Friday, July 24, 2020

जन्म से पहले का व्यवहार और कला से संसार परिवर्तन

आंतरिक बल 702

व्यवहार कला से संसार परिवर्तन 

जन्म से पहले व्यवहार का प्रभाव 

      अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में घुसने की कला मां के गर्भ में रहते हुए सीखी थी । 

       खान-पान, स्वाद, आवाज़, ज़बान जैसी चीज़ें सीखने की बुनियाद हमारे अंदर तभी पड़ गई थीं, जब हम मां के पेट में पल रहे थे । 

      इसलिए माताओं को  नसीहतें मिलती हैं कि ज़्यादा मसालेदार चीज़ें न खाओ,  ये न खाओ, वो न पियो,  ऐसा न करो, वैसा न करो वरना अजन्मे  बच्चे पर बुरा असर पड़ेगा । 

      माता   जो कुछ भी खाती-पीती हैं, उसकी आदत उसके  अजन्मे  बच्चे  को भी पड़ जाती है । 

       गर्भ के दौरान लहसुन खाती है तो  उस के  बच्चे  को भी लहसुन ख़ूब पसंद आएगा । 

       जो महिलाएं  गाजर ख़ूब खाती थीं तो उनके बच्चों को भी पैदाइश के बाद अगर गाजर मिला बेबी फूड दिया गया, तो वो स्वाद ज़्यादा पसंद आया,  मतलब ये कि गाजर के स्वाद का चस्का उन्हें मां के पेट से ही लग गया था । 

        पैदा होने के फौरन बाद बच्चे मां का दूध इसीलिए आसानी से पीने लगते हैं क्योंकि उसके स्वाद से वो गर्भ में रूबरू हो चुके होते हैं । 

       मां  बच्चों की परवरिश करती है,  उनकी रखवाली करती हैं, इसलिए बच्चों को उससे ज़्यादा अच्छी बातें कौन सिखा सकता है? खाने के मामले में ख़ास तौर से ये कहा जा सकता है,  दुनिया में आने पर कोई नुक़सानदेह चीज़ न अंदर चली जाए, इसीलिए क़ुदरत बच्चों को मां के पेट में ही सिखा देती है कि क्या चीज़ें उसके लिए सही होंगी । 

       गर्भ में  बच्चे उन आवाज़ों को ज़्यादा तवज्जो देते हैं जिनमें शब्द होते हैं,  जैसे कि दो लोगों की बातचीत, या गीत,  मां-बाप की आवाज़ को तो बच्चे सबसे ज़्यादा पहचानते हैं,  इसी से उनकी ज़बान सीखने की बुनियाद पड़ती है,  जो ज़बान मां-बाप बोलते हैं, उसे सीखना बच्चे के लिए सबसे ज़रूरी है ।  आख़िर पहला संवाद अपने मां-बाप से ही तो करते हैं । 

       अगर मांएं ख़ास तरह का संगीत सुनती हैं, तो पैदा होने पर बच्चे भी उस आवाज़ को आसानी से पहचान लेते हैं । 

      गर्भवती महिला के आस-पास के  माहौल का  सीधा असर बच्चे पर पड़ता है । इस बारे में सावधानी बरतना तो ठीक है ।  लेकिन, गर्भ में पल रहे बच्चों को ख़ास तरह की आवाज़ या संगीत का आदि बनाना ठीक नहीं । 

        बच्चे पैदा होने से पहले ही स्वाद, ख़ुशबू और कुछ ख़ास आवाज़ों को पहचानना सीख जाते हैं ।

       जब बच्चा गर्भ में होता है तो वह मां  के प्रत्येक संकल्प और बोल को सुनता है । 

      मां के साथ जो व्यवहार किया जाता है ।  उसका असर भी उस पर पड़ता है । 

      अगर मां को घर के लोग डराते  धमकाते  हैं और वह हर समय डरती रहती है तो जन्म के बाद बच्चा भी डरपोक बनेगा ।

        अगर मां निराशाजनक परिस्थिति में रहती है तो  बच्चा निराशावादी बनेगा । 

      अगर माता धर्मिक व सात्विक पुस्तके पढ़ती है तो बच्चा  गुणवान बनेगा । 

      अगर आसपास के लोग माता से प्रेम का व्यवहार करते है तो जन्म के बाद बच्चा स्नेही बनेगा । 

       अगर हम श्रेष्ठ संसार बनाना चाहते है तो हमें माताओं के साथ श्रेष्ट व्यवहार करना है ।  क्योकि आप का व्यवहार उनके पेट में पल रहे बच्चे पर पड़ता है । 

       अगर योगी लोग भगवान के बिंदु रूप या  इष्ट को सामने देखते हुए हर रोज जन्म लेने वाले बच्चों के लिए एक संकल्प करें क़ि  भगवान आप प्यार के सागर है और आप का असीम बल अजन्मे  बच्चों को प्राप्त हो रहा है ।  आप का यह  संकल्प सब  बच्चों को पहुचेगा । 

       जन्म के बाद बच्चे स्नेही बनेगे और इस तरह धीरे धीरे नए संसार का निर्माण हो जाएगा । 

       बच्चे और कुछ नहीँ यह भगवान की  नई प्लेनिंग है ।   भगवान की इस प्लेनिंग में विश्व के सभी परिवारो  के सहयोग की बहुत जरूरत है ।

Thursday, July 2, 2020

किस्मत का अर्थ

किस्मत अर्थात किसकी मत पर चल कर कर्म किया, ईश्वर की मत पर, पर मत पर या मन मत पर, इन तीनों में से जिसकी सुनोगे वैसे ही भाग्य का निर्माण होगा।

        इसलिए किस्मत को दुहाई देना छोड़ अपने संकल्पों पर ध्यान दो और हमारे संकल्पों का आधार हैं हम इन्द्रियों से किसको सुनते, देखते हैं किसकी बात को मन पर लेते हैं और अपनी  सोच का आधार बनाते हैं, भगवान की बात,लोगों की बात या अपनी मन मर्ज़ी, जिस की बात को अपनी सोच का आधार बनाएँगे वैसा ही भाग्य निर्माण होगा।

         अर्थात जिसकी मत अपनाओगे वैसी ही किस्मत बनेगी, फैसला आपको करना है, फिर भगवान या person व परिस्थिती को दोष नहीं देना क्योंकि आपकी किस्मत आप खुद बनाते हो अपने संकल्पों द्वारा और अपने संकल्पों का आधार भी आप स्वयं ही निर्धारित करते हो!

         हर अच्छी बात को सुनना, सुनाना व फैलाना पुण्य कर्म में जमा होता है पर अच्छी बात वो जो भगवान की मत पर आधारित है अपने मन की मत पर नहीं, इसलिए यदि आप ईश्वर मुख से उच्चारित ज्ञान सुनते हो, सुनाते हो और फैलाते हो तो आप पुण्य कमा रहे हो क्योंकि इस से समाज में एक नई विचारधारा का प्रवाह होता है।

         एक ऐसी विचारधारा जो शरीर से जुड़ी किसी भी चीज़ पर आधारित नहीं है बल्कि आत्मा और परमात्मा के सत्य ज्ञान पर आधारित है इस विचारधारा से ही समाज से हर प्रकार की असमानता को मिटा कर कर्म सिद्धांत प्रधान समाज की रचना करने में सक्षम है यहां बाहरी पद प्रतिष्ठा तो अलग-अलग है भले पर आन्तरिक असमानता नहीं है।

        क्योंकि सबको यह ज्ञात है कि जो भी आज उन्के जीवन में है वह उन्के ही कर्मों अनुसार है अतः सभी केवल अपने कर्म पर ध्यान देते हैं और सबके लिए मन में प्रेम, सहयोग व सहानुभूति होती है कोई भी मन अशांत नहीं है ऐसे ही समाज की रचना करना ही धरा पर स्वर्ग को लाना है यह तभी सम्भव है जब हम सच्चा आत्म व परमात्म ज्ञान को जन जन तक पहुंचायें।

       भगवान न हमें क्षमा करता है और न ही सज़ा देता है क्योंकि वह हमारे कर्मों में कभी भी हस्तक्षेप करता ही नहीं  उसका तो काम है केवल ज्ञान और शक्ति देना! इसलिए डरना है यो केवल अपने कर्मों से डरो और भगवान से जी भर प्यार करो ताकि आपकी सोच, बोल और कर्म दिव्य बन सकें।

दूसरों की सराहना नहीं कर सकते तो आलोचना भी न करें

*“दूसरों की सराहना नहीं कर सकते तो अलोचना तो कभी न करें”*

       देखिये हम सब आत्माएं हैं, हमारा पहला कर्म है हमारे संकल्प! यदि हमारे संकल्प शुद्ध नहीं तो हमारा जीवन सुखदाई कभी नहीं हो सकता! 

        क्योंकि हम जो संकल्प करते हैं वह हमारे साथ ही हमारे सूक्ष्म शरीर में energy के रूप में रहता है और सबसे पहले हमें अनुभव होता है फिर उस संकल्प की उर्जा सामने वाली आत्मा तक पहुंचती है इसलिए जो गलत सोच रहा है वह उस नकारात्मक संकल्प की उर्जा से सबसे पहले प्रभावित हो रहा है।

        आपने देखा होगा कि एक company के head को अधिक बीमारियां लगती हैं जबकि workers को इतनी बीमारियां नहीं लगती क्यों, क्योंकि एक head officer अपने जितने workers को डांटेगा, उतनी ही बार वह उस negative thought से प्रभावित होगा जबकि हर worker एक एक बार और उसमें से भी जिसको उसकी बात को दिल पर लेने की आदत नहीं है तो वो तो बिल्कुल भी प्रभावित नहीं होगा, इसलिए कभी भीगलत संकल्पों की रचना न करें न अपने लिए और न दूसरों के लिए ! कलयुग में हर किसी को अलोचना की आदत है ! 

        सराहना करना नहीं आता क्योंकि इससे आगे वाला सिर पर चढ़ जाएगा, फिर से अच्छा काम नहीं करेगा, हमसे डरेगा नहीं, हमारी इज्जत नहीं करेगा, या हमें उसके अच्छे काम से इर्ष्या है आदि आदि कारणों से हम किसी के अच्छे काम की  सराहना करना ही भूल गये हैं क्योंकि हम body conscious हैं हम यह जानते ही नहीं कि हम सब आत्माएं हैं हम सब एक दूसरे के साथ संकल्पों से जुड़ी हैं, समय वह चल रहा है जब दूसरे के गलत काम को भी आप गलत न कह कर प्रेम व सहानुभूति की अच्छी vibrations दे कर उसे उपर उठाना है ताकि वह आत्मा दिलशिकस्त न हो! 

        पर अब भी कई लोग अपने विकारों के कारण दूसरों के अच्छे काम में भी गल्तियां निकालते रहते हैं यह बहुत बड़ा विकार है जिसका सबसे पहला और हानिकारक असर खुद पर होता है। अपना मन और शरीर दोनों ही बीमार होते हैं और उस आत्मा के साथ भी हमारा हिसाब-किताब बनता है जो इस जन्म में चुक्तू नहीं हुआ तो अगले जन्म में चुक्तू करना पड़ेगा इसलिए जितना हो सके अपने संकल्पों को शुद्ध बनाएं खुद के लिए भी और औरों के लिए भी इस से आपका सूक्ष्म शरीर सुन्दर और साफ़ बनेगा, स्थूल शरीर भी स्वस्थ होगा!

       सदा याद रखें मन में नकारात्मक संकल्पों की गाठों से ही स्थूल शरीर में गांठें पड़ती हैं जो बिमारी का कारण बनती हैं।