Tuesday, February 17, 2015

जैसा मन होगा वैसा मनुष्य बनेगा

         मनुष्य मनोमय है अर्थात मन की जैसी प्रवृत्ति होती है, वैसा ही मनुष्य बन जाता है। आत्मा प्रज्ञा के रूप में मन में प्रतिबिंबित होती है।-----उपनिषद

 

           मन की सक्रियता का आधार आत्मा है और इसको जानने पर बल दिया जाना चाहिए। ज्ञान का आधार तप, संयम और नि:स्वार्थ कर्म है।--उपनिषद



           मन दसों इंद्रियों का अधिपति है और जब मन इनसे संयुक्त होता है तभी उन विषयों का ज्ञान होता है। मन अनंत है। मन ही ज्योति है, मन ही सम्राट है और मन ही परम ब्रहम है।---वृहदारण्यक उपनिषद



          मन आत्मा द्वारा निर्देशित अंतरइंद्रिय है, जो दूसरी इंद्रियों को निर्देशित करता है। जिसने अपना चरित्र शुद्ध नहीं किया, जिसकी इंद्रियां शांत नहींरह सकतीं, जिसका चित्त स्थिर नहीं, मन सदैव अशांत रहता है, वह केवल बाहृय जगत के आधार पर आत्मा को प्राप्त नहींकर सकते।

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