1- धर्म में विश्वास करने वाले आदमी धार्मिक नहीं होते हैं-
धर्म में विश्वास का मतलव है जो हम नहीं जानते हैं और उसे हमने मान लिया । यह जैसे अन्धापन है । यह तो अपने को अन्धा बनाने का रास्ता है ।
अबतक हमें यह समझाया जाता रहा है कि अगर भगवान को पाना है तो विश्वास करो ? और बहुत सारे लोगों ने विश्वास किया है, लेकिन भगवान को कम लोगों ने पाया ।
विश्वास तो सभी करते हैं, लेकिन भगवान अधिक लोगों को क्यों नहीं उपलव्ध हो पाता ? पृथ्वी पर लोग हजारों सालों से विश्वास कर रहे हैं,लेकिन लोगों के जीवन में परमात्मा की झलक नहीं उतर पाती । कितने मन्दिर है,कितने मस्जिद हैं,कितने गुरुद्वारे है !कितना पूजा-पाठ, कितनी प्रार्थना है,कितना विश्वास है !लेकिन फिर भी लोग धार्मिक क्यों नहीं हैं ? लोगों का जीवन तो अधार्मिक है । क्या हो गया ?कारण क्या है ?
इसका कारण एक ही है कि यह जीवन चलता है ज्ञान से विश्वास से नहीं । विश्वास सत्य नहीं बन पाते हैं । और विश्वासों को सत्य बनाया भी नहीं जा सकता है । अगर सत्य को जानना है तो विश्वास छोडना होता है ।
ऐसा भी नहीं कि विश्वास करना छोड दो, क्योंकि अविश्वास भी उलटा विश्वास है ।जो आदमी न विश्वास और न अविश्वास के बीच में खडे होने को राजी है, उसी के जीवन में ज्ञान की किरण उतरती है । जो व्यक्ति न तो विश्वास की खूंटी से अपनी नाव को बॉधता है और न अविश्वास की खूंटी से बॉधता है ,न हिन्दू,न मुसलमान,न जैन, न ईसाई, और न सिक्ख किसी की भी खूंटी से अपने आपको बॉधता है और कहता है कि हम तो अनंत के सागर में अपनी नाव को छोडेंगे,किसी की खूंटी से बॉधेंगे नहीं -वही आदमी परमात्मा तक पहुंचने में सफल हो पाता है ।
देखने वाली बात तो यह है कि हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख,ईसाई,जैन सभी जिनका गुणगान करते है, वे ही लोग है जो बिना किसी की खूंटी से बंधे ही परमात्मा तक पहुंचे हैं । सभी नौका को छोडकर सागर में जाने वाले लोग हैं । लेकिन हम हैं कि उनके नाम पर खूंटियॉ भॉधकर किनारे पर बैठ जाते हैं ।
कवीर ने ठीक ही तो कहा है कि-
जिन खोजा तिन पाइयॉ,गहरे पानी पैठ।
मैं बौरी खोजन गई,रही किनारे बैठ।।
मैं बौरी खोजन गई,रही किनारे बैठ।।
उन्होंने पाया जो गहरे डूबे और मैं पागल किनारे पर बैठ कर रह गई , इसलिए कि डूबने से डर गईं ।
अर्थात जो भी डूबने से डरेगा वह खूटियॉ पकड लेगा, उसका सहारा पकड लेगा ।और जो डूबने से डरेगा वह परमात्मा तक नहीं पहुंच सकता है। क्योंकि जो डूबता है वही उबरता है,जो डूबता है वही पहुंचता है ,वही पाता है ।अगर बचना है तो डूबना होगा । अगर धर्म से बचना है तो ,किनारे पर खूंटियॉ पकडकर बैठजाना ही उपयोगी है ।
ये खूटियॉ पुरानी हो सकती हैं या नईं हो, बस इनका काम बॉधने का होता है । और वैसे धर्म कोई खूंटी नहीं होती है ,धर्म तो स्वतंत्रता है । इसलिए धार्मिक आदमी न तो हिन्दू होता है न मुसलमान,न ईसाई होता है न सिक्ख । धार्मिक आदमी तो बस आदमी होता है ।
एक बार में हेमकुण्ड-जोशीमठ गुरुद्वारे में देखने गया तो एक मित्र ने कहा यहॉ ईसाई,हिन्दू,मुसलमान,सबके लिए जगह खुली है । मैने कहा ऐसा मत बोलो भई ?क्योंकि ऐसा कहने में ही ईसाई,सिक्ख मुसलमान की स्वीकृति हो जाती है कि ये अलग-अलग हैं । इतना ही कहें कि यहॉ हर आदमी के लिए जगह खुली है ।
कभी वह समय आयेगा जब इस पृथ्वी पर ऐसे मंदिर बनेंगे जिसमें सिर्फ आदमी होना काफी होगा,जिनमें कोई पहचान नहीं होगी । आज तक नहीं बना पाये ,हजारों बार केशिश होती रही है,कभी बुद्ध,कभी महॉवीर,कभी कृष्ण,कभी क्राइस्ट,नानक ने ऐसा मन्दिर बनाने का प्रयास किया है और महॉन लोग आगे करते रहेंगे । लेकिन हम भी ऐसे पागल हैं कि हम उन मन्दिरों में अपनी खूंटियॉ गाढ लेते हैं । हम उन मन्दिरों पर भी कब्जा कर लेते हैं । हम उस मन्दिर को भी किसी का बना लेते हैं । और जो मन्दिर किसी का बन जाता है, वह मन्दिर परमात्मा का नहीं रह जाता है । परमात्मा का होने के लिए उसका किसी का होना अयोग्यता है । वह किसी का भी न हो ,तभी वह सभी का हो सकता है ।
एक बार मैं दिल्ली में अपने मित्र के यहॉ गया था । हमारे पडोस में कुछ हरिजन मित्र बन गये । उन्होंने हमसे कहा कि गॉधी जी तो ऐसे थे कि हरिजनों के घर ठहरते थे । आप हम हरिजनों के यहॉ क्यों नहीं ठहरते
? मैंने उससे कहा कि मैं तुम्हारे घर ठहर सकता हूं,लेकिन हरिजन के घर नहीं ठहर सकता । क्योंकि तुम हरिजन हो । यह अन्याय है,अधर्म है,गलती है, कोई आदमी कहता है कि तुम हरिजन हो, वह भी तुम्हैं हरिजन मानता है । मैं तुम्हारे घर में ठहर सकता हूं मगर हरिजन के रूप में नहीं । आदमी के रूप में ।
सामान्यतः यह कहा जाता है कि हिन्दू मुस्लिम देोनों भाई-भाई है फिर भी दो रहते हैं कोई कहता है हिन्दी मुश्लिम दोनों दुश्मन हैं, तो भी दो होते हैं । देखने वाली बात है कि भाई-भाई कहने वाला भी एक नहीं मानता,और लडाने वाला भी एक नहीं मानता है । एक तो वही मान सकता है जो कहे कि तुम हिन्दू कैसे? तुम मुसलमान कैसे ? तुम कोई भी नहीं हो । आदमी होना सत्य है,बाकी यह सब खूंटी पर बॉधने वालों की सिखाई बात है, जिसे हम ऊपर से थोप देते हैं ।धार्मिक आदमी का पैदा होना मुश्किल हो गया है ।
2-मनुष्य अपने अनुभव से नहीं सीखता है -
सचमुच यह एक आश्चर्य की बात है कि मनुष्य अपने अनुभव से कुछ भी नहीं सीखता है
,यही तो उसकी अज्ञानता का आधार है । इसी तथ्य को एक कहानी के रूप में देखें तो- एक बार एक आदमी के घर में रात के अंधेरे में चोर घुस गया,उसकी पत्नी की नींद खुली और उसने अपने पति को कहा मालूम होता है घर में कोई चोर घुस गया । उसके पति ने विस्तर में पडे-पडे कहा कौन है ? चोर ने कहा कोई भी नहीं । उसका पति सो गया । रात को चोरी हो गई । सुबह उसकी पत्नी ने कहा चोरी हो गई ! मैने आपको कहा था ! तो पति ने कहा मैने कहा था ,कौन है ?लेकिन आवाज आई कि कोई भी नहीं, इसलिए मैं वापस सो गया ।
ऐसे घर में फिर चोरी होनी है ।स्वाभाविक है । जिस घर में चोर की कही गई बात कि कोई नहीं है -मान ली गई हो,उस घर में दुवारा चोरी होना निश्चित ही है । कुछ दिन बाद चोर फिर घर में चोरी करने के लिए घुस गया ।पत्नी को मालूम हो गया कि घर में चोर घुस गया है । पत्नी ने सोचा अब पूछने की जरूरत नहीं है,सीधे चोर को पकडो। पत्नी ने चोर को पकड लिया और अपने पति के हवाले कर दिया ।पति ने चोर को पुलिस थाने की तरफ ले चला । आधे रास्ते तक पहुंचने पर चोर ने कहा माफ कीजिए,मैं अपने जूते आपके घर भूल आया हूं । उस आदमी ने कहा कि बडे नासमझ हो अब मैं वापस इतनी दूर लौटकर नहीं जाऊंगा । ठीक है मैं यहीं रुकता हूं तुम वापस चले जाओ और अपने जूते लेकर आओ । वह आदमी वहीं पर रुक गया,चोर वापस चला गया, चोर का वापस लौटने का तो सवाल ही नहीं था,और लौटा भी नहीं ।
एक माह बाद फिर वह चोर उसी आदमी के घर में चोरी करने के लिए फिर घुस गया । अब की बार उस आदमी ने उसे पकड लिया और कहा कि मैं थाने में चलता हूं,और इस बार कोई चीज मत भूल जाना । आधे रास्ते में जाने के बाद चोर ने कहा माफ कीजिए एक गलती हो गई, मैं अपना कंबल आपके घर भूल आया । उस आदमी ने कहा, तुम ना समझ मालूम पडते हो अब मैं पुरानी भूल नहीं कर सकता । अब तुम यहॉ रुको और मैं तुम्हारा कम्बल लेने जाता हूं ।
इस आदमी पर हंसी आती है,लेकिन सारे आदमी इसी भॉति के आदमी हैं । इसलिए जीवन में पहली शिक्षा जरूरी है कि अपने अनुभवों से सीखें ।

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