीन रंग सबसे प्रमुख हैं- लाल, हरा और नीला। बहुत सारे ऐसे रंग भी हैं जिन्हें इंसान आमतौर पर नहीं देख पाता, क्योंकि आपकी आंखों के 'वर्ण-शंकु यानी 'कलर कोन मुख्य रूप से लाल, हरे और नीले रंग को ही पहचान पाते हैं।
 
          इस जगत में मौजूद बाकी सारे रंग इन्हीं तीन रंगों से पैदा किए जा सकते हैं। दुनिया के अलग-अलग धर्मों ने अलग अलग रंगों को चुना है, कुछ ने हरा रंग चुना है, कुछ ने लाल या नारंगी रंग चुना है तो कुछ ने नीला। हर रंग का आपके ऊपर एक खास प्रभाव होता है।
 
          आपको पता ही होगा कि कुछ लोग रंग-चिकित्सा यानी कलर-थेरेपी भी कर रहे हैं। वे इलाज के लिए अलग-अलग रंगों की बोतलों का पानी भरने के लिए प्रयोग करते हैं, क्योंकि रंगों का आपके ऊपर एक खास किस्म का प्रभाव होता है। आइए जानते हैं काले रंग के बारे में - काला रंग कोई चीज काली है या आपको काली प्रतीत होती है, इसकी वजह यह है कि यह कुछ भी परावर्तित नहीं करती, कुछ भी लौटाती नहीं,सब कुछ सोख लेती है। तो अगर आप किसी ऐसी जगह हैं, जहां एक विशेष कंपन और शुभ ऊर्जा है तो आपके पहनने के लिए सबसे अच्छा रंग काला है क्योंकि ऐसी जगह से आप शुभ ऊर्जा ज्यादा से ज्यादा अवशोषित करना चाहेंगे, आत्मसात करना चाहेंगे।
 
          जब आप दुनिया से घिरे होते हैं, लाखों-करोड़ों अलग-अलग तरह की चीजों के संपर्क में होते हैं, तो सफेद कपड़े पहनना सबसे अच्छा है, क्योंकि आप कुछ भी ग्रहण करना नहीं चाहते, आप सब कुछ वापस कर देना, परावर्तित कर देना चाहते हैं। काला रंग बाहर से ही नहीं, भीतर से भी अवशोषित करता है। अगर आप लगातार लंबे समय तक काले रंग के कपड़े पहनते हैं और तरह-तरह की स्थितियों के संपर्क में आते हैं तो आप देखेंगे कि आपकी ऊर्जा कुछ ऐसे घटने-बढऩे लगेगी कि वह आपके भीतर के सभी भावों को सोख लेगी और आपकी मानसिक हालत को बेहद अस्थिर और असंतुलित कर देगी।
 
          आपको एक तरह से मौन-कष्ट होने लगेगा यानी ये कष्ट आपको इस तरह होंगे कि आप इनको जाहिर भी नहीं कर पाएंगे। लेकिन अगर आप किसी ऐसी स्थिति में काला रंग पहनते हैं, जो शुभ ऊर्जा से भरपूर है तो आप इस ऊर्जा को अधिक से अधिक ग्रहण कर सकते हैं, जो आपके लिए अच्छा है।
 
          शिव को हमेशा काला माना जाता है क्योंकि किसी भी चीज को ग्रहण करने में उन्हें कोई समस्या नहीं है। यहां तक कि जब उन्हें विष दिया गया तो उसे भी उन्होंने सहजता से पी लिया। उनमें खुद को बचाए रखने की भावना नहीं है, क्योंकि उनके साथ ऐसा कुछ होता भी नहीं है। इसलिए वह हर चीज को ग्रहण कर लेते हैं, किसी भी चीज का विरोध नहीं करते।

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